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आंवला की खेती: उन्नत किस्में, जलवायु आवश्यकताएं, और उच्च उत्पादन के तरीके

Published on: 21-May-2024
Updated on: 21-May-2024

आंवला फल विटामिन सी का एक समृद्ध स्रोत हैं। सूखे अवस्था में भी विटामिन को बनाए रखने की क्षमता इस पेड़ में देखी गई है, जो अन्य फलों में संभव नहीं है। 

इसके फलों से विटामिन सी की पूर्ति होती है और सूखा पाउडर सिंथेटिक विटामिन सी से भी बेहतर है। इसकी खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है। 

इस लेख में हम आपको आंवला की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

आंवला पौधे का वानस्पतिक विवरण क्या है? (What is the botanical description of amla plant?)

यूफोरबियासी का सदस्य होने के नाते, जिसमें अधिकांश जेरोफाइट्स और कैक्टि शामिल है, रसीले पौधों से संबंधित, आँवला एक कठोर सूखा प्रतिरोधी फल का पेड़ है। 

इसमें पानी के ठहराव को भी झेलने की क्षमता है। इसे आंवला, अमली और नेली आदि नामों से भी जाना जाता है। आंवला की उत्पत्ति के संभावित केंद्र दक्षिण मध्य भारत, श्रीलंका, मलेशिया और दक्षिण चीन मानें जाते है।

इसका खांसी, ब्रोंकाइटिस, पीलिया, मधुमेह, अपच, दस्त और बुखार जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोग किया जाता है। 

सौ ग्राम फल में 14 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.5 ग्राम प्रोटीन, 1.2 ग्राम आयरन, 0.3 मिलीग्राम विटामिन बी और 600 मिलीग्राम होता है। 

विटामिन सी., आयरन (1.2 मिलीग्राम/100 ग्राम) और विटामिन बी की उच्च मात्रा के कारण इस के फलों के अर्क का उपयोग कई आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक तैयारियों में किया जाता है, ऐसा माना जाता है कि आंवला के सेवन से बालों का सफ़ेद होना और झड़ना रोका जा सकता है।

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आंवले की खेती के लिए जलवायु एवं मिट्टी संबंधी आवश्यकताएँ

आंवला एक उपोष्णकटिबंधीय फल है, लेकिन बड़े पेड़ 0 से 46 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकते हैं। किंतु आंवला के पेड़ अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में तेजी से बढ़ते हैं। 

आवला के पेड़ भारी मिट्टी में भी उग सकते हैं। फसल विकास के शुरुआती चरण में भारी बारिश के दौरान हल्की जल निकासी भी की जाती है। पेड़ मिट्टी (पीएच 8.5) और सिंचाई के पानी भी काफी क्षारीयता को सहन करते हैं। 

आंवला की उन्नत किस्में 

आंवला की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना बहुत अवश्य है। आंवला की उन्नत किस्में निम्नलिखित है -

1. चकैया

इस किस्म के फल चपटे, चिकनी त्वचा वाले होते हैं जिनका रंग हरा होता है।

फल छोटे से मध्यम आकार के होते हैं जिनका वजन 26 ग्राम होता है और इनका टीएसएस 10.70 होता है।

2. बनारसी

इस किस्म के फल आकार में बड़े, चपटे आयताकार, चिकनी त्वचा वाले, पीले रंग के होते हैं। औसतन प्रत्येक फल का वजन 38 ग्राम होता है। पेड़ों को सीधी वृद्धि की आदत होती है।

3. कृष्णा: (एनए - 4)

इस किस्म के फल मध्यम से बड़े आकार (40 ग्राम) के शंक्वाकार, कोणीय, चिकने पीले होते है। 

इसका गूदा रेशे रहित होता है जो अर्धपारदर्शी और कठोर होता है।

4. कंचन: (NA-5)

यह चकैया का आकस्मिक अंकुर माना जाता है। इस किस्म के फल मध्यम आकार के(32 ग्राम) चपटे आयताकार होते है और त्वचा चिकनी, पीले रंग की होती है।

