सरकार अध्यन करा रही है कि उन्नत किस्मों से किसान कितने सम्पन्न हुए। यह बात अलग है कि भारत सरकार ने इसकी कुछ शर्तें और किस्में नियत कर दी हैं। किस्में भी ऐसी कि जिनसे अन्य दूसरी किस्में कहीं ज्यादा क्षेत्र में लगाई जा रही हैं। बात साफ है जो किस्मे ज्यादा क्षेत्र में लगाई जा रही हैं वह किसानों में ज्यादा लोकप्रिय हैं और किसानों की माली हालत पर उनका ही प्रभाव होगा।
सरकार धान की 1121 यानी सुंगध चार किस्म के प्रभाव का अध्ययन करा रही है। इसके लिए केन्द्र से ही गांवों का चयन करके भेज दिया है। 1121 बेहद लम्बी अवधि की किस्म होने के कारण अब किसान छोड़ने लगे हैं। यह किस्म केवल उन इलाकों में लगाई जाती है जो जल प्लावित की श्रेणी वाले होते हैं। यहां बौनी और कम अवधि वाली 1509 जैसी किस्में नहीं लग पातीं। उल्लेखनीय है कि धान की 1509 किस्म ने 1121 के क्षेत्रफल को पिछले चार पांच साल में 70 फीसदी तक घटा दिया है।
इधर गेहू की 3086 किस्म के किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में परिवर्तन लाने वाले प्रभावों का अध्ययन हो रहा है जबकि 2967 किस्म कई दशकों के बाद आई देश के सर्वाधिक क्षेत्र में बोई जाने वाली किस्म है। यह अगेती, पछेती, समय से और हर तरह की परिस्थिति में अच्छा उत्पादन देने वाली सिद्ध हुई है। 30867, 1105, सीएसडब्ल्यू 18 जैसी किस्में भी उत्पादन के लिहाज से श्रेष्ठ हैं।
कई संस्थानों की अन्य किस्म भी हैं लेकिन अध्ययन के लिहाज से उन किस्मों का चयन होना चाहिए था जो ज्यादा क्षेत्र में बोई जा रही हैं और किसान जिन्हें ज्यादा अपना रहे हैं। अब तक वैज्ञानिकों ने करीब चार सैकड़ा से ज्यादा किस्में गेहूं की निकाली हैं लेकिन उनमें से चलन में केवल चंद दर्जन ही हैं। इससे यह तो सिद्ध नहीं होता कि बाकी वैज्ञानिकों ने काम नहीं किया या किस्में निकालने का फर्जीवाडा किया।