बड़ी इलायची की खेती कैसे की जाती हैं ? जानिए सम्पूर्ण जानकारी

Published on: 21-Mar-2025
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फसल मसाले फसल

बड़ी इलायची, जो कि ज़िंगिबेरेसी (Zingiberaceae) परिवार का सदस्य है, मुख्य नकदी फसल है जो उप-हिमालयी राज्य सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में उगाई जाती है। 

बड़ी इलायची को मानव जाति द्वारा उपयोग की जाने वाली सबसे पुरानी मसालों में से एक माना जाता है। सिक्किम बड़ी इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक है और यह भारतीय और वैश्विक बाजार में सबसे अधिक योगदान देता है। 

हाल ही में नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में भी इसकी खेती शुरू की गई है।

बड़ी इलायची की खेती के लिए जलवायु

  • बड़ी इलायची एक छायाप्रेमी पौधा (sciophyte) है और इसका प्राकृतिक आवास उप-हिमालयी क्षेत्र के नम उपोष्णकटिबंधीय अर्ध-सदाबहार वनों में होता है। इलायची की खेती वाले क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 2000-3500 मिमी तक होती है, जो लगभग 200 दिनों में वितरित होती है। 
  • ठंडे क्षेत्रों की निचली ऊँचाई और गर्म क्षेत्रों की ऊँची पहाड़ियां इसके विकास के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं। बड़ी इलायची उगाए जाने वाले क्षेत्रों में औसत वार्षिक तापमान 6°C (दिसंबर-जनवरी) से 30°C (जून-जुलाई) तक होता है, और इसमें उच्च आर्द्रता बनी रहती है। 
  • फूल आने के दौरान लगातार बारिश परागण करने वाली मधुमक्खियों की गतिविधि को प्रभावित करती है, जिससे फलों का गठन खराब होता है और उत्पादन कम हो जाता है। 
  • सर्दियों के दौरान पौधे निष्क्रिय रहते हैं और 2°C तक के तापमान को सहन कर सकते हैं, लेकिन पाला और ओलावृष्टि इसके लिए हानिकारक होते हैं।

बड़ी इलायची की खेती के लिए मिट्टी 

  • बड़ी इलायची आमतौर पर जंगल की दोमट मिट्टी में उगाई जाती है, जिसकी गहराई कुछ सेंटीमीटर से लेकर कई इंच तक हो सकती है। इसकी मिट्टी का रंग भूरा-पीला से लेकर गहरा ग्रे-भूरा तक होता है। 
  • मिट्टी की बनावट रेतीली, बलुई दोमट, सिल्टी दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी तक भिन्न हो सकती है। सामान्यतः, बड़ी इलायची की मिट्टी अम्लीय होती है, जिसका pH 5.0 से 5.5 के बीच होता है और इसमें एक प्रतिशत से अधिक जैविक कार्बन होता है। 
  • ये मिट्टियाँ नाइट्रोजन में उच्च, फॉस्फोरस और पोटैशियम में मध्यम होती हैं। ढलानदार भूमि होने के कारण जलभराव की संभावना कम होती है और जल निकासी का उचित प्रबंधन फसल के अच्छे विकास के लिए आवश्यक होता है।

बड़ी इलायची की उन्नत किस्में 

बड़ी इलायची की मुख्य रूप से छह प्रसिद्ध किस्में हैं:

1. रैम्से:

- उच्च ऊँचाई (1515 मीटर से अधिक) के लिए उपयुक्त।

- पौधे 1.5-2.0 मीटर ऊँचे, मजबूत और अधिक टिलर (शाखाएँ) वाले होते हैं।

- मई में फूल आते हैं और अक्टूबर-नवंबर में फसल तैयार होती है।

- छोटे कैप्सूल जिनमें 25-40 बीज होते हैं।

2. रामला:

- पौधे 1.5-2.0 मीटर ऊँचे और रैम्से की तरह मजबूत होते हैं।

- कैप्सूल का रंग गहरा गुलाबी होता है और इनमें 30-40 बीज होते हैं।

- मई में फूल आते हैं और अक्टूबर में फसल तैयार होती है।

3. सॉनी: 

- मध्यम (975-1515 मीटर) और उच्च (>1515 मीटर) ऊँचाई के लिए अनुकूल।

- पौधे 1.5-2.0 मीटर ऊँचे, मजबूत और चौड़े पत्तों वाले होते हैं।

- बड़े कैप्सूल होते हैं जिनमें 35-50 बीज होते हैं।

- फूल मार्च से मई के बीच आते हैं और फसल सितंबर-अक्टूबर में कटाई के लिए तैयार होती है।

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4. वारलांगेय: 

- मध्य और उच्च (>1515 मीटर) ऊँचाई वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह उगती है।

