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इस राज्य में जल संकट से प्रदेशवासियों के साथ सरकार भी चिंतित

Published on: 14-Mar-2023

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, राज्य के अलग अलग जनपदों में भूजल स्तर में आई कमी चिंता का विषय है क्योंकि यह कृषि, औद्योगिक एवं घरेलू गतिविधियों में बेहद सहायक है। बिहार राज्य के कुछ जनपदों में बीते दो वर्षों में भूजल स्तर में कमी और इसकी गुणवत्ता में गिरावट प्रदेश के अधिकारियों हेतु चिंता का कारण बन गया है। राज्य भर में मानसून से पहले भूजल स्तर के आकलन से ज्ञात हुआ है, कि सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, औरंगाबाद, सारण, सीवान, गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, खगड़िया, सहरसा जैसे जनपदों में बीते दो सालों में भूजल स्तर में कमी देखी गई है। इस संबंध में जानकारी लेने पर बिहार लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के मंत्री ललित कुमार यादव ने बताया, विभाग अपने स्तर से मामले की जांच-पड़ताल की जा रही है। हम जल की गुणवत्ता में कमी की वजह एवं इसकी रोकथाम की जा सकने वाले निवारक कदमों का पता करने हेतु एक नवीन अध्ययन की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बताया, भूजल स्तर में आई कमी की रोकथाम के उपायों पर राज्य सरकार के बाकी जुड़े विभागों के साथ भी चर्चा की जाएगी। यह भी पढ़ें: कृषि क्षेत्र में पानी के कमी से निपटने के लिए किसानों को उठाने होंगे ये कदम बिहार आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के अनुरूप 2021 में मानसून पूर्व अवधि के चलते कैमूर, जमुई, औरंगाबाद और नवादा जैसे जनपदों में भूजल स्तर भूमि से न्यूनतम 10 मीटर नीचे था। औरंगाबाद में मानसून पूर्व भूजल स्तर 2020 में 10.59 मीटर था। परंतु 2021 में यह घटकर 10.97 मीटर रह गया है। अन्य जनपद जैसे सारण (2020 में 5.55 मीटर से 2021 में 5.83 मीटर), सीवान (2020 में 4.66 मीटर और 2021 में 5.4 मीटर), गोपालगंज (2020 में 4.10 मीटर और 2021 में 5.35 मीटर), पूर्वी चंपारण ( 2020 में 5.52 मीटर और 2021 में 6.12 मीटर), सुपौल (2020 में 3.39 मीटर और 2021 में 4.93 मीटर) शम्मिलित हैं।

भूजल स्तर में आई कमी चिंता की वजह बनी हुई है

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, प्रदेश के विभिन्न जनपदों में भूजल स्तर में आई कमी चिंता का विषय है। क्योंकि यह कृषि, औद्योगिक और घरेलू गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। प्रदेश के आर्थिक विकास को बाधित करने के अतिरिक्त भूजल स्तर में आई कमी के अन्य निहितार्थ हैं। जैसे कि ताजे जल संसाधनों में कमी एवं पारिस्थितिक असंतुलन का निर्माण। मानव गतिविधियों के अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन की वजह वर्षा में उतार-चढ़ाव भी भूजल पुनर्भरण को प्रभावित कर सकता है।

राज्य में कितनी नहरें मौजूद हैं

बिहार में भूजल के प्रदूषित होने के संबंध में रिपोर्ट में बताया गया है, कि पर्याप्त मात्रा में जल संसाधनों के रहते हुए भी हाल के वर्षों में इसमें बढ़ोत्तरी देखी गई है। 2021 तक बिहार में समकुल 968 नहरें, 26 जलाशय एवं बड़ी संख्या में राजकीय नलकूप उपस्थित हैं। बिहार आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है, कि बिहार में गंगा नदी एवं उसकी सहायक नदियों के जल की गुणवत्ता विषाणु की अत्यधिक उपस्थिति (कुल और फीकल कोलीफॉर्म) का संकेत देती है। यह विशेष तौर से गंगा एवं उसकी सहायक नदियों की तलहटी पर स्थित शहरों से अवजल/घरेलू अपशिष्ट पानी के निर्वहन की वजह है। यह भी पढ़ें: 1 अप्रैल को बिहार सरकार लांच करने जा रही है कृषि रोड मैप ; जाने किस तरह से होगा बदलाव

इस तरह की निगरानी प्रणाली मौजूद है

रिपोर्ट के अनुसार बताया गया है, कि बिहार के 1,14,651 ग्रामीण वार्ड में से 29 जनपदों में फैले 30,207 ग्रामीण वार्ड में भूजल की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इसमें बताया गया है, कि राज्य सरकार के पीएचईडी द्वारा जल की जांच एवं जांच के नतीजे उपयोगकर्ताओं से साझा करने हेतु एक गुणवत्ता निगरानी प्रोटोकॉल तैयार हुआ है। जिससे कि यह संदेश दिया जा सके कि निगरानी प्रणाली उपस्थित है। पूछे जाने पर जठरांध्र विज्ञानी (गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट) मनोज कुमार ने बताया कि अच्छे से उपचारित जल का सेवन मानव स्वास्थ्य हेतु गंभीर बात नहीं है। पीने लायक जल के दूषित होने की वजह से विभिन्न तरह की बीमारियां जैसे हेपेटाइटिस, हैजा, टाइफाइड, डायरिया एवं बाकी वायरल संक्रमण होते हैं।

इस रोग के होने की संभावना रहती है

उन्होंने बताया, भूजल अधिकांश सीवेज लाइनों में रिसाव अथवा सेप्टिक टैंक के जरिए से दूषित हो जाता है। इसके अंतर्गत समकुल घुलित ठोस पदार्थों का स्तर ज्यादा होता है। जल को पीने लायक बनाने के लिए अनिवार्य तौर से कम करने की जरूरत होती है। इसमें बाकी खतरनाक तत्व भी मौजूद हो सकते हैं, जैसे कि फ्लोराइड युक्त जल से फ्लोरोसिस होने की संभावना रहती है।

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