Published on: 19-Dec-2023
जौ की खेती रेतीली से लगाकर मध्यम दोमट मृदा तक में की जा सकती है। परन्तु, इसकी शानदार उपज प्राप्त करने के लिए समुचित जल निकासी एवं अच्छी उर्वरकता वाली दोमट मृदा उपयुक्त मानी जाती है। जौ की खेती बाकी तरह की भूमि जैसे-लवणीय, क्षारीय अथवा हल्की मृदा में भी की जा सकती है।
बुआई का समय
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इसकी बिजाई के लिए जो बीज इस्तेमाल में लाया जाए, वह रोगमुक्त, प्रमाणित व क्षेत्र के अनुसार उन्नत किस्म का होना चाहिए। बीजों में किसी अन्य किस्म के बीज उपलब्ध नहीं होने चाहिए। बोने से पूर्व बीज के अंकुरण का परीक्षण अवश्य कर लेना चाहिए। जौ रबी मौसम की फसल है, जिसे सर्दी के मौसम में उत्पादित किया जाता है। सामान्य तौर पर इसकी बिजाई अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक की जाती है।
ये भी पढ़ें: जौ की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
सिंचाई
असिंचित क्षेत्राें में 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक जौ की बिजाई करनी चाहिए। वहीं, सिंचित क्षेत्राें में 25 नवंबर तक बिजाई कर देनी चाहिए। पछेती जौ की बिजाई 15 दिसंबर तक कर देनी चाहिए।
बीज एवं बीजाेपचार
जौ के लिए 80-100 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टयर बिजाई के लिए उपयुक्त है। जौ की बिजाई हल के पीछे कूंड़ों में अथवा सीडड्रिल से 20-25 सें.मी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर 5-6 सें.मी. गहराई पर करें। असिंचित दशा में 6-8 सें.मी. गहराई में बिजाई करें। बीज से उत्पन्न होने वाले रोगों पर नियंत्रण के लिए
बीज उपचार जरूरी है। खुली कंगियारी से संरक्षण के लिए 2 ग्राम बाविस्टन अथवा वीटावैक्स से प्रति कि.ग्रा. बीज उपचारित करें। बंद कंगियारी पर काबू करने हेतु थीरम तथा बाविस्टीन/ वीटावैक्स को 1:1 के अनुपात में मिलाकर 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज के लिए उपयोग करें।
असिंचित एवं सिंचित क्षेत्राें के लिए प्रजातियां
जौ की छिलका वाली उन्नत प्रजातियां जैसे कि - अंबर, ज्योति, आजाद, के 141, आरडी 2035, आर.डी. 2052, आरडी 2503, आरडी 2508, आरडी 2552, आरडी 2559, आरडी 2624, आरडी 2660, आर.डी. 2668, आरडी 2660, हरितमा, प्रीती, जागृति, लखन, मंजुला, आरएस 6, नरेंद्र जाै1, नरेंद्र जाै 2, नरेंद्र जाै 3, के 603, एनडीबी 1173, एसओ 12 हैं। बिना छिलके वाली उन्नत प्रजातियां गीतांजलि (के-1149), डीलमा, नरेंद्र जौ 4 (एनडीबी 943)।
ये भी पढ़ें: जौ की खेती में फायदा ही फायदा
ऊसरीली भूमि के लिए कुछ बेहतर किस्में
आजाद, के-141, जे.बी. 58, आर.डी. 2715, आर.डी. 2786, पी.एल. 751, एच.बीएल. 316, एच.बी.एल. 276, बी.एलबी. 85, बी.एल.बी. 56 व लवणीय एवं क्षारीय भूमि के लिए एन.डी.बी. 1173, आर.डी. 2552, आर.डी 2794, नरेन्द्र जौ-1, नरेन्द्र जौ-3 हैं।
माल्ट व बीयर के लिए उन्नत शानदार किस्में
प्रगति, तंभरा, डीएल 88 (6 धारीय), आरडी 2715, डीडब्ल्यूआर 28 व रेखा (2 धारीय) एवं डी.डब्ब्लूू आर. 28 तथा अन्य प्रजातियां जैसे-डी.डब्ल्यूआर.बी.91, डी.डब्ल्यू.आर.यू.बी. 52, बी.एच. 393, पी.एल. 419, पी.एल. 426, के. 560, के.-409, एन.ओ.आरजौ-5 आदि हैं।
ये भी पढ़ें: जानिये कैसे करें जौ की बुआई और देखभाल
जौ की फसल में उर्वरकाें का उपयोग इस प्रकार करें
उर्वरकों का इस्तेमाल मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना बेहतर रहता है। असिंचित दशा के लिए एक हैक्टेयर में 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 20 कि.ग्रा. पोटाश का इस्तेमाल करें। सिंचित तथा समय से बुआई के लिए प्रति हैक्टर 60 कि.ग्रा. नाइट्राेजन, 30 कि.ग्रा. फास्फाेरस तथा 20 कि.ग्रा. पोटाश और माल्ट प्रजातियाें के लिए 80 कि.ग्रा. नाइट्राेजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 20 कि.ग्रा पोटाश इस्तेमाल करें। ऊसर और विलंब से बिजाई की दशा में नाइट्रोजन 30 कि.ग्रा., फॉस्फेट 20 कि.ग्रा. और जिंक सल्फेट 20-25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर उपयोग करें।