ज्वार को ज्यादा तादाद में किसान चारे के लिए उगाते हैं लेकिन कई इलाकों में इसकी खेती दाने के लिए भी की जाती है। ज्वार की खेती के लिए 6 से 8.30 पीएच वाली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
उचित जल निकासी, बेहतर जल धारण क्षमता वाली उपजाऊ मिट्टी में इसकी खेती श्रेष्ठ रहती है। देसी किस्में कमजोर जमीन में भी हो जाती है।
ज्वार ऐसी फसल है जो कम पानी में भी हो जाती है तथा दो-चार दिन अगर पानी भरा भी रहे तब भी यह बची रहती है। ज्वार की खेती उत्तर भारत में खरीफ सीजन में एवं दक्षिण भारत में रबी सीजन में की जाती है। इसलिए ज्वार की मांग साल भर बनी रहती है।
यदि खेत साल में कुछ महीने के लिए खाली रहता हो तो हरी खाद के लिए ढेंचा लगा देना चाहिए। ढैंचा की 60 दिन की फसल को दो ढाई फीट की अवस्था पर खेत में हैरों चलाकर जोत देना चाहिए। यदि सिंचाई के लिए पानी संभव हो तो खेत में पानी लगा देना चाहिए ताकि ढेंचा जल्दी से गल जाए।
उत्तर प्रदेश के लिए सीएचएस 16, 14, 9, सीएसवी 13 एवं 15, वर्षा, मऊ t1 एवं मऊ टी2 किस्म उपयुक्त हैं। शंकर किस्मों से दाना 38 कुंटल एवं चारा 140 क्विंटल तक प्राप्त हो जाता है।
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इनमें उज्जैन की उज्जैन है लव कुश, विदिशा, आंवला आदि किस्मों से दाने की उपज 12 से 16 कुंटल एवं चारे की उपज 30 से 40 कुंटल तक मिल जाती है।