टमाटर की खेती बेहद श्रमसाध्य खेती है। जिन किसान परिवारों में सदस्यों की संख्या पर्याप्त है वह इस खेती से अच्छा लाभ ले सकते हैं। इसकी फसल में जब फल पकने लगते हैं तो तुड़ाई एवं छंटाई के लिए पर्याप्त लोगों की आवश्यकता होती है। टमाटर की खेती करने से पूर्व यह ध्यान रखना चाहिए कि किस्म यादि हाइब्रिड हो और उसमें रस आदि का करेक्टर देशी किस्मों का हो तो कीमत अच्छी मिलती है। मसलन फल का छिलका तो मोटा हो लेेकिन फल में जूस पर्याप्त खटास लिए हो। हाइब्रिड स्वर्ण वैभव किस्म 55 से 60 दिन में पक जाती है। इससे 700 से 800 कुंतल प्रति हैक्टेयर फल मिलते हैं। इसके अलावा एक हैक्टेयर में खेती के लिए इसकी बीजदर 300 से 350 ग्राम लगती है। अविनाश दो किस्म 85 से 90 दिन लेकर 600 से 700 कुंतल उपज देती है। रूपाली किस्म से भी 80 से 85 दिन बाद 500 कुंतल तक उपज मिल जाती है। हिमसोना नामक किस्म से भी बंपर उपज मिलती है और बाजार में इसकी भरपूर मांग होती है। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (IIHR) ने टमाटर की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जिसके एक पौधे से 19 किलो टमाटर का उत्पादन होने के दाबे किए जा रहे हैं। टमाटर की इस नई उन्नतशील किस्म का नाम अर्का रक्षक (एफ) है। गैर हाइब्रिड किस्मों में काशी अमृत, काशी, पूसा, काशी अनुपम सरीखी अनेक किस्में हैं। 75 से 90 दिन में पकने वाली इन किस्मों से 450 कुंतल तक उत्पादन लिया जा सकता है।
विशेष: किसानों को सलाह दी जाती है कि वह किसी भी नई फसल की खेती करने से पहले अपने आस पास के किसानों से इसकी जानकारी जरूर लें। निकट के कृषि विज्ञान केन्द्र एवं स्तरीय दूकानदार से भी जानकारी लेने के बाद उनके इलाके में प्रचलित किस्मों का ही चयन करें। बाजार की मांग को विशेषतौर पर ध्यान रखें।
टमाटर में खरपतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखें।
आद्रगलन रोग के नियंत्रण के लिए बीज को किसी भी प्रभावी फफूंदनाशक थीरम, केप्टान आदि में से किसी एक से उचारित करके बाएंं। अगेती झुलसा रोग नियंत्रण हेतु भी खड़ी फसल पर कापर आक्सी क्लोराइड या कार्बन्डाजिम आदि की दो से तीन ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। टमाटर के पत्तीमोड़ विषाणु रोग के समाधान के लिए मोनोक्रोटोफास दवा की दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। प्रारंभिक अवस्था में संक्रमित चंद पौधों को उखाड़कर गड्ढे में दबा दें।