Published on: 10-Sep-2022
2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM)) घोषित किया गया है. जाहिर है, यह घोषणा बाजरे के महत्व को समझते हुए ही किया गया होगा. वैसे भी बाजरा (Pearl Millet) मोटे अनाज के तौर पर एक स्वस्थ इंसान के लिए काफी लाभदायक माना जाता है. इसकी पौष्टिकता को देखते हुए डॉक्टर तक इसके इस्तेमाल की सलाह देते हैं. बाजरे के महत्व को देखते हुए ही नीति आयोग तक ने कहा है कि ओडिशा की तरह अन्य राज्यों को भी बाजार उत्पादन के लिए कदम उठाना चाहिए, जिससे आगे चल कर बहुआयामी लाभ होंगे. दरअसल, नीति आयोग ने ओडिशा द्वारा बाजरा उत्पादन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्य को देखते हुए उक्त बातें कही है.
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
बाजरा ग्रास फैमिली के छोटे अनाज हैं, जो कठोर, स्वयं-परागण वाली फसल है. ओडिशा में सरकार विभिन्न वजहों से बाजरा की खेती को बढ़ावा दे रही है. इसका एक कारण यह है कि बाजरा प्राकृतिक रूप से पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत हो जाता है. यह विपरीत मौसमी परिस्थितियों में भी अच्छी तरह से उपजता है और अन्य प्रमुख फसल जैसे गेहूं, धान की तुलना में कम इनपुट वाली खेती प्रणाली के लिए फिट है. यह लाल और काली मिट्टी में भी उपजता है, जो कि ओडिशा के पूर्वी घाट में पाई जाती है.
ओडिशा बाजरा मिशन
इसकी खेती आदिवासी समुदायों द्वारा की जाती रही है और इसका उपयोग भी मुख्यतः आदिवासियों के द्वारा ही किया जाता रहा है. कालान्तर में यह उपयोग धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहा था, जिसे पुनर्जीवित करने के लिए मुख्यमंत्री
नवीन पटनायक की निगरानी में 2017 में '
ओडिशा बाजरा मिशन' (
Odisha Millets Mission) लॉन्च किया गया था. ख़बरों के मुताबिक, कार्यक्रम का प्रबंधन ओडिशा मिलेट मिशन
(ओएमएम) के माध्यम से जिलों में परियोजना प्रबंधन इकाइयों द्वारा किया जाता है और इसकी निगरानी राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई द्वारा की जाती है. ओएमएम एक अनूठी परियोजना है जो पोषक अनाज के बेहतर उत्पादन, स्थानीय खपत, एमएसपी के तहत खरीद और पीडीएस के माध्यम से वितरण पर केंद्रित है.
ये भी पढ़ें: IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये
स्वास्थ्य के साथ मिट्टी में सुधार
विभिन्न समुदायिक संगठन के माध्यम से इस मिशन को 76 ब्लॉकों में लागू किया जा रहा है. राज्य सरकार ने खरीफ सीजन में 3150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से लगभग 95,000 क्विंटल बाजरे की खरीद की है. राज्य पोषण कार्यक्रम के तहत सात जिलों में 16 लाख से अधिक हितग्राहियों को खरीफ सीजन उपार्जन के बदले प्रति राशन कार्ड धारक 1 किलो बाजरा दिया गया. महिला स्वयं सहायता समूह, क्षेत्रीय शिक्षा केंद्र, वन एवं पर्यटन विकास एजेंसी और ग्राम स्वराज जैसे संगठनों के सहयोग से यह मिशन सुचारू ढंग से चलाया जा रहा है. स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर गुणवत्ता वाले अनाज को चुना और उपलब्ध कराया जाता है. किसानों को जैविक रूप से फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. किसानों को
जैविक खाद और गोबर उपयोग करने की सलाह दी जाती है. किसान इस पर अमल भी कर रहे है. नतीजतन, इससे
मिट्टी की गुणवत्ता में काफी सुधार भी देखने को मिल रहा है.
एक पायलट कार्यक्रम के रूप 15 अगस्त, 2020 को सुंदरगढ़ जिले में प्री-स्कूल बच्चों के पोषण के लिए बाजरा का लड्डू देने वाले कार्यक्रम को लॉन्च किया गया था. इस कार्यक्रम के तहत एक साल के भीतर, 17 ब्लॉक के सभी 21 आईसीडीएस को कवर करने की योजना बनाई गयी. इस पहल से 3-6 वर्ष के आयु वर्ग के 86,000 से अधिक बच्चों को लाभ मिल रहा है. जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) के समर्थन से, प्रशासन ने ओडिशा बाजरा मिशन कार्यक्रम के तहत बाजरा की खेती के तहत 3,000 हेक्टेयर (हेक्टेयर) कृषि भूमि को लाने के लिए एक पंचवर्षीय योजना तैयार की है. पंचवर्षीय योजना (वित्त वर्ष 2022-23) के अंत में बाजरा कवरेज के तहत क्षेत्र 6000 हेक्टेयर को पार करने के लिए तैयार है.
बाजरा की खेती ओडिशा जैसे राज्य में पोषण सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर रहा है. नीति आयोग ने ओडिशा के इस मिशन की सराहना की है. नीति आयोग के अनुसार, रागी और अन्य बाजरा के किस्मों के उत्पादन को आईसीडीएस की इस पहल से बढ़ावा दिया जाएगा. इस पहल को तीन आयामी लाभ देने वाला बताते हुए नीति आयोग ने कहा है कि इससे किसानों और महिला समूहों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी.