सूखे बुंदेलखंड में प्रेम सिंह ने खिलाई फुलवाड़ी

Published on: 26-Jun-2020

प्राकृतिक संकटों से ग्रस्त बुंदेलखंड में कृषि के सस्टेनेबल मॉडल को देख के आश्चर्य होता है। यह मॉडल विकसित किया पढ़े लिखे युवा किसान प्रेम सिंह ने। दर्शनशास्त्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से m.a. की परीक्षा पास करने के बाद उनके मन में कृषि, किसान और किसानी को लेकर कई तरह के सवाल थे। इन सवालों का जवाब तलाशते तलाशते वह खुद किसान बन गए। परिवारों ने भी प्रारंभिक दौर में उनका साथ नहीं दिया क्योंकि वह चाहते थे कि पढ़ लिख कर बेटा एक अदद सरकारी नौकर बन जाए। आज उनके यहां अनेक शोधार्थी विदेशों से आते हैं और खेतीवाड़ी का ज्ञान प्राप्त करते हैं।उनके पास खेती किसानी की कोई डिग्री नहीं है लेकिन वह लाभकारी खेती करके दिखाते हैं।किसान प्रेम सिंह कहते हैं कि उन्हें सरकारी नौकरी में इसलिए नहीं जाना था कि वहां कभी राजनीतिक दबाव कभी अफसरों का दबाव और दबावों के बीच ना चाहते हुए भी अन्याय करने की प्रवृत्ति वह अपना ही नहीं सकते थे। दूसरा अहम सवाल यह था की सरकारी नौकरियों में शीर्ष मानी जाने वाली आईएस-पीसीएस कुछ जितना वेतन मिलता है उतने धन की व्यवस्था यदि कृषि से और गांव में रहकर हो जाए तो उन्हें वह ज्यादा माकूल नजर आया। बस यहीं से उन्होंने अपनी किसानी और लाभकारी किसानी की जीवन यात्रा शुरू करदी। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड स्थित बांदा जनपद का छोटा सा गांव है बड़ोखर खुर्द। यही किसान प्रेम भाई का बगीचा और फार्म हाउस है। उनकी बगिया में बैठकर लोगों को वही आनंद आता है जो किसी सिद्ध योगी के आश्रम में पहुंच कर महसूस होता है। उनके आवासीय परिसर का डिजाइन भी बेहद कम कीमत वाला है। वह लाभकारी एवं सस्टेनेबल फार्मिंग के लिए कृषि, पशु और बाग तीनों का सामंजस्य जरूरी मानते हैं। वह कहते हैं जब तक यह तीनों कंपोनेंट नहीं होंगे खेती लाभकारी नहीं हो सकती।मल्टीनेशनल कंपनियों के महंगे उत्पाद खरीद कर किसान उनकी तिजोरियां भर रहा है और खुद कंगाल हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहूं तो 1960 के दशक में किसान भुखमरी के शिकार होकर मरते थे । आज अन्न के भंडार जरूरत से ज्यादा भरे हुए हैं उसके बाद भी किसान मर रहे हैं और 60 के दशक से ज्यादा मर रहे हैं। पिताजी के लाख मना करने के बाद भी उन्होंने खेती के विभिन्न मॉडलों पर काम किया।अंत में उन्होंने जो मॉडल बनाया उसे नाम दिया आवर्तनशील खेती। क्या है आवर्तनशील खेती किसान प्रेम सिंह ने 1986 में खेती शुरू की।उन्होंने पाया कि सभी किसान रासायनिक खेती की ओर उन्मुख हैं।इसमें हर तरह से किसान दुकानदार और बड़ी-बड़ी कंपनियों के उत्पादों पर निर्भर था। इसके लिए मोटी रकम भी चाहिए थी।उन्हें सुजाह यदि किसान इन मल्टीनेशनल कंपनियों पर अपनी निर्भरता कम कर दे और उत्पाद से वाजिब कीमत मिल जाए तो लाभ कई गुना बढ़ सकता है। बस इसी फार्मूले पर उन्होंने काम को आगे बढ़ा दिया। इसके लिए उन्होंने गोबर की खाद तालाबों का निर्माण जैसे प्रयोग शुरू किए ताकि सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में पानी की कमी के बाद भी बेहतर उत्पादन लिया जा सके। 1989 में खेती से उन्हें और उनके आसपास के किसानों को लाभ होने लगा। उनका आत्मविश्वास भी तेजी से बड़ा लेकिन इसमें आमूलचूल बदलाव आया जब वह है कर्नाटक में एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे और एक छोटी सी बच्ची ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद से सवाल किया कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों को किसान क्यों नहीं बनाना चाहता। उनके पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं था। बस यहां किसानी को लेकर जुनून प्रेम सिंह में भर गया और उन्होंने ठान लिया क्यों है कृषि को लाभकारी बनाने के मॉडल पर ही काम करेंगे ताकि किसान अपने बच्चे को किसान ही बनाने की सोचे और खेती से उसके परिवार की जरूरत है भी आसानी से पूरी हों। आज वह हर तरह की जैविक खेती करते हैं और उनके उत्पाद दिल्ली के बड़े बड़े मॉल में उचित कीमत पर बिकते हैं। मथुरा जैसे छोटे शहरों में भी उनके जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने लगी है। वह अपने मॉडल में खेती को बराबर के तीन हिस्सों में बांटते हैं।एक हिस्से में खेती दूसरे में बागऔर तीसरे में पशु। पशु वाले हिस्से में पशुओं के रहने और उनके चारे का इंतजाम किया जाता है। प्रसंस्करण पर जोर किशन प्रेम सिंह कहते हैं कि किसानों को अपनी फसलें सीधे-सीधे न बेचकर उनका प्रसंस्करण करना चाहिए। अगर गेहूं उगाते हैं तो उसका दलिया बनाकर बेचें, आटा बनाकर बेचें। उनके प्रयासों का लाभ अकेले उनके गांव को नहीं बल्कि समूचे क्षेत्र को मिल रहा है। किसान विद्यापीठ की स्थापना जो किसान खेती करने में असफल सिद्ध हो रहे हैं उन किसानों को किसान विद्यापीठ के माध्यम से ट्रेनिंग प्रदान करने के अलावा लाभकारी खेती के गुर सिखाए जाने का काम भी उन्होंने शुरू किया है।

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