- पौधे 1.5-2.5 मीटर ऊँचे और मजबूत होते हैं।

- कैप्सूल बड़े होते हैं और इनमें 50-70 बीज होते हैं।

- फूल मई (मध्यम ऊँचाई पर) और जून-जुलाई (उच्च ऊँचाई पर) में आते हैं।

5. सेरेमना:

- यह मुख्य रूप से ही-गाँव, पश्चिम सिक्किम में कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है।

- पौधे 1.5-2.0 मीटर ऊँचे होते हैं, टिलर हरे रंग के होते हैं और पत्तियाँ झुकी हुई होती हैं।

- प्रत्येक उत्पादक टिलर में औसतन 2-3 स्पाइक्स होते हैं और प्रत्येक स्पाइक में लगभग 10 कैप्सूल होते हैं जिनमें 65-70 बीज होते हैं।

बड़ी इलायची की ये विभिन्न किस्में विभिन्न ऊँचाइयों और जलवायु परिस्थितियों में उगाई जाती हैं, जिससे यह एक महत्वपूर्ण मसाला फसल बनती है। 

बड़ी इलायची की रोपाई के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation) 

  • बड़ी इलायची अच्छी तरह से जंगल की दोमट मिट्टी में उगती है, जहाँ ढलान हल्की से मध्यम होती है। यह बहुवर्षीय जल स्रोतों के पास तेजी से बढ़ती है, लेकिन जलभराव वाली स्थिति इसके लिए हानिकारक होती है। 
  • चयनित भूमि से सभी झाड़ियाँ, खरपतवार आदि को हटा दिया जाता है। पुराने बड़ी इलायची के पौधों को भी हटा दिया जाता है। गड्ढे 30 सेमी x 30 सेमी x 30 सेमी के आकार में बनाए जाते हैं। 
  • गड्ढे ढलानों पर 1.5 मीटर x 1.5 मीटर की दूरी पर खोदे जाते हैं। मजबूत किस्मों (रामला, रैम्से, सॉनी, वारलांगेय) के लिए 1.8 मीटर x 1.8 मीटर की दूरी उपयुक्त होती है। 
  • छोटे कद की किस्मों (ड्जोंगू गोल्से, सेरेमना) के लिए 1.45 मीटर x 1.45 मीटर की दूरी उपयुक्त होती है। गड्ढों को 15 दिनों तक खुला छोड़ दिया जाता है ताकि मिट्टी का समायोजन हो सके। 
  • गड्ढों में शीर्ष मिट्टी को गोबर की खाद (FYM) @ 1-2 किलोग्राम प्रति गड्ढा मिलाकर भरा जाता है। गड्ढों की खुदाई और भराई मई के तीसरे सप्ताह तक पूरी हो जानी चाहिए ताकि पूर्व-मॉनसून वर्षा से पहले रोपाई की जा सके।

बड़ी इलायची की रोपाई (Planting) 

  • रोपाई जून-जुलाई में की जाती है, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है। रोपाई के लिए एक परिपक्व टिलर (शाखा) के साथ 2-3 अपरिपक्व टिलर/शाकीय कलियाँ (vegetative buds) इस्तेमाल की जाती हैं। उच्च गुणवत्ता वाले रोपण सामग्री को प्रमाणित नर्सरी से लिया जाना चाहिए।
  • पौधों को रोपने के लिए गड्ढों के केंद्र से थोड़ी मिट्टी हटाई जाती है और पौधों को कॉलर ज़ोन तक रोप दिया जाता है। गहरे रोपण से बचना चाहिए। 
  • भारी बारिश और तेज़ हवा से बचाने के लिए पौधों को सहारा (staking) दिया जाता है। पौधों के आधार पर मल्चिंग (mulching) की जाती है ताकि नमी बनी रहे और खरपतवार नियंत्रण हो सके।

रोपाई के लिए रोपण सामग्री की तैयारी 

  • बड़ी इलायची का प्रसार बीज और सकर के द्वारा होत्र हैं। बीज द्वारा प्रसार से बड़ी संख्या में पौधों की पौध (seedlings) तैयार की जा सकती है। बीज जनित पौधों में वायरस रोगों का संक्रमण नहीं होता, यदि नर्सरी को ताजा संक्रमण से बचाकर रखा जाए।
  • हालांकि, बीज से उगाए गए पौधे हमेशा उच्च उत्पादक नहीं होते, भले ही वे अत्यधिक उत्पादक पौधों से एकत्र किए गए हों, क्योंकि बड़ी इलायची का परागण पर-परागण (cross-pollination) के माध्यम से होता है। 
  • मुख्य परागणकर्ता (pollinator) भौंरा (bumble bee) होता है, हालांकि मधुमक्खियाँ (honey bees) भी परागण में सहायक होती हैं। 
  • सकर के माध्यम से रोपण करने से मूल पौधे (parent plant) की समान विशेषताओं वाले पौधे मिलते हैं।
  •  यदि उच्च उत्पादकता वाले, रोग-मुक्त पौधों से लिए जाएँ, तो वे अधिक उपज देने वाले होते हैं।
  • इस विधि से पौधों की गुणवत्ता अधिक होती है और उत्पादन भी बेहतर होता है।

