मूली की खेती पूरे भारत वर्ष में की जाती है. इसकी खेती मैदानी इलाकों के साथ साथ पहाड़ी इलाकों में भी की जाती है. मूली (Radish) को सलाद, सब्जी , अचार के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. इसको खाने से मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. कहते हैं ना की स्वस्थ शरीर ही पहला सुख होता है. अगर आपका शरीर स्वस्थ नहीं है तो आपके पास कितनी भी धन दौलत हो आप उनका सुख नहीं भोग सकते हो.
तो ईश्वर ने हमें सब्जियों के रूप में ऐसी ओषधियाँ दी है जिनको खाने से हम अपना शरीर बिलकुल स्वस्थ्य रख सकते हैं.
इन्हीं सब्जियों में मूली भी एक सब्जी है. मूली एक जड़ वाली सब्जी है इसमें विटामिन सी एवं खनीज तत्व का अच्छा स्त्रोत है| मूली लिवर एवं पीलिया मरीजों के लिए भी अच्छी बताई गई है. वैसे तो मूली वर्षभर उपयोग में ली जाती है किन्तु मूली को सर्दियों में ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है. इसके पत्तों की सब्जी बनाई जाती है एवं इसके जड़ वाले हिस्से की सब्जी, सलाद, अचार और पराठा भी बनाया जाता है.
खेत की तैयारी:
जब हम मूली के लिए खेत की तैयारी करते हैं तो सबसे पहले हम उस खेत को गहरे वाले हल से जुताई करते हैं उसके बाद उसको कल्टीवेटर से 3 - 4 जुताई करके हलका पाटा लगा देते हैं. इसकी बुबाई अगर बेड बना करें तो ज्यादा सही रहता है. ये एक जड़ वाली फसल है तो इसको गहराई वाली और फोक मिटटी की आवश्यकता होती है. इसमें गोबर के खाद की मात्रा अच्छी खासी होनी चाहिए.
मूली की उन्नत किस्में:
मूली की फसल लेने के लिए ऐसी उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए, जो देखने में सुंदर व खाने में स्वादिष्ट हो, साथ ही अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली होनी चाहिए| मूली की खेती मैदानी इलाकों में सितंबर से जनवरी तक और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अगस्त तक आसानी से की जा सकती है| वैसे मूली की तमाम ऐसी एशियन और यूरोपियन किस्में उपलब्ध हैं, जो मैदानी व पहाड़ी इलाको में पूरे साल उगाई जा सकती है| इस लेख में मूली की उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है| मूली की खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूली की उन्नत खेती कैसे करें
मूली की उन्नत किस्में एवं कुछ एशियन किस्में:
मूली की कुछ किस्में ऐसी हैं जो की भारत के साथ साथ पड़ोस के और सामान वातावरण वाले देशों में भी उगाई जाती है. विवरण निचे दिया गया है:
पूसा चेतकी- डेनमार्क जनन द्रव्य से चयनित यह किस्म पूर्णतया सफेद, मूसली, नरम, मुलायम, ग्रीष्म ऋतु की फसल में कम तीखी जड़ 15 से 22 सेंटीमीटर लम्बी, मोटी जड़, पत्तियां थोड़ी कटी हुई, गहरा हरा एवं उर्ध्वमुखी, 40 से 50 दिनों में तैयार, ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु हेतु उपयुक्त फसल (अप्रैल से अगस्त ) और औसत पैदावार 250 से 270 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
जापानी सफ़ेद- इस किस्म की जड़ें सफ़ेद लम्बी 15 से 22 सेंटीमीटर बेलनाकार, कम तीखी मुलायम और चिकनी होती है| जड़ों का नीचे का भाग कुछ खोखला होता है| इसकी बुवाई का सर्वोत्तम समय 15 अक्तूबर से 15 दिसंबर तक है बोने के 45 से 55 दिन बाद फसल खुदाई के लिए तैयार और पैदावार क्षमता 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है|
पूसा हिमानी- इस मूली की किस्म की जड़े 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी, मोटी, तीखी, अंतिम छोर गोल नहीं होते, सफेद एवं टोप हरे होते है| हल्का तीखा स्वाद और मीठा फ्लेवर, बोने के 50 से 60 दिन में परिपक्व, दिसम्बर से फरवरी में तैयार और औसत पैदावार 320 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है.
