राजमा की खेती कैसे करें: सम्पूर्ण मार्गदर्शन, जलवायु, मिट्टी, और उर्वरक प्रबंधन

Published on: 08-Nov-2024
Updated on: 08-Nov-2024

राजमा की खेती एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में की जाती हैं। भारत में राजमा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती हैं।

दलहनी फसलें जैसे की चना और मटर की तुलना में राजमा की उपज क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है। भारत में राजमा की खेती महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में अधिक की जाती हैं।

उत्तरी भारत के मदनी भोगों में रबी के मौसम के दौरान इसकी बुवाई का रकबा बढ़ रहा हैं। परंपरागत रूप से राजमा की खेती ख़रीफ़ के दौरान पहाड़ियों पर की जाती हैं।

हालाँकि बेहतर प्रबंधन के कारण मैदानी क्षेत्रों में रबी में अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस लेख में आप राजमा की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।

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राजमा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में राजमा की खेती ख़रीफ़ के मौसम में की जाती हैं। निचले पहाड़ी क्षेत्रों में इसे वसंत फ़सल के रूप में भी बोया जाता है। उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों में इसकी खेती रबी के दौरान की जाती है।

पाले और जलजमाव के प्रति राजमा की फसल अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। राजमा की फसल की उचित वृद्धि के लिए आदर्श तापमान सीमा 10 डिग्री -27 डिग्री C है।

अगर तापमान 30 डिग्री C से ऊपर चला जाता हैं तो, फूलों का गिरना एक गंभीर समस्या बन जाती हैं।

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राजमा की खेती के लिए मिट्टी और खेत की तैयारी 

राजमा की खेती के लिए हल्की दोमट रेत से लेकर भारी चिकनी मिट्टी उपयुक्त मानी जाती हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें की मिट्टी अत्यधिक घुलनशील लवणों से मुक्त और प्रतिक्रिया में तटस्थ होनी चाहिए।

राजमा के बीज मोटे और सख्त आवरण के होते हैं इसलिए अच्छे बीज बिस्तर की आवश्यकता होती है जिसे पूरी तरह से प्राथमिक जुताई द्वारा पूरा किया जाता है।

खेत को कल्टीवेटर, हैरो और हल की सहायता से अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। एक अच्छे बीज बिस्तर में भुरभुरी लेकिन सघन मिट्टी होती है।

पहाड़ियों की अम्लीय मिट्टी में बुआई से पहले चूने को मिलाना चाहिए जिससे की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकें।

बीज की मात्रा 

राजमा के बीज मोटे होते हैं इसलिए 100 - 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती हैं। बुवाई के समय बीज से बीज की दुरी 40 cm x 10 cm रखनी चाहिए।

खरीफ के दौरान राजमा की बुवाई जून के आखरी सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक समाप्त कर देनी चाहिए।

रबी की फसल के रूप में उगाई गयी राजमा की बुवाई अक्टूबर के आखिर में या नवंबर की 15 तारीख तक की जा सकती हैं।

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राजमा की फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन

राजमा एक दलहनी फसल हैं परन्तु जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण में समर्थ नहीं हैं। इसलिए इसको नाइट्रोजन की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती हैं।

राजमा के लिए 90-120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर इष्टतम पाया गया है, नाइट्रोजन का आधा भाग बेसल के रूप में प्रयोग करना चाहिए: पहली सिंचाई के बाद बुआई और शेष आधा भाग शीर्ष ड्रेसिंग के रूप में दें।

राजमाश फॉस्फोरस के प्रति अच्छी प्रतिक्रिया देता है, इसकी फॉस्फोरस आवश्यकता अन्य दलहनी फसलों की तुलना में स्पष्ट रूप से अधिक है, इसलिए फॉस्फोरस 60-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें।

राजमा की फसल में जल प्रबंधन 

राजमा की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। इसलिए उच्चतम उत्पादकता प्राप्त करने के लिए बुआई के 25 दिन बाद सिंचाई करना सबसे महत्वपूर्ण है और दूसरी सिंचाई बुआई के 75 दिन बाद करें।

राजमा में खरपतवार प्रबंधन

राजमा की फसल में बुआई के 30-35 दिन बाद एक हाथ से निराई/गुड़ाई करें या बीज के उगने से पहले पेंडिमिथालीन 0.75 से 1 कि.ग्रा. ए.आई./हेक्टेयर की दर से बुआई के तुरंत बाद 500-600 लीटर पानी में छिड़काव करें। ये कार्य खरपतवारों से होने वाले नुकसान को ईटीएल (आर्थिक सीमा स्तर) से नीचे रखने में मदद करता है।

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राजमा की फसल की कटाई एवं मड़ाई

राजमा की फसल बुवाई से 125-130 दिनों में पक जाती है। पूर्ण परिपक्वता प्राप्त करने के बाद पौधों को दरांती से काटा जाता है।

पत्तियों का गंभीर रूप से गिरना, फलियों का रंग बदलना और दानों का कड़ा होना पकने का संकेत होते हैं।

कटाई के बाद कुछ दिनों तक धूप में सुखाने के बाद इसे खेत में बंडलों में एकत्र किया जाता है। थ्रेशिंग या मानव श्रम से इसको अलग किया जाता हैं।

एक अच्छी तरह से प्रबंधित फसल मैदानी इलाकों की सिंचित परिस्थितियों में आसानी से 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज दे सकती है और 5-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर वर्षा आधारित फसल के रूप में उपज दे सकती है। 

फसल से बीज अलग होने के बाद मवेशियों के लिए 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भूसा भी हो जाता हैं।

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