जैविक हरी खाद, गोबर की खाद आदि को किसान भूल गए। इसी का परिणाम है कि नतो जमीन में ताकत रही न जमीन से उपजे अन्न व चारे में दम रहा। अब दौर बदल रहा है। खाद्य सुरक्षा के बाद अब लोग हैल्दी फूड की ओर आकृष्ट होने लगे हैं। हैल्दी फूड तभी मिलेंगे जब जमीन स्वस्थ हो। जमीन तभी स्व्स्थ होगी जबकि उसमें जैविक खादों को प्रयोग होगा। जैविक खाद बगैर ज्यादा श्रम के खेत में हरी खाद के माध्यम से पहुंचाए जा सकते हैं। वह भी उस समय में जिस समय खेत खाली रहते हैं।
उत्तर भारत में किसान गेहूं-धान फसल चक्र अपनाते हैं। इन दोनों फसलों की खेती बेहद सघन होती है। दोनों में भारी तादात में दाना बनता है। जमीन से सामान्य एवं शूक्ष्म पोषक तत्वों का अवशोषण ज्यादा होता है। इससे मृदा भौतिक संरचना भी प्रभावित होती है। इसे दुरुस्त करने के लिए गेहूं की कटाई के बाद और धान की रोपाई से पूर्व के खाली समय में हरी खाद के लिए ढेंचा, सनई, मूंग, उडद एवं मूंग आदि की फसलों को लगाकर खेत में जोता जा सकता है। हरी खाद के लिए छोटे दाने वाली फसलां के बीज 25 से 30 किलोग्राम एवं मोटे दाने वालियों के 45 से 50 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बिजाई करनी चाहिए। उक्त फसलों को लगाने के दो माह बाद खेत में जोत दिया जाता है। यदि पानी लगाना संभव होतो पानी लगाकर खेत में कतरी गई फसल 15 दिन में सड़ कर बेहतरीन खाद बन जाती है। इस प्रयोग से खेती की लागत भी घटेगी और अन्न में पोषक तत्वों की मौजूदगी भी बढे़गी। यह खाद पशु धन में आई कमी के कारण गोबर की उपलब्धता पर भी हमें निर्भर नहीं रहने देता।
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हरी खाद केवल नत्रजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साधन नहीं है बल्कि इससे मिट्टी में कई पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं| एक अध्ययन के अनुसार एक टन ढैंचा के शुष्क पदार्थ द्वारा मृदा में जुटाए जाने वाले पोषक तत्व नत्रजन 26.2 किलोग्राम, फास्फोरस 7.3, पोटाश 17.8, गंधक1.9, मैग्नीशियम1.6, कैल्शियम1.4, जस्ता 25 पीपीएम, लोहा105 पीपीएम एवं तांबा 7 पीपीएम प्राप्त होता है। हरीखाद के प्रयोग से मृदा भुरभुरी, वायु संचार में अच्छी, जल धारण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता/क्षारीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण भी कम होता है| हरीखाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है| जिस खेत में हरी खाद बनाई जाती है उसमें खरपतवारों की संख्या भी कम हो जाती है। इसके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम कर बचत कर सकते हैं तथा टिकाऊ खेती भी कर सकते हैं|