मशरूम कई तरह की होती है। यह पोषक गुणों से भरपूर होती है। इसकी सामान्य तरीके से खेती छप्पर आदि में होती है। कंट्रोल कंडीशन में आम किसान के लिए मशरूम की खेती करना आसान नहीं। उत्तर भारत में बटन मशरूम की खेती गेहूं का भूसा एवं धान की पराली जैसे फसल अवशेषों से आसानी से हो सकती है। इसके माध्यम से प्रदूषण की समस्या के काफी हद तक समाधान के अलावा किसानों की माली हालत सुधारने तथा उपभोक्ताओं को पोषक मशरूम प्रदान किया जा सकता है। मशरूम पूर्ण स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ बच्चों से लेकर बृद्ध तक के लिए अनुकूल है। इसमें प्रोटीन, रेशा, विटामिन तथा खनिज प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। ताजे मशरूम में 80-90 प्रतिशत पानी होता है तथा प्रोटीन की मात्रा 12- 35 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 26-82 प्रतिशत एवं रेशा 8-10 प्रतिशत होता है। मशरूम में पाये जाने वाला रेशा पाचक होता है। मशरूम कई तरह की होती है लेकिन बाजार मं एवं आम तौर पर खाने में बटन मशरूम का प्रचलन ज्यादा है।
मशरूम शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने के साथ कैंसर की संभावना को कम करता है। गांठ की वृद्धि को रोकता है। रक्त शर्करा को सन्तुलित करता है। मशरूम हृदय, मधुमेह के रोगियों एवं मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए लाभदायक है। गैनोडरमा लुसीडियम, गैनोडेरिक एसिड, बीटा ग्लूकान प्रतिरक्षा तन्त्र को बढ़ाता है। यकृत को सुरक्षा प्रदान करता है। एन्टीबायोटिक गुण कोलेस्ट्राल निर्माण को रोकता है। इन्सुलिन के श्राव को बढाता है। बटन मशरूम के बीज फैलाव के लिए 22-25 डिग्री तापमान चाहिए वहीं फसल उत्पादन के लिए 14-18 डिग्री तापमान होना चाहिए। उत्तर भारत में इसकी खेती के लिए मध्य अक्टूबर में किसान गेहूं के भूसे की खाद बनाने का काम शुरू करते हैं और मध्य नवंबर तक खाद को बैगों मैं भरने के साथ बीज बुवान कर केसिंग चढ़ाने का काम कर देते हैं।
मशरूम की खेती हेतु गेहूं के भूसे को बोरे में रात भर के लिए साफ पानी में भिगो दिया जाता है। यदि आवश्यक हो तो 7 ग्राम कार्बेन्डाइजिन (50 प्रतिशत) तथा 115 मिली टीलर फार्मलीन प्रति 100 लीटर पानी की दर से मिला दिया जाता है। इसके पश्चात भूसे को बाहर निकालकर अतिरिक्त पानी निथारकर अलग कर दिया जाता है और जब भूसे से लगभग 70 प्रतिशत नमी रह जाये तब यह बिजाई के लिए तैयार हो जाता है।
इसमें ढिंगरी मशरूम की तरह की बिजाई की जाती है परन्तु स्पान चानी मशरूम बीज की मात्रा ढिंगरी मशरूम से दो गुनी (5-6 प्रतिशत) प्रयोग की जाती है। तथा बिजाई करने के बाद थैलों में छिद्र नहीं बनाये जाते हैं। बिजाई के बाद तापक्रम 28-32 डिग्री होना चाहिये बिजाई के बाद इन थैलों को फसल कक्ष में रख देते है। बिजाई के 20-25 दिन बाद फहूँद पूरे भूसे में सामान रूप से फैल जाती है, इसके बाद आवरण मृदा जिसे केसिंग कहा जाता है को तैयार कर 2 से 3 इंच मोटी पर्त थैली के मुँह को खोलकर ऊपर समान रूप से फैला दी जाती है। इसके पश्चात पानी के फव्वारे से इस तरह आवरण मृदा के ऊपर सिंचाई की जाती है कि पानी से आवरण मृदा की लगभग आधी मोटाई ही भीगने पाये आवरण मृदा लगाने के लगभग 20 से 25 दिन बाद आवरण मृदा के ऊपर मशरूम की बिन्दुनुमा अवस्था दिखाई देने लगती है। इस समय फसल का तापमान 32 से 35 तथा आर्द्रता 90 प्रतिशत से अधिक बनाये रखा जाता है अगले 3 से 4 दिन में मशरूम तोड़ाई योग्य हो जाती है। सूखे भूसे के भार का 70 से 80 प्रतिशत उत्पादन प्राप्त होता है। इसकी खेती से जुड़ी तकनीकी जानकारी के लिए निकट के कृषि विज्ञान केन्द्र या फिर सोलन हिमाचल प्रदेश स्थिति राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान केन्द्र पर ट्रेनिंग मिलती है। इतना ही नहीं यदि निकट में कोई किसान इसकी खेती करते हों तो वहां बेहद सरल तरीके से इसकी खेती की जानकारी प्राप्त हो सकती है।