साल 2020 जाने को है और हम 2021 का स्वागत करने को तैयार बैठे हैं. 2020 में हमने बहुत ही अलग तरह का डर, दुविधा और बंधन महसूस किया. लेकिन कहते हैं ना अंत भला तो सब भला...
अभी कोरोना की वैक्सीन भी आ गई है कुछ समय में लगनी भी शुरू हो जाएगी. कोरोना में सारी इंडस्ट्री चौपट हो गई थी लेकिन हमारी कृषि को अर्थव्यवस्था की धुरी ऐसे ही नहीं कहा जाता है, कृषि ने हमारे अन्न के भण्डार भरे और इस दौर में भी अपनी चमक बिखेरी.
आज हम बात करते है तरबूज और खरबूज जैसी फसलों की अगेती खेती की.आजकल किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात सरकार कर रही है लेकिन कोई भी सरकार आपको घर बैठा कर आपकी आमदनी नहीं बढ़ा सकती है उसके लिए खुद किसान को आगे आना पड़ेगा तथा अपनी खेती को पुराने तरीकों की अपेक्षा नई तकनीक से खेती करनी होगी तभी आपकी आमदनी बढ़ सकती है.
गर्मी के दिनों में तरबूज एक अत्यन्त लोकप्रिय फल एवं सब्जी मानी जाती है. इसके फल पकने पर काफी मीठे एवं स्वादिष्ट होते हैं. इसकी खेती पूरे भारत वर्ष में की जाती है. इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में की जाती है|
यदि कृषक तरबूज और खरबूज की स्थानीय किस्मों की जगह उन्नत प्रजाति और वैज्ञानिक तकनीक से खेती करें, तो इसकी फसल से अच्छी तथा गुणवतापूर्ण उपज प्राप्त की जा सकती है.इसके फलों के सेवन से “लू’ नहीं लगती है तथा गर्मी से राहत मिलती है
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इसके दो तरीके हैं या तो आप खेत के खाली होने का इंतज़ार करो या उससे पहले ही अपनी फसल की तैयारी कर दें.ये फसल बहुत कम समय में तैयार होकर आपको मुनाफा दे सकती है.
आप गोबर की बनी हुई खाद और मिट्टी को मिला कर प्लास्टिक या थर्माकोल के गिलास में भर के उसमें बीज डाल कर किसी गर्म और कवर एरिया में लगा सकते हैं. इसमें ध्यान रखने वाली बात है की जब तक आपका खेत खाली हो तब तक आपके पौधे 20 से 30 दिन के हो जाने चाहिए.
जैसे ही आपका खेत खाली हो आप खेत को तैयार करके उन पौधों को खेत में रोपित कर दें आपकी फसल सबसे पहले बाजार में आ जाएगी और इसका मूल्य भी अच्छा मिलेगा.
अगर आपका खेत आलू से खाली हुआ है तो उसमे आपको बहुत विशेष तैयारी की जरुरत नहीं होती है आप सीधे खेत की पलेवा करके उसमे देसी हल या हेरों से जुताई करके उसमे पटेला/सुहागा लगा के समतल बना के उसमे पहले से तैयार पौधे रोपित कर दें और हल्का पानी लगा दें.
और अगर आपका खेत सरसों से खाली हुआ है तो आपको उसकी अच्छे से जुताई करनी होती है तथा खेत की पलेवा करके वही तरीके से उसको तैयार करके पौधे रोपित करने हैं. इसके खेत को बहुत ज्यादा खाद और पानी की जरूरत नहीं होती है. लेकिन खेत में पानी निकासी की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए.
जिससे की पौधे की ग्रोथ सही से हो. फिर भी खाद और पानी की जरूरत मिट्टी के हिसाब से तय की जाती है. तरबूज के लिए यमुना और गंगा जैसी नदियों के किनारे पर भी किया जाता है.
इसके लिए रेतीली और दोमट मिट्टी दोनों ही मुफीद होती है. इसके खेत में गोबर की बनी हुई खाद डाल कर अच्छे से खेत में मिला देनी चाहिए इससे हमारी फसल जल्दी और अच्छी तैयार होती है. सरसों के खेत में हमें थोड़ा ज्यादा खाद पर ध्यान देना होता है जबकि आलू के खेत में पहले से ही प्रचुर मात्रा में खाद होता है.
फास्फेट व पोटाश तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा को भूमि की तैयारी के समय मिलाना चाहिए तथा शेष नाइट्रोजन की मात्रा को बुवाई के 25-30 दिन के बाद देना चाहिए. जैसा की हम ऊपर बता चुके हैं, खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि की उर्वरा शक्ति के ऊपर निर्भर करती है. उर्वरा शक्ति भूमि में अधिक हो तो उर्वरक व खाद की मात्रा कम की जा सकती है.
इसके फल को जितनी गर्मी मिलती है उतना ही ये मीठा और लाल होता है. तो इसके फल को अच्छी गर्मी में भी नुकसान नहीं होता है. इसको बारिश के मौसम से पहले खेत से फसल को तोड़ लेना चाहिए. बारिश शुरू होने पर ये खुद से ही ख़तम हो जाता है.
इसकी फसल से अच्छी उपज लेने के लिए किसानों को तरबूज और खरबूज की स्थानीय किस्मों का चयन करना चाहिए. किसान अपने एरिया के हिसाब से ही किस्मों का चयन करें. कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार हैं.
दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान में मतीरा जाति के तरबूज की बुवाई जुलाई महीने में की जाती है| जबकि दक्षिण भारत में इसकी बुवाई अगस्त से लेकर जनवरी तक करते हैं. आप कह सकते हैं की भारत में वर्ष भर कहीं न कहीं इसकी बुवाई के लिए समय उपयुक्त होता है.
यह दूरी मृदा की उर्वरता एवं प्रजाति के अनुसार घट बढ़ सकती है. नदियों के किनारे 60 X 60 X 60 सेंटीमीटर क्षेत्रफल वाले गड्डे बनाकर उसमें 1:1:1 के अनुपात में मिट्टी, गोबर की खाद तथा बालू का मिश्रण भरकर थाल को भर दे तत्पश्चात् प्रत्येक थाल में दो बीज लगादें | अंकुरण के 10 से 15 दिन बाद एक जगह पर 1 से 2 स्वस्थ पौधों को छोड़कर बाकि को निकाल देना चाहिए.
नत्रजन की आधी मात्रा दो बराबर भागों में बाँटकर खड़ी फसल में जड़ों के पास गुड़ाई के समय तथा पुनः 45 दिन बाद छिड़ककर देना चाहिए|
जब मैदानी भागों में इसकी खेती की जाती है, तो सिंचाई 7 से 10 दिन के अन्तराल पर करते हैं क्योकि गर्मी में इसको सिचांई की आवश्यकता होती है. जब तरबूज आकार में पूरी तरह से बढ़ जाते हैं, सिंचाई बन्द कर देते हैं, क्योंकि फल पकते समय खेत में पानी अधिक होने से फल में मिठास कम हो जाती है और फल फटने लगते हैं.
अतः खेत से कम से कम दो बार खरपतवार निकालना चाहिए. अच्छा रहे की आप खरपतवार निकलने के लिए निराई गुड़ाई का सहारा लें और अगर ये संभव नहीं है तो आप रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में बूटाक्लोर रसायन 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज बुआई के तुरन्त बाद छिड़काव करते हैं.
खरपतवार निकालने के बाद खेत की गुड़ाई करके जड़ों के पास मिट्टी चढ़ाते हैं जिससे पौधों का विकास तेजी से होता है.
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए मैंकोजेब 0.20 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल से पहले सुरक्षा के रूप में छिड़काव बीमारी दिखने तुरन्त करना चाहिए|
यदि पौधों पर बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हो तो मेटल एक्सिल 8 प्रतिशत + मैन्कोजेब 64 प्रतिशत डब्लू वी पी, 25 प्रतिशत दवा का छिड़काव 7 दिन के अन्तराल पर 3 से 4 बार करना चाहिए. पूरी तरह रोगग्रस्त लताओं को निकाल कर जला देना चाहिए तथा बीज उत्पादन के लिए गर्मी की फसल से बीज उत्पादन करें.
तरबूज बड नेक्रोसिस- यह रोग रस द्रव्य एवं थ्रिप्स कीट द्वारा फैलता है. रोग ग्रस्त पौधों में क्राउन से अत्यधिक कल्ले निकलते हैं और तना सामान्य से कड़ा और ऊपर उठा हुआ दिखाई देता है, पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं. उसमें असामान्य वृद्धि होती है तथा फूल भी टेढ़े-मेढे एवं हरे हो जाते हैं.
रोकथाम- इस रोग से बचाव हेतु रोग रोधी किस्म की बुवाई करें तथा रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दे. बीज अथवा पौधों को इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिलीलीटर दवा 1 लीटर पानी में घोलकर रोपाई या बुआई से पहले 10 मिनट तक उपचारित करें|
पौध जमाव के 10 से 15 दिन के बाद से नीम या पुंगगामिया के रस का छिड़काव 3 प्रतिशत की दर से 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए.
तरबूज में तुड़ाई बहुत महत्वपूर्ण होती है. तरबूज के फल का आकार एवं डंठल के रंग को देखकर उसके पकने की स्थिति का पता लगाना बड़ा मुश्किल है.अच्छी प्रकार पके हुए फलों की पहचान निम्न प्रकार से की जाती है| जमीन से सटे हुए फल के भाग में रंग परिवर्तन देखकर किया जाता है.
पके फले को थपथपाने से धबधब की आवाज आती है, तो फल पका होता है. इसके अलावा यदि फल से लगी हुई प्ररोह पूरी तरह सूख जाय तो फल पका होता है. पके हुए फल को दबाने पर कुरमुरा एवं फटने जैसा अनुभव हो तो भी फल पका माना जाता है. जो तरबूज की खेती करते हैं वो तरबूज को देख कर भी पता लगा लेते हैं की इसका तुड़ाई का समय हो गया है.
फलों को तोड़कर ठण्डे स्थान पर एकत्र करना चाहिए. दूर के बाजारों में फल को भेजते समय कई सतहों में ट्रक में रखते हैं और प्रत्येक सतह के बाद धान की पुआल रखते हैं. इससे फल आपस में रगड़कर नष्ट नहीं होते हैं और तरबूजों की ताजगी बनी रहती है. गर्मी के दिनों में सामान्य तापमान पर फल को 10 दिनों तक आसानी से रखा जा सकता है. अगर आपको किसी खेती के बारे में विस्तृत जानकारी चाहिए तो आप हमें अपने प्रश्न भी भेज सकते है.