Published on: 01-Sep-2022
भारतीय गेहूं दुनिया की जरूरतों को हमेशा पूरा करता रहा है, लेकिन मौजूदा समय में भारत गेहूं की कमी (wheat shortage) के संकट से जूझ रहा है. आलम ये है कि अगस्त के महीने में भारत का गेहूं का स्टॉक पिछले 14 साल के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. हालांकि, इस बीच केंद्र सरकार का कहना है कि घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत के पास गेहूं का पर्याप्त भंडार है.
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लगतार छह साल तक रिकॉर्ड खाद्य उत्पादन करने के बाद इस बार उत्पादन में भारी गिरावट आने की संभावना बनी हुई है, जिसका मुख्य कारण समय पर पर्याप्त मात्रा में बारिश का नहीं होना और मौसम का बेरुखी से बदलते रहना माना जा रहा है. इस वजह से धान और दलहन की बुवाई बुरी तरह प्रभावित हुई है. पर्याप्त मात्रा में बारिश नहीं होने के कारण सूखा जैसी स्थिति हो चुकी है. नतीजतन, उपज कम होने की संभावना है और इस कारण से फसलों की कीमत में बढ़ोतरी हो सकती है.
कृषि मंत्रालय के द्वारा 26 अगस्त को बताये गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल के मुकाबले 1.5 फीसदी कम गेहूं की बुवाई हुई है. सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि इस साल भारत में बहुत तेज गर्मी पड़ी है, जिसके कारण गेहूं का उत्पादन उचित मात्रा में नहीं हो पाया है.
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6 फीसदी कम हुई धान की खेती
सरकारी आंकड़ो से यह पता चलता है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल धान की खेती में लगभग 6 फीसदी की गिरावट आई है. कम बारिश होने और अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण किसान इस बार धान की बुवाई बहुत कम कर पाए है. पिछले साल 39 मिलियन हेक्टेयर में धान की बुवाई हुई थी, लेकिन इस बार यह आंकड़ा घटकर 36.7 मिलियन हो गया है. दलहन की भी अमूमन वही स्थिति है. पिछले साल लगभग 13.4 मिलियन हेक्टेयर में दलहन की खेती हुई थी, लेकिन इस साल यह खेती घटकर 12.7 मिलियन हेक्टेयर में हुई है.
मॉनसून से पर्याप्त मात्रा में खरीफ फसल की बुवाई के लिए बारिश का नहीं होना, कहीं अधिक बारिश हो जाना और कहीं सूखा पड़ जाने के कारण फसल के उपज में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. किसान मायूस नजर आ रहे हैं. कई राज्यों में कम बारिश होने के कारण सुखाड़ जैसी स्थिति बन गयी है, जो सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है, वही बहुत सारे राज्य में अधिक बारिश होने के कारण बाढ़ जैसी हालत हो गयी है. बहुत सारे राज्यों में वहाँ की सरकार अपने अपने जिलों का मुआयना कर जिलावार सूखा घोषित कर रही है.
भगवान भरोसे धान उत्पादक राज्य
देश के कई ऐसे राज्य है, जहां अधिक बारिश होने के कारण बाढ़ से बुरा हाल है. अगर हम पश्चिम बंगाल जैसे ब़डे चावल उत्पादक राज्य की बात करें तो वहाँ इस बार लगभग 28 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है. उत्तर प्रदेश जैसे धान उत्पादक राज्य में भी इस बार 44 फीसदी कम बारिश हुई है, वहीं बिहार भी कम बारिश से बदहाल हैं. यहाँ भी इस बार 40 फीसदी कम बारिश हुई हैं. जाहिर है धान के खेती के लिए भरपूर मात्रा में पानी की आवश्यकता होत्ती हैं. कई सप्ताहों तक धान के खेत में लगातार पानी का बने रहना धान के बेहतर उत्पादन के लिए अच्छा माना जाता हैं. लेकिन उपरोक्त राज्यों में जिस तरह से बारिश में अभूतपूर्व कमी आई हैं, उससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि इस साल धान उत्पादन पर कितना अधिक नकरात्मक असर हो सकता हैं.
गेहूं का स्टॉक 2008 के बाद से सबसे कम
आधिकारिक आंकड़ों से यह पता चलता है कि भारत का गेहूं भंडार इस बार 14 साल के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गया है. खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने सोशल मीडिया के एक पोस्ट में कहा है कि भारत में गेहूं आयात करने की ऐसी कोई योजना नहीं है. घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए देश के पास पर्याप्त स्टॉक है और भारतीय खाद्य निगम के पास सार्वजनिक वितरण के लिए भी पर्याप्त स्टॉक है. साल के ही शुरुआत में
रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद से गेहूं की कीमतें लगतार बढ़ रही हैं. भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और कीमतों में वृद्धि से निपटने के लिए 13 मई से ही
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया हैं . सरकार ने 14 अगस्त को गेहूं के आटे और संबंधित उत्पादों जैसे सूजी, साबुत आटे के निर्यातकों के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति की मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया हैं .
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लेकिन ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अधिकारी विदेशों से गेहूं खरीदने पर विचार कर रहे हैं और अधिकारी इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि कुछ क्षेत्रों में आटा मिलर्स को अनाज आयात करने में मदद करने के लिए गेहूं पर लगाने वाले 40 प्रतिशत आयात कर में कटौती की जाए. मिंट की एक रिपोर्ट, एफसीआई डेटा के हवाले से कहती है कि इस साल अगस्त में गेहूं का भंडार 14 साल में सबसे निचले स्तर पर आ गया है और गेहूं की मुद्रास्फीति 12 प्रतिशत के करीब चल रही है.
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जाहिर हैं, मौसम संबधी समस्या, अत्यधिक गर्मी,कमजोर मानसून और कुछ हद तक सरकारी नीतियों में असमंजस की स्थिति, विश्व स्तर पर रूस-यूक्रेन युद्ध, इन सब ने मिलकर भारत में अनाज उत्पादन को प्रभावित किया हैं. नतीजतन, ऐसी आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में अनाज की कीमतों में वृद्धि हो सकती हैं.