पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

Published on: 24-Sep-2022

खरीफ का सीजन चरम पर है, देश के ज्यादातर हिस्सों में खरीफ की फसल तैयार हो चुकी है। कुछ हिस्सों में खरीफ की कटाई भी शुरू हो चुकी है, जो जल्द ही समाप्त हो जाएगी और किसान अपनी फसल घर ले जा पाएंगे। 

लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी समस्या किसान अपने खेत में ही छोड़कर चले जाते हैं, जो आगे जाकर दूसरों का सिरदर्द बनती है, वो है पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue)। पराली एक ऐसा अवशेष है जो ज्यादातर धान की फसल के बाद निर्मित होता है। 

चूंकि किसानों को इस पराली की कोई ख़ास जरुरत नहीं होती, इसलिए किसान इस पराली को व्यर्थ समझकर खेत में ही छोड़ देते हैं। कुछ दिनों तक सूखने के बाद इसमें आग लगा देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत को फिर से तैयार कर सकें। 

पराली में आग लगाने से किसानों की समस्या का समाधान तो हो जाता है, लेकिन अन्य लोगों को इससे दूसरे प्रकार की समस्याएं होती हैं, जिसके कारण लोग पराली जलाने (stubble burning) के ऊपर प्रतिबन्ध लगाने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं। 

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विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारत में ख़ास तौर पर पंजाब और हरियाणा में जो भी पराली जलाई जाती है, उसका धुआं कुछ दिनों बाद दिल्ली तक आ जाता है, जिसके कारण दिल्ली में वायु प्रदुषण के स्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है। 

इससे लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है, इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पराली के प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। 

पराली की वजह से लोगों को लगातार हो रही समस्याओं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने अलग-अलग स्तर कई प्रयास किये हैं, जिनमें पराली का उचित प्रबंधन करने की भरपूर कोशिश की गई है ताकि किसान पराली जलाना बंद कर दें। 

इस साल भी खरीफ का सीजन आते ही केंद्र सरकार ने पराली के मैनेजमेंट (फसल अवशेष प्रबन्धन) को लेकर कमर कस ली है, जिसके लिए अब सरकार एक्टिव मोड में काम कर रही है। 

अभी तक सरकार दिल्ली के आस पास तीन राज्यों के लिए पराली प्रबंधन के मद्देनजर 600 करोड़ रुपये का फंड आवंटित कर चुकी है। यह फंड हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली मैनेजमेंट के लिए जारी किया गया है।

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ने पराली मैनेजमेंट के लिए राज्यों की तैयारियों की समीक्षा के लिए बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में बताया कि, पिछले 4 सालों में केंद्र सरकार ने पराली से छुटकारा पाने के लिए किसानों को 2.07 लाख मशीनों का वितरण किया है। 

जो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को वितरित की गईं हैं। बैठक में तोमर ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के द्वारा पराली जलाने को लेकर बेहद चिंतित है। 

पराली मैनेजमेंट के मामले में राज्यों की सफलता तभी मानी जाएगी जब हर राज्य में पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं, यह एक आदर्श स्थिति होगी। 

इस लक्ष्य को पाने के लिए राज्य सरकारों को कड़ी मेहनत करनी होगी और अपने यहां के किसानों को पराली मैनेजमेंट के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि किसान पराली जलाने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझ पाएं।

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बैठक में कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि पराली जलाने के बेहद नकारात्मक परिणाम हमारे पर्यावरण के ऊपर भी होते हैं। ये परिणाम अंततः लोगों के ऊपर भारी पड़ते हैं। 

ऐसे में राज्यों के जिलाधिकारियों को उच्चस्तरीय कार्ययोजना बनाने की जरुरत है, ताकि एक निश्चित अवधि में ही इस समस्या को देश से ख़त्म किया जा सके। 

मंत्री ने कहा कि राज्यों को और उनके अधिकारियों को गंभीरता से इस समस्या के बारे में सोचना चाहिए कि इसका समस्या का त्वरित समाधान कैसे किया जा सकता है।

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कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमें वेस्ट को वेल्थ में बदलने की जरुरत है, यदि किसानों को यह समझ में आ जाएगा कि पराली के माध्यम से कुछ रुपये भी कमाए जा सकते हैं, तो किसान जल्द ही पराली जलाना छोड़ देंगे। 

इसलिए कृषि अधिकारियों को चाहिए कि पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर के बारे में किसानों को बताएं। जहां भी पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर लगा हुआ है वहां किसानों को ले जाकर उसका अवलोकन करवाना चाहिए, 

साथ ही इसके अधिक से अधिक उपयोग करने पर जोर दें, जिससे किसानों को यह पता चल सके कि पराली के द्वारा उन्हें किस प्रकार से लाभ हो सकता है।

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