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पशुपालन में इन 5 घास का इस्तेमाल करके जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

Published on: 02-May-2023

भारत दुनिया का सबसे बाद दुग्ध उत्पादक देश है। दुनिया में उत्पादित होने वाले कुल दूध का 24 फीसदी उत्पादन अकेले भारत में होता है। 

इस बीच भारत की बड़ी जनसंख्या की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए सरकार लगातार पशुपालन को प्रोत्साहित कर रही है। ताकि देश में पशुओं से प्राप्त उत्पादों की पूर्ति की जा सके। इसके लिए सरकार समय-समय पर कई योजनाएं लॉन्च करती रहती है।

जिससे किसानों को फायदा होता है और देश में पशुपालन में बढ़ोत्तरी होती है। लेकिन इन सब के बीच किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या पशु चारे को लेकर है, जिसके बिना पशुपालन संभव नहीं है। 

भारत में ऐसे कई पशुपालक या किसान हैं जो अपने पशुओं को उच्च गुणवत्ता वाला पशु चारा उपलब्ध नहीं करवा पाते जिसके कारण कई बार दुग्ध उत्पादन में कमी आती है और किसानों को इस व्यवसाय से अपेक्षाकृत कमाई नहीं हो पाती।

इसलिए आज हम ऐसे हरे चारे की किस्मों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जिनकी मदद से दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी, साथ ही पशुओं को अतिरिक्त पोषण मिलेगा जिससे पशु स्वस्थ्य रहेंगे और उन्हें किसी प्रकार का रोग नहीं होगा। 

नेपियर घास :

यह घास गन्ने की तरह दिखती है, जिसे हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है। यह बेहद कम समय में उग जाती है, साथ ही यह पशुओं में दूध की क्षमता बढ़ाती है, जिससे इसे बेहतरीन पशु आहार कहा जाता है। 

नेपियर घास मात्र 2 माह में तैयार हो जाती है। इसको खाने के बाद पशु चुस्त और तंदुरुस्त रहते हैं। नेपियर घास हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। इस घास की खेती में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। 

इस घास को एक बार लगाने के बाद किसान अगले 4 से 5 साल तक हरा चारा ले सकते हैं, इस हिसाब से इस घास की खेती में ज्यादा लागत भी नहीं आती है। 

जिन भी किसानों के पास 4 से 5 पशु हैं वो आधा बीघा खेत में नेपियर घास को लगा सकते हैं। इसे खेतों की मेड़ पर भी लगाया जा सकता है। 

इस घास में प्रोटीन 8-10 फ़ीसदी, रेशा 30 फ़ीसदी और कैल्सियम 0.5 फ़ीसदी होता है। अगर इस घास को दलहनी चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाया जाए तो यह ज्यादा लाभकारी साबित होती है।

बरसीम घास :

बरसीम घास खाने से पशुओं का पाचन सबसे अच्छा रहता है, इसलिए किसान भाइयों को पशुओं के खाने में इसे जरूर मिलाना चाहिए। 

यह घास कैल्शियम और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होती है, इसलिए इसके सेवन से पशुओं के दूध देने की क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है। सबसे पहले इसकी खेती प्राचीन मिस्त्र में की जाती थी। 

भारत में इसका उत्पादन उन्नीसवीं शताब्दी में आरम्भ हुआ है। वर्तमान में अमेरिका और यूरोप में पशु चारे के रूप में बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है। भारत में यह घास मुख्यतः नवम्बर से मई तक उगाई जाती है। 

यह एक दलहनी फसल है, इसलिए इसकी खेती से मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती है। बरसीम में प्रोटीन, रेशा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, सोडियम तथा पोटेशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं।  

जिरका घास :

यह एक ऐसी घास है जिसको उगाने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। इसलिए इसकी खेती मुख्यतः राजस्थान, गुजरात मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है। 

इस घास को पशुओं को खिलाने से उनका हाजमा सही रहता है, जिससे दूध उत्पादन में वृद्धि होती है। इसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर माह के बीच की जाती है। जो भी किसान अपने पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, वो अपने पशुओं को जिरका घास जरूर खिलाएं। 

यह भी पढ़ें : जानिए कैसे करें बरसीम,जई और रिजका की बुआई

पैरा घास :

पैरा घास की खेती दलदली और अधिक नमी वाली जमीनों पर की जाती है। अगर खेतों में 2 से 3 फीट तक पानी भरा होता है तो यह घास तेजी के साथ बढ़ती है। बुवाई के 70 से 80 दिनों के बाद इस घास की पहली कटाई कर सकते हैं।

इसके बाद 35 से 40 दिनों बाद इसकी कटाई की जा सकती है। इस घास में 6 से 7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसके अलावा घास में 0.76 फीसदी कैल्शियम, 0.49 फीसदी फास्फोरस और 33.3 फीसदी रेशा होता है। 

यह घास करीब 5 मीटर ऊंचाई तक बढ़ सकती है। आमतौर पर पैरा घास की बुवाई मई से लेकर अगस्त के बीच की जाती है। 

इस घास के खेती नदी और तालाब के किनारे ऐसी जगह पर भी की जा सकती है जहां जुताई बुवाई संभव नहीं होती। पैरा घास की पहली कटाई बुवाई से 70 से 75 दिन बाद की जा सकती है। इसके बाद हर 35 दिन बाद इसकी कटाई की जा सकती है  

गिनी घास :

गिनी घास की खेती छायादार जगहों में की जाती है। भारत में मुख्य तौर पर इसकी खेती फलों के बागों में की जाती है। इस घास की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी गई है। 

इसकी बुवाई जून और जुलाई माह में की जाती है। बुवाई के समय इस घास की जड़ों की रोपाई की जाती है। इस इस की पहली कटाई बुवाई के 4 माह बाद की जाती है। 

इसके बाद हर 40 दिन में इस घास की कटाई की जा सकती है। गिनी घास पोषक तत्वों से भरपूर होती है, इसलिए इस घास को पशुओं को खिलाकर अच्छा खासा दुग्ध उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

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