ककड़ी की खेती, आलू के खाली हुए खेतों में की जाए तो 40 से 50 दिन बाद उत्पादन देना शुरू कर देती है। इसकी खेती मण्डियों में खीरे की फसल की बड़ी आवक से पूर्व आने के कारण किसानों की अच्छी आय का जरिया बन सकती है। किसान इसके लिए बस तत्काल खेतों की अच्छे से जुताई करके बीज रोपदें और प्लास्टिक सीट से कूंड़ों को ढ़क दें ताकि बीज का अंकुरण ठंड के समय में ही हो जाए। प्लास्टिक सीट को लोटनल पॉलीहाउस के रूप में प्रयोग न कर पाने वाले किसान दिसंबर के अंत में या फिर फरबरी के प्रारंभ में तापमान सामान्य होने पर खेतों में बीजों की रोपाई करें।
ककडी की सरकारी संस्थानों के साथ-साथ प्राईवेट कंपनियों की किस्में बाजार में बेहद प्रचलित हैं। कारण यह है कि सरकारी संस्थानों तक मेहतनी किसानों की पहुंच बहुत ज्यादा नहीं है। वह नजदीकी दुकानदारों पर ही निर्भर रहते हैं। ककड़ी की खेती कैसे करें यह जानने के लिए इसकी हर तकनीकी जानकारी होना आवश्यक है। इसकी चंद्रा कंपनी की सुपर चंद्रप्रभा चंद्रा, ग्लोवल, डाक्टर नामक कंपनियों की ककड़ी के अलावा एग्रो कंपनी की ककड़ी बहुतायत में लगाई जाती है। पंजाब लान्गमेलन, करनाल सलेक्सन, अर्काशीतल जैसी अनेक किस्में सरकारी संस्थानों ने विकसित की हैं। इन सभी का उत्पादन 100 कुंतल प्रति एकड़ से ज्यादा बैठता है। किस्म का चयन कम समय में फल देने वाली का करना चाहिए।
आलू के खेतों के खाली होने के साथ ही किसान अच्छे से खेत तैयार कर इसके बीज को रोप सकते हैं। इकसे लिए खेत में नाली बनाई जाती है और नाली के किनारों पर ककड़ी बीज रोपा जाता है। आलू के खेतों में किसान कम्पोस्ट और रासायनिक खाद भरपूर डालते हैं। इस लिए ककड़ी के लिए कम उर्वरकों का प्रयोग करें। बीज को बुबाई से पूर्व कार्बन्डाजिम जैसे किसी फफूंदनाशक से दो ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दस से उपचारित करके बोएं।
सब्जी वाली फसलों में अच्छा फल बनाने के लिए कई तरह के प्रयोग वैज्ञानिकों ने किए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग खरपतवारनाशी टू4डी का है। इसकी दो पीपीएम मात्रा यानी की 100 लीटर पानी में मात्र 2 एमएल दवा घोलकर बीज से अंकुर निकलने और दो पत्ते का होने की अवस्था में ही कर देना चाहिए। इससे फल बनने के समय नर फूलों की संख्या अधिक नहीं होगी। मादा फूल प्रचुर मात्रा में होंगे और हर फूल पर फल बनेंगे।
ककड़ी की खेती के लिए जमीन का पीएच मान 5.8 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जमीन अच्छी जल धारण क्षमता वाली एवं भुरभुरी होनी चाहिए।
किसी भी फसल को यदि अगेती लगाया जाता है तो मण्डियों में अच्छा पैसा मिलता है लेकिन इसके लिए प्लास्टिक सीट का लो टनल पॉलीहाउस बनाना पड़ता है। इसमें पौध को प्लग ट्रे, दौने या छोटे ग्लासों में तैयार किया जाता है या फिर खेत में ही बीज रोपकर पालीथिन से ढ़कना पड़ता है। सामान्य तरीके से खेती करने के लिए फरवरी से मार्च तक ककड़ी की खेती के लिए बीज खेत में रोपे जा सकते हैं।
हर फसल के लिए कुछ क्रियाएं आवश्यक होती हैं। ककड़ी की खेती के लिए प्रति एकड़ एक किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। कतार से कतार के मध्य डेढ़ से दो मीटर की दूरी रखें। एक स्थान पर कमसे कम दो बीज चोभें। ककड़ी की खेती के लिए चार से पांच पानी की आवश्यकता होती है। बीज को ढ़ाई से चार सेण्टीमीटर गहरा बोना चाहिए।
ककड़ी की खेती में कई तरह के कीट एवं रोग लगते हैं। इन्हें समुचित सिंचाई, बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन से रोका जा सकता है। इसमें लगने वाला कीट चेंपा होता है। यह सरसों की फसल से आता है। इसे मारने के लिए किसी भी सामान्य कीटनाशनक का छिड़काव फसल पर करें। भुण्डी के कारण फूल, पत्ते और तना प्रभावित होता है। इसके लक्षण दिखते ही कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें। फल मक्खी से फसल को बचाने के लिए नीम के तेल का प्रयोग तीन प्रतिशत के हिसाब से करें। फफूंदजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए कार्बन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव करें।
उचित क्रियाओं और रोगों की निगरानी व निदान करते हुए अधिकतम 60—70 दिन में फल लगने लगता है। इसकी ठीक तरह से ग्रेडिंग—पैकिंग करके बाजार ले जाएं। प्रारंभिक तौर पर ककड़ी की बेहद अच्छी कीमत मिलती है।