उड़द की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है। उड़द की फसल एक दलहनी फसल के रूप में की जाती है। इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ के मौसम में की जाती है।
दलहनी फसले शाकाहारी भोजन में प्रोटीन का सबसे आसान स्रोत हैं। उड़द इन दलहनी फसलों में बहुत महत्वपूर्ण है। उड़द में 23 से 27 प्रतिशत प्रोटीन होता है। प्रोटीन शरीर और मस्तिष्क के विकास और मरम्मत के लिए अत्यंत आवश्यक है।
भोजन में प्रोटीन की कमी से बच्चों का शारीरिक विकास और मानसिक विकास प्रभावित होता है। ग्रीष्म ऋतु में कम समय में उड़द की फसल उगाकर अधिक फायदा ले सकते हैं।
आज के इस लेख में हम आपको उड़द की फसल उत्पादन के बारे में सम्पूरण जानकारी देंगे।
उड़द की खेती के लिए नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। उड़द की अधिकतर जातियाँ प्रकाश के प्रति संवेदी है इसलिए उड़द की वृद्धि के लिए 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा होता है।
700-900 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में उड़द उगाया जा सकता है। फूलों की अवस्था में अधिक वर्षा हानिकारक है। पकने के समय पर अधिक वर्षा दाना खराब कर देती है।
ग्रीष्म कालीन और खरीफ दोनों खेती की जा सकती है। भूमि का चुनाव और प्रबंधन—उड़द की खेती कई तरह की जमीन पर होती है।
उड़द के लिए सबसे अच्छा स्थान हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम भूमि है, जहां पानी का निकास अच्छा है।
पी.एच. मान 7-8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिए उपजाऊ होती है। अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नही है। वर्षा आरम्भ होने के बाद दो-तीन बार हल या बखर चलाकर खेत को समतल करे। वर्षा आरम्भ होने के पहले बोनी करने से पौधो की बढ़वार अच्छी होती है।
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अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों की ही बुवाई करनी चाहिए। उड़द की उन्नत किस्में निम्नलिखित है -
उड़द की ये किस्म 70 - 75 दिनों में पक जाती है। उड़द की इस किस्म के बीज मध्यम छोटा, हल्का काला होता है और पौधा मध्यम ऊँचाई वाला होता है। इस किस्म की औसत पैदावार 10-11 क्विंटल/हे है।
उड़द की ये किस्म 70 - 75 दिनों में पक जाती है। उड़द की इस किस्म के दाने काले मध्यम आकार के होते है और ये किस्म पीला मौजेक वायरस के क्षेत्रो के लिए उपयुक्त है। इस किस्म की औसत पैदावार 10-12 क्विंटल/हे है।
उड़द की ये किस्म 85-90 दिनों में पक जाती है। उड़द की इस किस्म का दाना बड़ा हल्का काला और पौधा फैलने वाला होता है। इस किस्म की औसत पैदावार 8-10 क्विंटल/हे है।
उड़द की ये किस्म 70-80 दिनों में पक जाती है। उड़द की इस किस्म का दाना काला बड़ा और पौधा फैलने वाला होता है। इस किस्म की औसत पैदावार 12-14 क्विंटल/हे है।
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उड़द की ये किस्म 70 दिनों में पक जाती है। उड़द की इस किस्म का बीज मध्यम छोटा चमकीला काला और तने पर ही फलियाँ पास-पास गुच्छो मे लगती है। इस किस्म की औसत पैदावार 10-11क्विंटल/हे है।
उड़द की ये किस्म 70 दिनों में पक जाती है। उड़द की इस किस्म का बीज मध्यम छोटा हल्का काला और मध्यम कम फैलने वाला होता है। इस किस्म की औसत पैदावार 4-4.80 क्विंटल/हे है।
भूमि को बारीक जुताई के लिए तैयार करें और क्यारियाँ तथा नालियाँ बनाएँ।
मिट्टी की सतह की पपड़ी के लिए संशोधन: मिट्टी की सतह की पपड़ी को हटाने के लिए लगभग 15-20% की अतिरिक्त उपज प्राप्त करने के लिए 12.5 टन/हेक्टेयर की खाद के साथ 2 टन/हेक्टेयर की दर से चूना या 12.5 टन/हेक्टेयर की खाद के साथ कॉरपिथ का प्रयोग करें।
बुआई से 24 घंटे पहले बीजों को 2 ग्राम/किलो बीज की दर से कार्बेन्डाजिम या थीरम से उपचारित करें (या) ट्राइकोडर्मा विराइड 4 ग्राम/किलो बीज की दर से टैल्कम फॉर्मूलेशन से (या) स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 10 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें।
बीजों को पहले बायोकंट्रोल एजेंटों से और फिर राइजोबियम से उपचारित करें। कवकनाशी और जैव नियंत्रण एजेंट असंगत हैं। एक अकड़ के लिए उड़द का बीज 6-8 किलो प्रति एकड़ की दर से बोना चाहिए।
उड़द की खेती मुख्य रूप से खरीफ के मौसम में की जाती है। मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह मे पर्याप्त वर्षा होने पर बुबाई करे।
बुवाई नाली या तिफन से करे, कतारों की दूरी 30 से.मी. तथा पौधो से पौधो की दूरी 10 से.मी. रखे तथा बीज 4-6 से.मी. की गहराई पर बोये।
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उड़द की फसल में नाइट्रोजन 8-12 किलोग्राम व फोस्फरस 20-24 किलोग्राम, पोटाश 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से दे। सम्पूर्ण खाद की मात्रा बुबाई के समय कतारो मे बीज के ठीक नीचे डालना चाहिए।
दलहनी फसलो मे गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिए। विशेषतः गंधक की कमी वाले क्षेत्र मे 8 किलो ग्राम गंधक प्रति एकड़ गंधक युक्त उर्वरको के माध्यम से दे।
उड़द की फसल में खरपतवार फसलो की अनुमान से कही अधिक क्षति पहुँचाते है। अतः विपुल उत्पादन के लिए समय पर निदाई-गुड़ाई कुल्पा व डोरा आदि चलाते हुए अन्य आधुनिक नींदानाशक का समुचित उपयोग करना चाहिए।
नींदानाशक वासालिन 800 मि.ली. से 1000 मि.ली. प्रति एकड़ 250 लीटर पानी मे घोल बनाकर जमीन बखरने के पूर्व नमी युक्त खेत मे छिड़कने से अच्छे परिणाम मिलते है।