Published on: 01-Jul-2022
140 से ज्यादा किस्मों के देसी बीज बांट दिए हैं अब तक
ग्वालियर।
मध्यप्रदेश के रहने वाले 44 वर्षीय किसान केदार सैनी, देश में 17 राज्यों के हजारों लोगों को मुफ्त में बीज बांट चुके हैं। वह देसी बीज लोगों तक पहुंचाकर देश और शहर में हरियाली फैलाना चाहते हैं। वह अब तक 140 से ज्यादा किस्मों के देसी बीज लोगों में बांट चुके हैं।
गुना जिले के रुठियाई गांव के केदार सैनी 2019 से गेल इंडिया और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे प्रोजेक्ट्स पर पौधे लगाने का काम भी कर चुके हैं। केदार अब तक देश के 17 राज्यों में अलग-अलग किसानों को डाक के जरिए देसी सब्जियों और
औषधीय पौधों के बीच पहुंचा चुके हैं। उनका कहना है कि वह बीज बांटने का काम सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी देसी भोजन पर ध्यान दे। देसी किस्मों के बीज कई सालों तक सुरक्षित रहते हैं।
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केदार सैनी के बारे में
- जैसा कि हमने बताया कि केदार सैनी मध्यप्रदेश के गुना जिले के रुठियाई गांव रहने वाले हैं। केदार सैनी ने हिंदी विषय से एमए किया है। उनके पिताजी के जाने के बाद उनकी माँ के नाम पर केवल चार बीघा जमीन आई। शुरुआत में केदार ने अपनी जमीन के साथ-साथ दूसरों की जमीन भी किराए पर लेकर खेती-किसानी की। केदार पारंपरिक खेती से ज्यादा
बागवानी में ज्यादा रुचि रखते हैं। वो हमेशा
अलग किस्म की सब्जियां उगाते हैं। केदार को देसी किस्मों के बीज इकट्ठा करना अच्छा लगता है।
बारिश के मौसम में तो वह इन देसी बीजों को बेच भी देते हैं। केदार कक्षा 7वीं से बीज इकट्ठा करके बेचने का काम करते हैं। उनकी जेब में हमेशा बीज रखे मिलते हैं।
केदार फिलहाल इंदौर में प्रधानमंत्री निवास योजना के तहत बन रहे प्रोजेक्ट में पौधे लगाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा वह समृद्धि पर्यावरण संरक्षण अभियान के तहत एक मिशन भी चला रहे हैं।
कोरोना महामारी में डाक से भेजे थे देसी बीज
- केदार सैनी ने
वैश्विक कोरोना महामारी के समय जरूरतमंद लोगों को डाक से देसी बीज भेजे थे। उन्होंने इन बीजों को पिछले 7 सालों में इकट्ठा किया था। और सभी को मुफ्त में डाक से भेजे थे। केवल डाक शुल्क ही लिया था।
बचपन से ही पौधों के प्रति लगाव रखते हैं केदार
- केदार सैनी बचपन से ही पौधों के प्रति लगाव रखते हैं। वह दुर्लभ जड़ी-बूटियों, फलों एवं दुर्लभ सब्जियों आदि के बीज इकट्ठा करते हैं और जरूरतमंद लोगों तक इन्हें पहुंचाते हैं।
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लोकेन्द्र नरवार