भारत में धनिया रसोई घर में एक मुख्य भूमिका निभाती है, क्योंकि धनिया का उपयोग विभिन्न विभिन्न प्रकार से किया जाता है। धनिया का उपयोग सिर्फ खाने में ही नहीं, बल्कि चाट, सलाद ,सब्जियों को ऊपर से सजाने तथा विभिन्न विभिन्न तरह से धनिया का इस्तेमाल किया जाता है। इसीलिए भारतीय रसोइयों में धनिया का अपना एक मुख्य स्थान है। जो कोई और नहीं ले सकता हैं। यह अपनी खुशबू के साथ विभिन्न प्रकार के गुणों को भी अपने अंदर समेटे हुए रहती है। जानिए धनिया का उपयोग और महत्व ।
भारत देश मसालों की भूमि के लिए प्रसिद्ध है और यह प्राचीन काल से सुनिश्चित है।धनिया की पत्तियां और बीज खाने को खुशबूदार और जैकेदार बनाते हैं। धनिया की पत्तियां खाने में खुशबू और इनके बीज में विभिन्न प्रकार के औषधि गुण होते हैं। जिसको खाने से हमारे शरीर को लाभ पहुंचता है।धनिया के औषधि गुणों का उपयोग कुलिनरी,डायरेटिक, कार्मिनेटीव इत्यादि में किया जाता है। धनिया उत्पादक करने वाले मुख्य क्षेत्र कुछ इस प्रकार है जैसे: राजगढ़ ,विदिशा ,शाजापुर छिंदवाड़ा,मंदसौर, म.प्र के गुना आदि। प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा धनिया की खेती की जाती है। मध्यप्रदेश में धनिया की खेती करीबन 1,16,607 की दर पर होती है। इन खेती के आधार पर 1,84,702 टन धनिया की उत्पादकता की प्राप्ति की जाती है।
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धनिया की फसल के लिए सबसे अच्छा मौसम ठंडी का होता है। ठंडी और शुष्क मौसम धनिया की उत्पादकता को बढ़ाता है। धनिया की फसल के लिए सबसे अच्छा तापमान 25 डिग्री से 26 डिग्री सेल्सियस का माना जाता है।किसानों के अनुसार धनिया की फसल शीतोष्ण जलवायु की फसल होती है। धनिया की फसल फूल और दाना का रूप प्राप्त करने के लिए पाला रहित मौसमो पर निर्भर होती हैं। ज्यादा पाला धनिया की फसल को खराब कर देता है।
धनिया की फसल के लिए सबसे उपयोगी दोमट मिट्टी होती है। खेतों में जल निकास की अच्छी व्यवस्था करना बहुत ही जरूरी होता है।क्षारीय और लवणी भूमि को धनिया की फसल सहन नहीं कर पाती, धनिया की फसल दोमट मिट्टी और मटियार दोमट मे बहुत अच्छी तरह उत्पादन करती हैं।धनिया की फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान लगभग 6 पॉइंट 5 से लेकर 7 पॉइंट 5 तक का होना जरूरी होता है। धनिया की फसल के लिए सिंचाई पर ध्यान देना जरूरी है। यदि पानी की व्यवस्था ना हो तो आप भूमि में पलेवा देकर भूमि को उचित रूप से तैयार कर सकते हैं। इस प्रकार जुताई करने से भूमि में मिट्टी के ढेले नहीं बनते हैं।
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धनिया की बुवाई का उचित समय रबी का मौसम होता हैं। अक्टूबर से लेकर नवंबर तक धनिया बोने का सबसे उचित समय होता है। धनिया के पत्तों की अच्छी प्राप्ति के लिए फसल बोने का सही समय अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक का बहुत ही उपयुक्त माना जाता है।पाले के खतरे से बचने के लिए धनिया को नवंबर के दूसरे सप्ताह में बोना आवश्यक होता है।
खेत को तैयार करते समय किसान भाई प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 100 से लेकर 150 कुंटल सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं। तथा 80 किलोग्राम नत्रजन और 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश की मात्रा का इस्तेमाल करते हैं। इन खादो को भली प्रकार से मिट्टी में मिलाया जाता है।
फसलों में सल्फर डालने का सही समय शाम का होता है। सल्फर को कुछ इस प्रकार से खेतों में डाला जाता है जैसे ;1 लीटर सल्फर को 1000 लीटर पानी में अच्छी तरह से मिलाकर फसलों पर छिड़काव करें। छिड़काव करते समय इस बात का ध्यान रखें। कि कोई जगह बचे नहीं खेतों में पूर्ण रूप से छिड़काव हो जाए।
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शाम का वक्त हो जाने पर खेतों में अच्छी तरह से हल्की सिंचाई करते समय मेढ़ के हर तरफ धुआं कर दें।
धनिया की फसल की देरी से कटाई करने की वजह से धनिया में पीलापन आ जाता है। जो किसान भाइयों के हित में अच्छा साबित नहीं होता। इसीलिए धनिया की फसल की कटाई इसके सही समय पर करनी चाहिए। जब धनिया का दाना दबाने पर धनिया मे हल्का कठोर पन और पत्तिया पीली पड़ने लगे, धनिया डोड़ी दिखने में चमकीले भोरे तथा हरा रंग ,पीला होने पर और दानों में लगभग 18% नमी मौजूद रहे तभी कटाई करनी चाहिए। कटाई में की गई जरा सी भी देरी धनिया के रंगों को पूरी तरह से खराब कर देती है।
धनिया खाने से हमें विभिन्न विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं। क्योंकि धनिया खाने से विभिन्न प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं तथा हमें उन रोगो से छुटकारा भी मिल जाता है। जैसे : धनिया खाने से हमारी पाचन शक्ति अच्छी रहती है, हमारे शरीर का कोलेस्ट्रॉल लेवल मेंटेन रहता है तथा डायबिटीज, किडनी आदि रोगों में भी यह काफी सहायक होती है। धनिया में मौजूद विभिन्न प्रकार के गुण जैसे फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, वसा प्रोटीन, मिनरल आदि मौजूद होते हैं। यह सभी आवश्यक तत्व धनिया को और भी ज्यादा महत्वपूर्ण बनाते हैं।
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