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आड़ू का उत्पादन कैसे किया जाता है जानिए यहां

Published on: 19-Mar-2025
Updated on: 19-Mar-2025
Ripe peaches hanging on a tree with green leaves
फसल बागवानी फसल फल

आड़ू (Peach) एक लोकप्रिय फल है जिसकी खेती मुख्य रूप से पर्वतीय और उप-पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम प्रूनस पर्सिका (Prunus persica) है और यह रोज़ेसी (Rosaceae) परिवार का सदस्य है। 

आड़ू अपने स्वादिष्ट फलों के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसमें प्रोटीन, शर्करा, खनिज और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं, जिससे यह पोषण का उत्तम स्रोत बनता है। 

आड़ू के ताजे फलों का सेवन किया जाता है, साथ ही यह जैम, स्क्वैश, शरबत और अन्य प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्माण में भी प्रयुक्त होता है। 

किसानों के लिए यह एक लाभदायक फसल हो सकती है, बशर्ते वे इसकी वैज्ञानिक विधियों से खेती करें। इस लेख में, हम आड़ू की खेती से संबंधित सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

मिट्टी और जलवायु की आवश्यकताएँ

आड़ू की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी की गहराई 2.5 से 3 मीटर होनी चाहिए और इसका pH मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए। 

जल निकास की उचित व्यवस्था अत्यंत आवश्यक होती है क्योंकि जलभराव फसल की जड़ों को नुकसान पहुँचा सकता है।

आड़ू की खेती के लिए ठंडी और गर्म जलवायु दोनों की आवश्यकता होती है। इसे कुछ समय के लिए 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान की आवश्यकता होती है, जिससे यह निष्क्रिय अवस्था में जा सके और अच्छे फलन के लिए तैयार हो सके। अधिक तापमान में इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है, इसलिए इसे समशीतोष्ण जलवायु में उगाना बेहतर होता है।

आड़ू की उन्नत किस्में

भारत में आड़ू की कई प्रमुख किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • शान-ए-पंजाब
  • प्रताप
  • खुर्मानी
  • फ्लोरिडा किंग
  • ट्रॉपिक स्नो
  • ताहती

प्रत्येक क्षेत्र में उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियों के अनुसार आड़ू की विभिन्न किस्मों का चुनाव किया जाता है।

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आड़ू का प्रसार

आड़ू का प्रसार बीज विधि और वेजेटेटिव विधियों (ग्राफ्टिंग एवं बडिंग) द्वारा किया जाता है। वाणिज्यिक उत्पादन के लिए वेजेटेटिव प्रसार को प्राथमिकता दी जाती है।

रूटस्टॉक उगाना:

ग्राफ्टिंग के लिए रूटस्टॉक उगाने हेतु जंगली आड़ू को बीजों से उगाया जाता है।

बीजों को 4-10 डिग्री सेल्सियस पर 10-12 सप्ताह तक नम बालू में रखा जाता है ताकि वे परतबद्ध हो सकें।

अंकुरण को बढ़ाने के लिए थायोयूरेआ (5 ग्राम/लीटर पानी) या GA3 (200 मिलीग्राम/लीटर पानी) से बीजों का उपचार किया जाता है।

नर्सरी में बुवाई अक्टूबर-नवंबर के दौरान की जाती है।

बीजों को 5 सेमी गहरे और 15 सेमी की दूरी पर एक पंक्ति में बोया जाता है और बुवाई के बाद हल्की सिंचाई की जाती है।

ग्राफ्टिंग विधि:

  • आड़ू की ग्राफ्टिंग नवंबर-दिसंबर में की जाती है।
  • वाणिज्यिक रूप से टंग ग्राफ्टिंग और क्लेफ/वेज ग्राफ्टिंग सबसे प्रभावी पाई गई हैं।

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खेत की तैयारी और रोपण

खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, इसके बाद 2-3 बार आड़ी-तिरछी जुताई कर समतल बनाना आवश्यक है।

गड्ढे 4.5 x 4.5 मीटर की दूरी पर खोदे जाते हैं।

गड्ढों का आकार 0.75 x 0.75 x 0.75 मीटर रखा जाता है।

प्रत्येक गड्ढे में 15-20 किग्रा गोबर खाद, 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम मॉप, 300 ग्राम एसएसपी और 50 ग्राम क्लोरोपाइरीफोस मिलाकर भरा जाता है।

रोपण का उपयुक्त समय सर्दियों का निष्क्रिय मौसम या मानसून की शुरुआत होता है।

सिंचाई और खाद प्रबंधन

  • प्रारंभिक चरण में पौधों की नियमित सिंचाई करनी चाहिए।
  • गर्मी के मौसम में 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई आवश्यक होती है।
  • आड़ू के पौधों को प्रति वर्ष 100 ग्राम नाइट्रोजन, 200-250 ग्राम फास्फोरस और 80-100 ग्राम पोटाश देना आवश्यक होता है।
  • जैविक खाद का प्रयोग फसल की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होता है।

प्रमुख कीट एवं रोग नियंत्रण

  • आड़ू एफिड: यह कीट पौधों का रस चूसकर उन्हें कमजोर करता है। रोकथाम: डिमेथोएट (1.5 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव।
  • तना बोरर: यह तनों में छेद कर नुकसान पहुँचाता है। रोकथाम: प्रभावित शाखाओं को हटा दें और पेट्रोल में डूबी रुई डालें।
  • बैक्टीरियल गम्मोसिस: तनों पर गोंद जैसा पदार्थ निकलता है। रोकथाम: बोर्डो मिक्सचर (1%) का छिड़काव करें।
  • पत्ते मुड़ने वाला वायरस: पत्तियाँ सिकुड़कर विकृत हो जाती हैं। रोकथाम: Dithane Z-78 (200 ग्राम/100 लीटर पानी) का छिड़काव करें।

फसल की तुड़ाई और भंडारण

  • आड़ू की तुड़ाई अप्रैल से मई तक की जाती है।
  • फल का रंग बदलने और गुद्दा नरम होने पर तुड़ाई करें।
  • तुड़ाई के बाद फलों को सामान्य तापमान पर संग्रहित किया जाता है।
  • आड़ू का उपयोग जैम, स्क्वैश, शरबत, वाइन आदि में किया जा सकता है।

आड़ू की खेती एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसमें सही मिट्टी, जलवायु, उन्नत किस्में, उपयुक्त ग्राफ्टिंग तकनीक और कीट नियंत्रण का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। वैज्ञानिक विधियों को अपनाकर किसान आड़ू की अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और इसे एक लाभदायक व्यवसाय बना सकते हैं।