Published on: 02-Dec-2022
महाराष्ट्र राज्य के हिंगोली जनपद में बढ़ती ठंड केले के बागों को काफी प्रभावित कर रही है। इसकी वजह से केले की पैदावार में ३० फीसद तक घटोत्तरी की की आशंका व्यक्त की जा रही है। प्रदेशों के किसानों को काफी हानि हो रही है, इस समय ठंड काफी बढ़ गयी है। वहीं बढ़ती ठंड की वजह से कृषि फसलें काफी प्रभावित हो रही हैं। बढ़ती ठंड की वजह से हिंगोली जनपद में केले की खेती करने वाले किसान बहुत प्रभावित हुए हैं, जैसे कि ठंड की वजह से केले के वजन में घटोत्तरी हो रही है। केले के विकास में भी बाधा उत्पन्न हो रही है।
केले की पैदावार में ३० फीसद तक की घटोत्तरी आने की संभावना हुई है, ठंड में बढ़ोत्तरी की वजह से केले का वजन कम हुआ है। प्रदेश के अधिकाँश भागों में तापमान में कमी आई है, इस वर्ष बढ़ती ठंड का प्रभाव केले के बागों पर ज्यादा दिख रहा है। वहीं ठंड में बढ़वार से बिक्री के लिए तैयार कच्चे केले के छिलके के कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं, इस वजह से बाजार में केले का उचित व सही मूल्य नहीं मिल पाता है। इसका दुष्परिणाम किसानों को सहन करना पड़ता है।
केले उत्पादन में कमी की क्या वजह है ?
इस वर्ष मराठवाड़ा में ठंड में काफी अधिक वृध्दि हुई है, इसका प्रभाव फसलों पर पड़ रहा है। सर्वाधिक केले के बाग प्रभावित होते हैं। ठंड की वजह से केले का बेहतर तरीके से उत्पादन नहीं हो पाता है। इससे केले का वजन तो घटता ही है, साथ ही बेचने हेतु तैयार कच्चे केलों के छिलकों की कोशिकाएं खत्म होने की वजह से केला पूर्णतः पकने के पहले पीला हो जाता है। परिणामस्वरूप, ऐसे केले को बाजार में बेहतर मूल्य अर्जित नहीं हो पाता है, इसी वजह से केला किसानों को काफी आर्थिक हानि हुई है। अनुमान है, कि इस सर्दी में केले के उत्पादन में ३० फीसद की कमी आ सकती है।
किसानों को क्यों हो रहा है नुकसान ?
बढ़ती ठंड की वजह से केले का सही विकास नहीं हो पाता है,
केले की फली सही से नहीं उत्पादित हो पाती है। ऐसी हालत में केले की लंबाई में कमी व केले की फलियों के मध्य की दूरी में भी कमी आती है। किसानों ने कहा है, कि ठंड बढ़ने के कारण केले का रंग गहरा पीला न होने की वजह से बाजार में ऐसे केलों को कोई नहीं खरीदता। इससे किसानों को भारी हानि होती है, केले को २० से ३८ के मध्य तापमान की अत्यंत आवश्यकता होती है। किसानों के मुताबिक, अगर तापमान में इससे अधिक कमी आने से केले की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। किसानों ने यह भी बताया है, कि जून व जुलाई की बिजाई के तुलनात्मक वजन लगभग ३० प्रतिशत तक घट सकता है।