पूसा रेशमी- इसकी जड़ें 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी , मध्यम मोटाई वाली, लेकिन उपरी सिरे वाली, समान रूप से चिकनी और हलकी तीखी होती है| उपरी भाग मध्यम ऊंचाई वाला और हलके हरे रंग कि कटावदार पतियों वाला होता है| यह किस्म मध्य सितम्बर से अक्टूम्बर तक बुवाई के लिए उपयुक्त है बोने के 55 से 60 दिन बाद तैयार और उपज क्षमता 315 से 350 प्रति हेक्टेयर है|
जौनपुरी मूली- यह उत्तर प्रदेश कि प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय किस्म है| यह 70 से 100 सेंटीमीटर लम्बी और 7 से 10 सेंटीमीटर मोटी होती है| इस किस्म का छिलका और गुदा सफ़ेद होता है| गुदा मुलायम, कम चरपरा और मीठा होता है|
हिसार मूली न 1- इस मूली की उन्नत किस्म की जड़ें सीधी और लम्बी बढ़ने वाली होती है| जड़ें सफ़ेद रंग कि होती है, यह किस्म सितम्बर से अक्तूबर तक बोई जाती है| यह किस्म बोने के 50 से 55 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है| यह प्रति हेक्टेयर 225 से 250 क्विंटल तक उपज दे देती है|
कल्याणपुर 1- इस मूली की उन्नत किस्म की जड़ें सफ़ेद चिकनी मुलायम और मध्यम लम्बी होती है| बोने के 40 से 45 दिन बाद यह खुदाइ के लिए तैयार हो जाती है|
पूसा देशी- इस मूली की किस्म कि जड़ें सफ़ेद, मध्यम, मोटी 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी और बहुत चरपरी होती है| इसकी जड़ें नीचे कि ओर पतली होती है| पौधों का उपरी भाग मध्यम ऊंचाई वाला होता है और पत्तियां गहरे हरे रंग कि होती है| यह मध्य अगस्त से अक्टूम्बर के आरंभ तक बुवाई के लिए उत्तम किस्म है| यह बोने के 40 से 55 दिन बाद तैयार हो जाती है.
पंजाब पसंद- यह जल्दी पकने वाली किस्म है, यह बिजाई के बाद 45 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं| इसकी जड़ें लम्बी, रंग में सफेद और बालों रहित होती है| इसकी बिजाई मुख्य मौसम और बे-मौसम में भी की जा सकती है| मुख्य मौसम में, इसकी औसतन पैदावार 215 से 235 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और बे-मौसम में 150 क्विंटल होती है|
अन्य एशियन किस्में- चाइनीज रोज, सकुरा जमा, व्हाईट लौंग, के एन- 1, पंजाब अगेती और पंजाब सफेद आदि है| ये किस्में भी अच्छी पैदावार वाली और आकर्षक है|
यूरोपियन किस्में
व्हाईट आइसीकिल- यह मूली की किस्म ठंडी जलवायु के लिए उपयुक्त है| इसकी जड़ें सफ़ेद, पतली कम चरपरी और स्वादिष्ट होती है| इसकी जड़ें सीधी बढ़ने वाली होती है| जो नीचे के ओर पतली होती जाती है| इसे खेत में लम्बे समय तक रखने पर भी इसकी जड़ें खाने योग्य बनी रहती है| इसे 15 अक्टूम्बर से फ़रवरी तक कभी भी बो सकते है| इस किस्म कि मुली बोने के करीब 30 दिन बाद तैयार हो जाती है|
रैपिड रेड व्हाईट टिपड- इस किस्म कि मूली का छिलका लाल रंग का होता है| जो थोड़ी सी सफेदी लिए होता है| जिसके कारण मुली देखने में अत्यंत आकर्षक लगती है| इसकी जड़ें छोटे आकार वाली होती है और उनका गुदा सफ़ेद रंग का होता है तथा मुली कम चरपरी होती है| इस किस्म कि बुवाई मध्य अक्टूम्बर से फ़रवरी तक कभी भी कि जा सकती है| इस किस्म कि मुली बोने के लगभग 25 से 30 दिन बाद तैयार हो जाती है|
स्कारलेटग्लोब- यह मूली की अगेती किस्म है, जो बोने के 25 से 30 दिन बाद तैयार हो जाती है| इसकी जड़ें छोटी मुलायम और ग्लोब के आकार वाली होती है| इसकी जड़ें खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगती है|
फ्रेंच ब्रेकफास्ट- यह भी मूली की एक अगेती किस्म है, यह किस्म बुवाई के 27 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है| जड़ें बड़े आकार में छोटी, मुलायम, गोलाकार तथा कम चरपरी होती है| जो खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगती है|
मूली के बीज बनाने के तरीके:
इसके अच्छे और तंदुरुस्त पौधों को चुन कर उसे पकने के लिए छोड़ देना चाहिए. जब ये पक जाएँ तो इन्हें काट कर अच्छे से सुखा लेना चाहिए. इसके बीजों को किसी सूखी हुई जगह पर रख लेना चाहिए.