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बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)

Published on: 01-Jul-2022

दोस्तों आज हम बात करेंगे, बाजरा के टॉपिक पर बाजरा जो सभी फसलों में प्रमुख माना जाता है। किसानों को बाजरे की फसल से काफी अच्छा मुनाफा होता है। बाजरे से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

बाजरा की खेती:

बाजरा भारत की सबसे ज्यादा उत्पादन वाली फसल है। इसीलिए भारत देश में बाजरे को अग्रणी फसलों की श्रेणी में रखा जाता है।भारत देश में करीब 85 लाख से अधिक क्षेत्रों में बाजरे की खेती की जाती है। बाजरे का उत्पादन करने वाले राज्य कुछ इस प्रकार है जहां बाजरे की खेती की जाती है। जैसे, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्यों में भारी मात्रा में बाजरे का उत्पादन होता है।

बाजरा में मौजूद पोषक तत्व:

बाजरे में विभिन्न विभिन्न प्रकार के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं इसीलिए इसे आहार का मुख्य साधन माना जाता है। किसानों के अनुसार भारत देश में शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में इस फसल को प्रमुख खाद्य भी कहा जाता है। बाजरा ना सिर्फ मनुष्य अपितु पशुओं के भी पौष्टिक चारे का माध्यम है। बाजरे की खेती किसान पशुओं को चारा देने के लिए भी करते हैं। बाजरा के दानों में प्रोटीन की मात्रा 10.5 से लेकर14. 5% तक मौजूद होती है। पोषक तत्व की दृष्टिकोण से देखें तो यह बहुत ही उपयोगी है।

 बाजरा में लगभग वसा 4 से 8 % होता है वहीं दूसरी ओर कार्बोहाइड्रेट खनिज तत्व कैल्शियम केरोटिन राइबोफ्लेविन, विटामिन बी तथा नायसिन और विटामिन b6 भी भरपूर मात्रा में बाजरे में मौजूद होते हैं। गेंहू और चावल के मुकाबले बाजरे में अधिक मात्रा में लौह तत्व मौजूद होते हैं। बाजरे में भरपूर मात्रा में ऊर्जा मौजूद होती है इसी कारण इसका सेवन सर्दियों में ज़्यादा करते हैं। प्रोटीन, कैल्शियम फास्फोरस, और खनिज लवण, हाइड्रोरासायनिक अम्ल, बाजरे में उपयुक्त मात्रा में पाया जाता है। 

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पूसा संस्थान की पूसा कम्पोजिट 612, पूसा कंपोजिट्स 443, पूसा कम्पोजिट 383, पूसा संकर 415, एचएचबी 67, आर एस बी 121, MH169 जैसी अनेक क्षेत्रीय किसमें देश में मौजूद हैं।

बाजरे की फसल के लिए भूमि का चयन:

बाजरे की फसल के लिए किसान सभी प्रकार की भूमि को उपयुक्त बताते हैं, परंतु बलुई दोमट मिट्टी सबसे सर्वोत्तम मानी जाती है। बाजरे की फसल के लिए जल निकास की व्यवस्था को उचित बनाए रखना आवश्यक होता है। बाजरे की फसल के लिए अधिक उपजाऊ भूमि की कोई जरूरत नहीं पड़ती हैं। क्योंकि भारी भूमि कम अनुकूलित होती है।

बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:

बाजरे की खेती के लिए गर्म जलवायु सबसे उपयोगी होती है।बाजरे की खेती 400 से 600 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से कर सकते हैं। बाजरे की खेती के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32 से 37 सेल्सियस बेहतर माना जाता है। बाजरे की फसल का उत्पादन करने के लिए। कभी-कभी ऐसा होता है जब बाजरे पुष्पन अवस्था में हो और बारिश हो जाएगा। यह आप पानी के फव्वारों के जरिए सिंचाई कर दे। तो बाजारों के दाने धुल जाते हैं और बाजरे का उत्पादन नहीं हो पाता है। इस प्रकार बाजरे की खेती करते वक्त जलवायु का खास ख्याल रखें। 

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बाजरे की फ़सल के लिए (फसल चक्र की व्यवस्था)

