Published on: 22-Jan-2023
एक बार फसल लगाने के बाद किसानों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सूखा और बहुत ज्यादा बारिश उनमें से एक हैं। बहुत ज्यादा बारिश होने से कभी-कभी खेतों में खड़ी पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। जो किसानों के ऊपर भारी कर्ज और परेशानी छोड़ देता है।
पिछले साल बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में भारी बारिश हुई, जिससे कई इलाकों में बाढ़ का पानी भर गया। इससे खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गईं, ऐसे में किसान कर्ज में डूब गए। मीडिया की रिपोर्ट की मानें तो साल 2022 में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में लगभग 1000 से ज्यादा किसानों ने इन समस्याओं के चलते आत्महत्या की है। यह आंकड़े बहुत ज्यादा परेशान करने वाले हैं। कार्यालय के अधिकारियों की मानें तो इससे पिछले साल की गई आत्महत्या 887 थी जो इस साल बढ़कर 1023 हो गई हैं। किसानों की आत्महत्या एक ऐसा आंकड़ा है, जो कोई भी सरकार बढ़ाना नहीं चाहती है।
मीडिया की रिपोर्ट की मानें तो साल 2001 और साल 2010 के बीच हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें से बहुत से रिपोर्ट मीडिया में दर्ज भी नहीं होती है। यह आंकड़े ना सिर्फ चौकाने वाले हैं बल्कि दुखदाई भी हैं। एक बार फसल बर्बाद हो जाने के बाद किसानों के पास कोई रास्ता नहीं रह जाता है। वह मौत को गले लगाना ही सबसे सही समझते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, इस क्षेत्र में कुछ वर्षों में सूखे जैसी स्थिति और अन्य में अत्यधिक बारिश देखी गई है, जिसने फसल उत्पादकों की कठिनाइयों को बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में सिंचाई नेटवर्क का भी पूरी क्षमता से उपयोग नहीं किया जा रहा है।
दिसंबर और जून के बीच बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएं
जिला प्रशासन के सहयोग से उस्मानाबाद में किसानों के लिए एक परामर्श केंद्र चलाने वाले विनायक हेगाना ने
किसान आत्महत्याओं का विश्लेषण करते हुए छोटे से छोटे स्तर पर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ऊंचे लेवल पर कई तरह की नीतियां और योजनाएं बनाई जा रही हैं और साथ ही जमीनी स्तर पर भी कई तरह के सुधार किए जा रहे हैं। ताकि इस तरह की घटनाओं को कम किया जा सके। इससे पहले जुलाई और अक्टूबर के बीच सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं दर्ज की गई थी। लेकिन पैटर्न बदल गया है। उन्होंने कहा कि अब किसानों की आत्महत्या की घटनाएं दिसंबर और जून के बीच संख्या बढ़ रही हैं।
किसानों को अपनी उपज का अच्छा रिटर्न मिलना है जरूरी
संख्या पर अंकुश लगाने की नीतियों पर हेगाना ने कहा कि इन नीतियों में खामियां ढूंढना और उन्हें बेहतर बनाना एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए। साथ ही जरूरी है, कि कुछ ऐसे लोगों का समूह बनाया जा सके जो इस पर काफी एक्टिव हो कर काम करें। संपर्क किए जाने पर, महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने कहा कि हालांकि किसानों के लिए कई बार कर्जमाफी हुई है। लेकिन आंकड़े (आत्महत्या के) बढ़ रहे हैं। उन्होंने मीडिया में कहा कि केवल किसानों का कर्ज माफ कर देना ही काफी नहीं है।
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हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि किसानों को उनकी उपज का अच्छा खासा रिटर्न मिले। जब किसान फसल लगाते हैं, तो उस पर काफी तरह का खर्चा करते हैं। अगर वह खर्चा ही ना निकाल पाए तो यह उनके लिए बहुत बड़ा आर्थिक संकट बन कर सामने आता है। दानवे ने बहुत ही ऊंचे दामों पर बेचे जा रहे घटिया किस्म के बीज और खाद के बारे में भी बात की और इस पर चिंता व्यक्त की है। अगर किसानों को सही तरह के बीज और खाद ही नहीं मिल पाएंगे तो उत्पादन को बढ़ाना मुश्किल है।