राधेश्याम परिहार जो कि आगर मालवा जिले में रहते है, ये अपने प्रदेश में प्राकृतिक खेती करने में पहले स्थान पर है. मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें ये उपाधि दी है.
राधेश्याम ने 12 वर्षो से खेती छोड़कर मसाला और औषधि की जैविक खेती कर रहे है. इन्हे कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है, जैसे- कृषक सम्राट, धरती मित्र, कृषक भूषण और इनके कार्य को राज्य स्तरीय सराहना देने के लिए इन्हें जैव विविधता पर 2021-22 का राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार भी दिया गया है.
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ये रसायनिक खेती से ज्यादा प्राकृतिक खेती में विश्वास रखते थे. जिस वजह से इन्होंने रसायनिक खेती का विरोध किया. जिसकी वजह से उनके पिता ने उनको एक एकड़ जमीन जमीन देकर उन्हें अलग कर लिया. जिसके बाद राधेश्याम ने मसाला और औषधि में खेती शुरू की और मेहनत करके अपना ब्रांड बनाया और उसे तमाम ऑनलाइन साइट्स पर उपलब्ध करवाया और बेचना शुरू किया.
पहले मिट्टी की जांच कराई, ज्यादातर कमियों को दूर किया और फिर इतनी मेहनत करने के बाद वो सफल हो गए. अभी के समय राधेश्याम किसान नही है अब वो कारोबारी बन गए है. अभी के समय सालाना टर्नओवर जैविक खेती के उत्पादों का एक करोड़ 80 लाख रुपए है.
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प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी देने के लिए राधेश्याम जी ने फार्म हाउस में पाठशाला शुरू की. इनसे प्रभावित होकर 10 जिलों के 1200 से अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती करना शुरू किया और काफी मुनाफा भी कमा रहे है. फार्म में फूड प्रोसेसिंग इकाई, दुर्लभ वनस्पतियों, रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान, जीव-जंतुओं की प्राकृतिक खेती में भूमिका और उनका योगदान जैसे विषयों पर समय-समय पर नि:शुल्क संगोष्ठी की जाती है.
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परंपरागत खेती में मुनाफा न होने के कारण राधेश्याम ने कृषि मेलो और कृषि विश्वविद्यालयों में जाकर समझा कि मसाला एवं औषधि की खेती करके अधिक मुनाफा कैसे कमाए. फिर उन्होंने पारंपरिक खेती में कम ध्यान दिया और मसाला और औषधि की खेती शुरू कर दी. जब देखा कि मसाला और औषधि की खेती में ज्यादा मुनाफा मिल रहा है तो उन्होंने पारंपरिक खेती बंद कर इसी राह में चल पड़े और आज अच्छा मुनाफा कमा रहे है.
यदि मसाले की खेती करनी है तो उसके लिए रेतीली दोमट वाली मिट्टी की जरूरत है. साथ ही उस जमीन में पानी की बरसात के पानी का भराव न होना चाहिए नही तो फसल खराब हो सकती है. इसी वजह से राधेश्याम साल का 1 करोड़ 80 लाख रुपए कमाते है.