बाजरे की फसल के लिए, फसल चक्र की व्यवस्था बनाना बहुत ही उपयोगी होता है। इस प्रक्रिया को अपनाने से मिट्टियों की उर्वरता बनी रहती है। यह फसल चक्र आपको एकवर्षीय बनाने की आवश्यकता होती है। या फसल चक्र कुछ इस प्रकार बनाए जाते हैं जैसे: गेहूं और जौ, बाजरा सरसों और तारामीरा, या फिर बाजरा चना, मटर या मसूर, बाजरा गेहूं, सरसों, ज्वार, मक्का चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तथा बाजरा, सरसों ग्रीष्मकालीन, मूंग आदि फसल चक्र बनाए जाते हैं।

बाजरे की फसल के लिए खेत को तैयार करें:

बाजरे की फसल को बोते समय खेत को भली प्रकार से तैयार करने की आवश्यकता होती है। गर्मी के दिनों में खेतों को गहरी अच्छी जुताई की आवश्यकता होती है। साथ ही साथ उत्तम जल निकास की व्यवस्था खेतों में बनाना आवश्यक होता है। खेत जोतने के बाद, खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। बाजरे की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए हल द्वारा मिट्टी को अच्छी तरह से पलटे, दो से तीन बार जताई करें फिर उसके बाद बीज रोपण करें। बाजरे की फसल को सुरक्षित रखने के लिए तथा विभिन्न प्रकार के प्रकोप जैसे, दीमक और लट से बचाने के लिए आख़िरी जुताई के दौरान 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दर से फोरेट का इस्तेमाल कर खेतों में डाले। बाजरे की खेती के लिए शून्य जुताई विधि किसान उत्तम बताते हैं। इसके लिए आपको खेत समतल करना होता है मिट्टी को फसल के लिए अवशेषों तथा वानस्पतिक अवशेषों का आवरण बनाए रखने की आवश्यकता होती है। किसान इस प्रक्रिया को खेत के लिए सबसे लाभप्रद बताते हैं।

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बाजरे की फसल के लिए खरपतवार प्रबंधन करना:

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बाजरे की फसल के लिए खरपतवार प्रबंधन करना बहुत ही आवश्यक होता है। इसके लिए आपको लगभग 1 किलोग्राम एट्राजीन या पेंडिमिथालिन 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव की आवश्यकता होती है। छिड़काव की यह प्रक्रिया बुवाई के बाद या फिर अंकुरण आने से पहले करते हैं। बाजरे की फसल बुवाई के बाद लगभग 25 से 30 दिनों के बाद खुरपी या कसौला की सहायता से खरपतवार को निकालना उपयोगी होता है। 

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बाजरे की फसल के लिए कीट प्रबंधन की व्यवस्था:

  • बाजरे की फसल को दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए आपको 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से क्लोरोपाइरीफॉस की जरूरत पड़ती है। क्लोरोपाइरीफॉस का इस्तेमाल आप को जड़ों में और जब थोड़ी हल्की बारिश हो तब मिट्टियों में मिलाकर अच्छी तरह से बिखेर देना चाहिए।
  • तना मक्खी, जैसी समस्याओं और गिडारें और इल्लियां की शुरुआती अवस्था में पौधों की बढ़वार को काटकर अलग कर देना। इस अवस्था में पौधे सूख जाते हैं इस प्रकोप की रोकथाम करने के लिए आपको लगभग 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फॉरेट 25 किलोग्राम, फ्यूराडोन, 3%और मैलाथियान, 5% 25 किलोग्राम प्रति लीटर के हिसाब से खेतों में डालना उपयोगी होता है।
  • सफेद लट बाजरे की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इस रोग की रोकथाम करने के लिए आपको फ्यूराडॉन 3% फॉरेट 10% दानों को करीब 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बाजरे की बुवाई करते टाइम मिट्टियों में मिलाना आवश्यक होता है।

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा यह आर्टिकल बाजरा पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में बाजरेकीफसलसेजुड़ी सभी तरह की आवश्यक जानकारी मौजूद है। जो आपके बहुत काम आ सकती हैं। हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करते रहे। धन्यवाद।

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