अब किसानों अपना अनाज बेचने के लिए मंडी आने की जरूरत नहीं होगी। एफपीओ यानी फार्मर प्रोडयूसर आर्गनाइजेशन, किसान उत्पादक संगठन अपने उत्पाद अपने संग्रह केन्द्रों पर बेच सकेंगे। दूर बैठे खरीददारों को कोई परेशानी न हो इस लिए किसान अपने उत्पाद की गुणवत्ता की रिसीट अपलोड कर सकेंगे। देश में हजारों एफपीओ हैं। सरकार इनके संग्रह केंद्रों को गोदामों के तौर पर पंजीकृत कर रही है, जिन्हें बाद में ई-नाम से जोड़ा जा सकता है।
किेसान अब इलेक्ट्रिक राष्ट्रीय कृषि मंडी (ई-नाम) पोर्टल के माध्यम से सीधे तौर पर अपने उत्पाद बेच पाएंगे। केन्द्र ने राज्यों से इसके लिए तैयार रहने को कहा है। इसे पूर्व राज्यों ने अपने गोदामों को मार्केट यार्ड (कृषि उत्पादों की खरीद-बिक्री एवं मूल्यांकन केंद्र) घोषित करने पर हामी भरी थी। देश में लॉकडाउन के बीच किसानों की मदद के लिए कई अन्य उपायों पर भी काम चल रहा है।
इनमें फसलों को किसान संगठनों के संग्रह केंद्रों तक पहुंचाने और वहां से ई-नाम पर इनकी बिक्री के प्रावधान भी शामिल हैं। इसके साथ ही परिवहन सेवा प्रदाताओं को ई-नाम प्लेटफॉर्म से जोडऩे पर भी विचार चल रहा है। ये सभी सुधार अप्रैल तक लागू करने की योजना है। इसके लिए राज्यों को अपने गोदामों को मार्केटयार्ड मंडी घोषत करना है। कोराना के चलते यातो मंडियां बंद हैं या फिर माल के उठान के इंतजामात नहींं हैं।
दलहन, तिलहन पेराई इकाइयां और फ्लोर मिलों तक लॉकडाउन के कारण जिंस नहीं पहुुंच पा रहे हैं। इन दिक्कतों के बीच सरकार ने ई-नाम व्यवस्था से जुड़े राज्यों को डब्ल्यूडीआरए के तहत पंजीकृत गोदामों को बाजार के तौर पर अधिसूचित करने के लिए कहा है। देश के करीब 16 राज्य इस बात के लिए सहमत हो गए थे, लेकिन उन्होंने अब तक अपने किसी गोदाम को मार्केट यार्ड घोषित नहीं किया है।
सरकार में एक सूत्र ने बताया कि राज्यों को इस बारे में औपचारिक तौर पर सूचित किया जाएगा। सरकार ने ई-नाम पोर्टल से देश के 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की मंडियों को जोड़ दिया है। इनके अलावा देश की 416 और मंडियां भी ई-नाम पोर्टल से जोड़ी जाएंगी, जिससे इनकी कुल संख्या बढ़कर 1,000 हो जाएंगी। ई-नाम व्यवस्था से किसान अपनी फसलें गोदामों तक ला सकते हैं।
गोदामों में उनकी फसलों का वर्गीकरण गुणवत्ता के आधार पर किया जाएगा और अगर गोदाम मार्केट यार्ड घोषित किए गए हैं तो वे एक इलेक्ट्रिॉनिक रिसीट जारी करेंगे। यह रिसीट ई-नाम से जोड़ दी जाएगी। इस तरह, यह रिसीट फ्रीली ट्रांसफरेबल निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट, ईएनडब्ल्यूआर मानी जाएगी। इस प्रक्रिया के बाद किसानों पर उनकी बिकी फसलों की आपूर्ति की जिम्मेदारी नहीं होगी और खरीदारों को ही इसका प्रबंध करना होगा।