चन्दन की खेती: चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है. ये गीत लोगों के जेहन में जब भी आता है तो चन्दन की भी हमें याद दिलाता है. चन्दन को हिन्दू धर्म में तो बहुत ही ऊँचा स्थान प्राप्त है. भारत में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहाँ किसी न किसी रूप में चन्दन मौजूद न हो. चन्दन को माथे पर लगाया जाता है, मंदिर में भगवान जी को लगाया जाता है तथा इसकी लकड़ी को अंतिम संस्कार में भी प्रयोग में लाया जाता है.जो की हिन्दू धर्म में इसकी महत्ता को दर्शाता है. इसके अलावा इसका प्रयोग औषधीय रूप में भी किया जाता है, चहरे की सुंदरता बढ़ने के लिए या त्वचा में निखार लेन के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है. इसका प्रयोग इत्र बनाने में भी किया जाता है, सबसे खास बात ये है की इसका प्रयोग जन्म से मृत्यु तक किसी न किसी रूप में होता है. चन्दन की खेती: चन्दन की खेती करने को अभी तक कोई खास योजना नहीं आई या कह सकते हैं की किसी किसान या सरकार ने अपनी इच्छा शक्ति नहीं दिखाई. इससे ये हुआ की किसी ने भी आगे बढ़कर किसी भी औषधीय पौधे की खेती नहीं की. चन्दन की लकड़ी की बाजार में मांग: चन्दन की लकड़ी की मांग और उपलब्धता में बहुत अंतर है यही कारण है की इसकी लकड़ी 8000 से 12000 प्रति किलो के हिसाब से जाती है. इसकी मांग भारत ही नहीं पूरे विश्व में इसकी मांग होती है. चन्दन जितना महॅगा है उतना ही इसमें अपराध भी पनपा है. बीरप्पन को 90 के दशक में चन्दन और हाथी दांत ने अपराध की दुनियां में मशहूर कर दिया था. अकेले हिन्दुस्थान में ही चन्दन की खपत सप्लाई से ज्यादा है. इसमें समझने वाली बात है की भारत में ही इतनी मांग और उत्पादन है या विश्व के दूसरे देशों में भी तो चन्दन होता होगा न ? फिर भारत के चन्दन की ही इतनी मांग क्यों है? विश्व में भारत के चन्दन का सर्वोच्च स्थान है. इस लिए भारतीय चन्दन की मांग सबसे ज्यादा है. चन्दन की प्रजातियां: चन्दन की 16 प्रजातियां पाई जाती है. जिनमे सेंत्लम एल्बम प्रजातियाँ सबसे सुगन्धित तथा औषधीय गुणों से भरपूर है | इसके अलवा सफ़ेद चन्दन, सेंडल, अबेयाद, श्रीखंड, सुखद संडालो प्रजाति की चन्दन भी पाया जाता है. चन्दन के हरे पेड़ में खुशबू नहीं होती है इसकी सुखी लकड़ी में ही खुशबू होती है. इसका प्रयोग खिलोने, घर के फर्नीचर बनाने में भी किया जाता है. इसका पेड़ सामान्यतः १० से १२ साल में पूरा पेड़ बन जाता है. इस पेड़ की ऊँचाई 18 से लेकर 20 मीटर तक होती है। यह परोपजीवी पेड़, सैंटेलेसी कुल का सैंटेलम ऐल्बम लिन्न (Santalum album linn.) है। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सौगंधिक तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 8 से लेकर 12वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिये ढालवाँ जमीन, जल सोखनेवाली उपजाऊ चिकनई मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी. तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। गुण और प्रयोग: श्वेत चंदन कडवा, शीतल, रुक्ष, दाहशामक, पिपासाहर, ग्राही, ह्रदय संरक्षक, विषघ्न, वण्र्य, कण्डूघ्न, वृष्य, आहादकारक, रक्तप्रसादक, मूत्रल, दुर्गंधहर एवंं अंगमर्द-शामक है। इसका उपयोग ज्वर, रक्तपित्त विकार, तृषा, दाह, वमन, मूत्रकृच्छू, मूत्राघात, रक्तमेह, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, उष्णवात (सोजाक), रक्तातिसार तथा