बड़ी इलायची में जैविक पोषक प्रबंधन 

मिट्टी से पोषक तत्वों की कमी को पूरा करना और निरंतर अच्छी उपज बनाए रखना आवश्यक है। इसके लिए:

- सड़ चुके गोबर की खाद या कम्पोस्ट को 5 किग्रा प्रति पौधा की दर से साल में दो बार (अप्रैल-मई और अगस्त-सितंबर) में डालना लाभकारी होता है।

- वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) मिट्टी की भौतिक संरचना को सुधारने और पोषक तत्व प्रदान करने में प्रभावी होता है, विशेष रूप से नर्सरी या बेड में।

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मल्चिंग और मिट्टी प्रबंधन (Mulching and Soil Management)

- यदि भूमि सीढ़ीनुमा (terraced) नहीं है, तो मिट्टी को ऊपर के हिस्से से काटकर नीचे के हिस्से में रखा जाता है, जिससे मिट्टी का आधार समतल हो सके।

- पौधों के आधार पर तेजी से सड़ने वाले जैविक पदार्थों से मल्चिंग (Mulching) करना लाभकारी होता है, जिससे नमी और मिट्टी का संरक्षण होता है।

- सूखी पत्तियाँ, खरपतवार और जैविक अवशेष मल्च के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता और भौतिक संरचना को सुधारते हैं।

बड़ी इलायची में सिंचाई प्रबंधन (Water Management)

- बड़ी इलायची के पौधे जल की कमी सहन नहीं कर सकते।

- पहले वर्ष में सिंचाई बहुत जरूरी होती है, खासकर सितंबर से मार्च के शुष्क महीनों में हर 10 दिन में एक बार।

- जहाँ सिंचाई की सुविधा हो, वहाँ पौधों की उत्पादकता अधिक देखी गई है।

- पाइप (hose), स्प्रिंकलर (sprinkler) या छोटे जल-निकास नालों (flood irrigation) द्वारा सिंचाई की सलाह दी जाती है।

- बारिश के मौसम में पौधों के बीच जल संचयन गड्ढे (water harvesting pits) बनाने से सूखे मौसम में पानी की कमी को आंशिक रूप से पूरा किया जा सकता है।

बड़ी इलायची में छाया प्रबंधन (Shade Management)

- अत्यधिक छाया या बहुत कम छाया दोनों ही बड़ी इलायची की वृद्धि और उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं।

- 50% छाया सबसे आदर्श मानी जाती है।

- छायादार वृक्षों की शाखाओं की छंटाई (lopping) मानसून से पहले जून-जुलाई में की जानी चाहिए।

- अत्यधिक धूप से बचाव करना भी जरूरी है, क्योंकि इससे पत्तियाँ पीली पड़ सकती हैं।

- हाल के वर्षों में सिक्किम और अन्य क्षेत्रों में बिना छाया के खुली भूमि या सीढ़ीदार खेतों में बड़ी इलायची की खेती का प्रचलन बढ़ा है, लेकिन इसका प्रभाव अभी शोध का विषय है।

बड़ी इलायची में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management)

- खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक है ताकि मिट्टी की नमी और पोषक तत्व पौधों को अधिक मात्रा में मिल सकें।

- पहले 2-3 वर्षों में तीन बार निराई-गुड़ाई करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।

- खरपतवार नियंत्रण के लिए दरांती (sickle) या हाथ से निराई की जाती है, जो खरपतवार की घनत्व पर निर्भर करता है।

- पौधों के चारों ओर खरपतवार को जड़ से निकालकर, लेकिन फसलों के बीच केवल दरांती से काटने की सलाह दी जाती है।

- पूर्ण रूप से खरपतवार हटाने की जरूरत नहीं होती क्योंकि बड़ी इलायची प्राकृतिक रूप से मिट्टी को स्थिर बनाए रखने में सक्षम होती है।

- खरपतवार निकालने के बाद सूखी शाखाएँ और अन्य जैविक अवशेष पौधों के आधार पर मल्च के रूप में डालना लाभकारी होता है, जिससे: नमी का संरक्षण होता है।  

 - सूखी जड़ों को ढकने में मदद मिलती है।

 - नए खरपतवार उगने से रोका जा सकता है।

- फूल आने के दौरान इन जैविक अवशेषों को पुष्पक्रम (inflorescence) के ऊपर नहीं डालना चाहिए, ताकि परागण की प्रक्रिया बाधित न हो।