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गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ एस रमन ने फर्टिगेशन सॉफ्टवेयर तैयार किया

Published on: 31-Mar-2023

गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. एस रमन जल की खपत कम करने के लिए फर्टिगेशन सॉफ्टवेयर विकसित किया है। इसकी सहायता से 50% प्रतिशत तक सिंचाई हेतु उपयोग किए जाने वाले पानी की बचत की जा सकती है। गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर द्वारा एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है। इसकी सहायता से फसलों के लिए उत्पन्न होने वाली पानी और ऊर्जा की जरुरत को 50% प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। बतादें, कि तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने डॉ. एस रमन के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके सूक्ष्म एवं ड्रिप सिंचाई पर शोध किया है। इसके जरिए सिंचाई करने से फसल का अच्छी तरह से विकास हुआ है। क्योंकि जल की समान रूप से आपूर्ति हुई एवं पौधों को ज्यादा पानी नहीं दिया गया था। केले की फसल में सिंचाई की दर 50% प्रतिशत कम हुई है। रमन ने माइक्रो इरिगेशन शेड्यूलिंग एवं फर्टिगेशन हेतु सॉफ्टवेयर निर्मित करने का दावा किया है। सॉफ्टवेयर विकास के अलग-अलग चरणों में फसल के पानी की जरूरतों का अंदाजा लगाने हेतु एक जलवायु तकनीक का इस्तेमाल करता है। ये भी पढ़े: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती यह साफ्टवेयर जिला स्तर के मौसम से जुड़े आंकड़ों के आधार पर फसल में जल की आवश्यकताओं की गणना करता है। यह जल की जरूरतों का मूल्यांकन करते वक्त फसल ज्यामिति की भी जांच करता है। यह रिक्ति और मिट्टी के प्रकार पर आधारित सूक्ष्म सिंचाई की प्रक्रिया को भी बताता है। उन्होंने बताया है, कि इस साफ्टवेयर को एक क्षेत्र में हांसिल होने वाली प्रभावी बारिश के आधार पर एक विशिष्ट दिन के लिए जल की जरुरत का विश्लेषण कर सकता है। वहीं, इसको नियमित रूप से अपडेट भी कर सकते है। फर्टिगेशन सॉफ्टवेयर राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि और बागवानी जैसे विभागों द्वारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इसके अंतर्गत मृदा एवं फसल के प्रगति के चरण के आधार पर उर्वरक के इस्तेमाल करने के प्रावधान हैं। बतादें, कि इस प्रक्रिया में पोटेशियम, नाइट्रोजन और फास्फोरस के इस्तेमाल के पैटर्न पर भी विचार विमर्श किया जा रहा है। यह अतिरिक्त उर्वरक अनुप्रयोगों की जरूरतों से बचकर किसान भाइयों के धन को बचा सकता है। उन्होंने बताया है, कि यह सरकार को जल में घुलनशील उर्वरक के आयात की मात्रा में गिरावट करने में भी सहायता करेगा। केंद्र व राज्य सरकारें भी अत्यधिक जल की खपत को लेकर चिंतित हैं। बिहार समेत कई अन्य राज्यों में भी भूजल स्तर में गिरावट देखने को मिली है। भूजल स्तर को संतुलित करने के लिए सरकारें अपने अपने स्तर से हर संभव प्रयास करती हैं। ड्रिप सिंचाई के लिए सरकार किसानों को ड्रिप सिंचाई हेतु उपयोग होने वाले उपकरणों पर अनुदान प्रदान करती हैं।

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