अनेक चर्मरोगों में किया जाता है। १. पित्तज्वर, तीव्रज्वर एवं जीर्णज्वर में चंदन के प्रयोग से दहा एवं तृषा की शांती होती है तथा स्वेद उत्पन्न होकर ज्वर भी कम होता है। ज्वर के कारण हृदय पर जो विषैला परिणाम होता है वह भी इसके देने से नहीं होता है। २. नारियल के जल में चंदन घिसकर २ तो० की मात्रा में पिलाने से प्यास कम होती है। ३. चंदन को चावल की धोवन में घिस कर मिश्री एवं मधु मिलाकर पिलाने से रक्ततिसार, दाह, तृष्णा एवं प्रमेह आदि में लाभ होता है। इसी प्रकार मूत्रदाह, मूत्राघात, रक्तमेह एवं सोजाक में चंदन को चावल की धोवन में घिस कर मिश्री मिलाकर पिलाते हैं। ४. आंवले के रस के साथ चंदन देने से वमन बंद होता है। ५. दुर्गंध युक्त श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर एवं प्रमेह आदि में चंदन का काथ उपयोगी है। चन्दन की खेती के लिए मिट्टी: सामान्यतः चन्दन का पेड़ किसी भी तरह की उपजाऊ जमीन में उगाया जा सकता है लेकिन इसको जैसा हमने ऊपर बताया है न ज्यादा गर्मी और न ही ज्यादा ठण्ड बर्दाश्त होती है. जैसे इसको राजस्थान के रेतीले और गर्म स्थान पर नहीं उगाया जा सकता ऐसे ही इसे पहाड़ के बर्फीले इलाके में भी नहीं उगाया जा सकता है. इसके लिए ज्यादा पानी वाली मिट्टी भी मुफीद नहीं है इसको शुष्क और सामान्य मौसम और मिट्टी वाले क्षेत्र में उगाया जा सकता है. पेड़ लगाने का तरीका: चन्दन के पेड़ लगाने का तरीका किसान के ऊपर निर्भर करता है वो उसे खेत की मेड पर भी लगा सकता है और पूरे खेत में भी लगा सकता है. चन्दन का पेड़ अर्धपरजीवी पेड़ है अर्थात ये आधा भोजन खुद तैयार करता है तथा आधा दूसरे पौधे से लेता है तो इसके साथ किसी दूसरे पौधे को भी लगाया जाता है नहीं तो चन्दन का पौधा सुख जायेगा. आप सहायक पौधे के रूप में नीम, मीठा नीम , सहजन , या किसी अन्य पौधे को भी लगा सकते है. बशर्ते वो भी पौधा बारहमासी होना चाहिए. पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 फुट की दूरी होनी चाहिए. चंदन के पौधे मिलने की जगह: चंदन की खेती के लिए बीज तथा पौधे दोनों खरीदे जा सकते हैं। इसके लिए केंद्र सरकार की लकड़ी विज्ञान तथा तकनीक (Institute of wood science & technology) संस्थान बैंगलोर में है। यहां से आप चंदन की पौध प्राप्त कर सकते हैं। पता इस प्रकार है : Tree improvement and genetics division Institute of wood science and technology o.p. Malleshwaram Bangalore – 506003 (India) E-mail – tip_iwst@icfre.org tel no. – 00 91-80 – 22-190155 fax number – 0091-80-23340529 चन्दन के पौधे के रोग: सैंडल स्पाइक (Sandle spike) नामक रहस्यपूर्ण और संक्रामक वानस्पतिक रोग इस वृक्ष का शत्रु है। इससे संक्रमित होने पर पत्तियाँ ऐंठकर छोटी हो जाती हैं और वृक्ष विकृत हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के सभी प्रयत्न विफल हुए हैं। चन्दन को लेकर भ्रांतियां: चन्दन को लेकर लोगों में बहुत भ्रांतियां हैं जैसे " चन्दन विष ब्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग" इससे तात्पर्य यह है की चन्दन के पेड़ से यदि विषधर भी लिपटे रहें तो भी वो अपने गुण नहीं छोड़ता और चन्दन की खेती के लिए सरकार से कोई अनुमति लेने की भी जरूरत नहीं होती. हाँ जब आपको पेड़ कटाने हों तो तभी आपको सरकार से अनुमति की जरूरत होती है जो और भी तरह के पौधों के लिए लेनी होती है और ये आसानी से मिल भी जाती है.