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पौधों की रोपाई के लिए भूमि की तैयारी (land preparation for cultivation of amla)

क्योंकि आंवले का पौधा वर्षों तक फसल देता है इसके लिए खेत को पूरी तरह से तैयार करना चाहिए। 

ताकि पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं, इसके लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से गहरी जुताई करनी चाहिए। 

जुताई के बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें, ताकि सूर्य की रोशनी जमीन पर अच्छी तरह से पड़े। इसके बाद रोटावेटर को खेत में चलाकर फिर से जुताई कर दें। मिट्टी भुरभुरा होने पर पाटा लगाकर खेत को समतल बना ले।

इसके बाद खेत में चार मीटर की दूरी पर दो फ़ीट चौड़ा और डेढ़ फिट गहरा गढ्ढे बनाओ। बारह से पंद्रह फ़ीट की दूरी पर पंक्तियां बनाओ। 

इसके बाद जैविक और रासायनिक उर्वरकों को मिट्टी में मिलाकर गड्डो में भर दें। पौध रोपाई से एक महीने पहले इस गड्डो को तैयार कर लेना चाहिए।

आंवला की नर्सरी की तैयारी

खेत में आंवला के पौधों को लगाने से एक महीने पहले उन्हें नर्सरी में तैयार कर लिया जाता है। अब पौधों को तैयार किए गए गड्डो के बीच में एक छोटा सा गड्डा बनाकर लगाना चाहिए। 

इसके बाद पौधों को अच्छी तरह से मिट्टी से दबा दें। सितंबर में आंवला के पौधों को लगाना सबसे अच्छा है क्योंकि इस समय पौधे अच्छे से पकते हैं।

आंवला की फसल में सिंचाई प्रबंधन

ऑंवला के पौधों को खेत लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके बाद गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार तथा सर्दियों के मौसम में 15 से 20 दिन में सिंचाई करनी चाहिए। 

बारिश का मौसम होने पर जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए। जब पेड़ पर फूल खिलने लगे तब सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

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फसल में उर्वरक प्रबंधन

आंवला के पौधों की अच्छी पैदावार के लिए उचित उवर्रक की जरूरत होती है। इसके लिए गड्डो को तैयार करते वक़्त 30 किलो पुरानी गोबर की खाद, 50 ग्राम यूरिया तथा 70 ग्राम डी.ए.पी. और 50 ग्राम एम.ओ.पी. की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर अच्छे से गड्डो को भर देना चाहिए।

इसके बाद जब पौधे विकास करने लगे तब 40 किलो गोबर की खाद, 1 kg नीम की खली, 100 gm यूरिया, 120 gm डी.ए.पी. तथा 100 gm एम.ओ.पी. की मात्रा को पौधों के पास में छोटा सा गड्डा बना कर भर दे। इस प्रक्रिया के बाद गड्डो की सिंचाई कर देनी चाहिए।

आंवले की तुड़ाई और पैदावार

पौधे की खेत में रोपाई के लगभग 3 से 4 साल बाद इसके पौधे पैदावार देना आरम्भ करते है। फूल लगने के 5 से 6 महीने पश्चात इसके फल पककर तैयार होने लगते है। 

शुरुआत में इसके फल हरे रंग के दिखाई देते है, इसके बाद ठीक तरह से पकने पर यह हल्का पीले रंग का हो जाता है।

उस दौरान फलों की तुड़ाई कर ले, पूर्ण रूप से तैयार आंवला के एक पौधे में तक़रीबन 100 से 120 KG फल तैयार हो जाते है।

इस हिसाब से एक एकड़ के खेत में लगभग 150 से 180 पौधों को लगाया जा सकता है। जिसका कुल उत्पादन 20,000 किलो के आस-पास होता है। 

आंवला का बाजारी मूल्य गुणवत्ता के आधार पर 15 से 30 रूपए किलो तक का होता है। किसान भाई एक एकड़ भूमि में आंवला की खेती कर दो से तीन लाख की अच्छी कमाई कर सकते है।

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