देश के ऐसे इलाके जहां बरसात कम होती है, वहां के कृषकों के लिए खजूर की खेती फायदेमंद सिद्ध हो सकती है। आइए जानते हैं, खजूर की कुछ प्रमुख किस्मों के बारे में। भारत के जिन क्षेत्रों में कम वर्षा होती है। वहां के किसान भाई डेट्स मतलब खजूर की खेती कर सकते हैं। इस खेती से उन्हें काफी अच्छा मुनाफा होगा। डेट्स की खेती में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। काफी कम बारिश एवं सिंचाई से ही बढ़िया खजूर की पैदावार मिल जाती है। खजूर को मानसून की वर्षा से पूर्व ही तोड़ लिया जाता है। खजूर पांच स्थिति में बढ़ता है। फल के परागण की प्रथम अवस्था को हब्बाक कहते हैं, जो चार सप्ताह अथवा तकरीबन 28 दिनों तक रहती है। गंडोरा, या कीमरी, दूसरी अवस्था है, जिसमें फलों का रंग हरा होता है। इस दौरान नमी 85% फीसद होती है। तीसरी अवस्था को डोका कहते हैं, जिसमें फल का वजन दस से पंद्रह ग्राम होता है। इस समय फल कसैले स्वाद और कठोर पीले, गुलाबी या लाल रंग के होते हैं। इनमें 50 से 65 प्रतिशत तक की नमी होती है। फल की ऊपरी सतह मुलायम होने लगती है और वे खाने लायक हो जाते हैं जब चौथी अवस्था, डेंग या रुतब, आती है। फल पूरी तरह से पकने वाली पांचवी या अंतिम अवस्था को पिण्ड या तमर कहते हैं। इस स्थिति में फलों की काफी ज्यादा मांग होती है।