आड़ू (Peach) एक लोकप्रिय फल है जिसकी खेती मुख्य रूप से पर्वतीय और उप-पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम प्रूनस पर्सिका (Prunus persica) है और यह रोज़ेसी (Rosaceae) परिवार का सदस्य है।
आड़ू अपने स्वादिष्ट फलों के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसमें प्रोटीन, शर्करा, खनिज और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं, जिससे यह पोषण का उत्तम स्रोत बनता है।
आड़ू के ताजे फलों का सेवन किया जाता है, साथ ही यह जैम, स्क्वैश, शरबत और अन्य प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्माण में भी प्रयुक्त होता है।
किसानों के लिए यह एक लाभदायक फसल हो सकती है, बशर्ते वे इसकी वैज्ञानिक विधियों से खेती करें। इस लेख में, हम आड़ू की खेती से संबंधित सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
आड़ू की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी की गहराई 2.5 से 3 मीटर होनी चाहिए और इसका pH मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए।
जल निकास की उचित व्यवस्था अत्यंत आवश्यक होती है क्योंकि जलभराव फसल की जड़ों को नुकसान पहुँचा सकता है।
प्रत्येक क्षेत्र में उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियों के अनुसार आड़ू की विभिन्न किस्मों का चुनाव किया जाता है।
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आड़ू का प्रसार बीज विधि और वेजेटेटिव विधियों (ग्राफ्टिंग एवं बडिंग) द्वारा किया जाता है। वाणिज्यिक उत्पादन के लिए वेजेटेटिव प्रसार को प्राथमिकता दी जाती है।
ग्राफ्टिंग के लिए रूटस्टॉक उगाने हेतु जंगली आड़ू को बीजों से उगाया जाता है।
बीजों को 4-10 डिग्री सेल्सियस पर 10-12 सप्ताह तक नम बालू में रखा जाता है ताकि वे परतबद्ध हो सकें।
अंकुरण को बढ़ाने के लिए थायोयूरेआ (5 ग्राम/लीटर पानी) या GA3 (200 मिलीग्राम/लीटर पानी) से बीजों का उपचार किया जाता है।
नर्सरी में बुवाई अक्टूबर-नवंबर के दौरान की जाती है।
बीजों को 5 सेमी गहरे और 15 सेमी की दूरी पर एक पंक्ति में बोया जाता है और बुवाई के बाद हल्की सिंचाई की जाती है।
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खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, इसके बाद 2-3 बार आड़ी-तिरछी जुताई कर समतल बनाना आवश्यक है।
गड्ढे 4.5 x 4.5 मीटर की दूरी पर खोदे जाते हैं।
गड्ढों का आकार 0.75 x 0.75 x 0.75 मीटर रखा जाता है।
प्रत्येक गड्ढे में 15-20 किग्रा गोबर खाद, 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम मॉप, 300 ग्राम एसएसपी और 50 ग्राम क्लोरोपाइरीफोस मिलाकर भरा जाता है।
रोपण का उपयुक्त समय सर्दियों का निष्क्रिय मौसम या मानसून की शुरुआत होता है।
आड़ू की खेती एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसमें सही मिट्टी, जलवायु, उन्नत किस्में, उपयुक्त ग्राफ्टिंग तकनीक और कीट नियंत्रण का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। वैज्ञानिक विधियों को अपनाकर किसान आड़ू की अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और इसे एक लाभदायक व्यवसाय बना सकते हैं।