रतालू की खेती: किस्में, जलवायु, उर्वरक और उत्पादन

Published on: 17-Mar-2025
Updated on: 17-Mar-2025
Freshly harvested cassava roots in a field, ready for processing
फसल बागवानी फसल शकरकंद

रतालू एक प्रकार की भूमिगत सब्जी है, जिसका उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है। इसे पकाकर, उबालकर, भूनकर, तलकर खाया जाता है। 

इसके अलावा, रतालू से चिप्स, वेफर और अन्य खाद्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं। यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है और मधुमेह, थायरॉइड, कैंसर, बवासीर, उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों के प्रबंधन में सहायक माना जाता है।  

रतालू की खेती का विस्तार  

रतालू की खेती मुख्य रूप से अफ्रीका में की जाती थी, लेकिन अब भारत के विभिन्न राज्यों में भी इसे उगाया जाने लगा है। राजस्थान में विशेष रूप से उदयपुर संभाग में इसकी खेती की जाती है। 

यहां से गुजरात और मध्य प्रदेश में इसकी अधिक मांग रहती है। इसके साथ ही, किसान बरसीम और रिजका जैसी फसलें उगाकर अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं।  

रतालू के पौधे की विशेषताएँ  

इसके पत्ते पान के पत्तों की तरह दिखाई देते हैं, और इसकी गूदा सफेद या जामुनी रंग का होता है।  

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जलवायु और मिट्टी  

रतालू की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में बेहतर उत्पादन देती है। 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है। यह दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगता है, लेकिन खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे कंद जल्दी सड़ सकते हैं।

रतालू की खेती: किस्में, खेत की तैयारी और उत्पादन  

रतालू की किस्में  

रतालू मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है:  

  1. लाल रतालू – इसकी गुजरात में अधिक मांग रहती है।  
  2. सफेद रतालू – इसे मध्य प्रदेश में ज्यादा पसंद किया जाता है।  

खेत की तैयारी  

रतालू की खेती के लिए 3 से 4 बार जुताई करनी चाहिए। इसके बाद, 50 सेंटीमीटर चौड़ी बेड्स बनाई जाती हैं। प्रत्येक बेड पर 30 सेंटीमीटर की दूरी पर 40-50 ग्राम के रतालू के टुकड़ों को बीज के रूप में लगाया जाता है। प्रति हेक्टेयर 20-30 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।  

बुवाई से पहले, बीजों को 0.2% मैनकोजेब (फफूंदनाशक) के घोल में 4-5 मिनट तक डुबोकर उपचारित करना चाहिए। 

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बुवाई का समय  

रतालू की खेती के लिए अप्रैल से जून तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। कुछ किसान मार्च में ही बुवाई कर देते हैं, जिससे नवंबर में खुदाई की जा सकती है।  

 खाद और उर्वरक प्रबंधन  

खेत की तैयारी के दौरान 

  •  200 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद मिलानी चाहिए।  
  •  60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश बेड में डालना चाहिए।  

नाइट्रोजन प्रबंधन  

  •   50 किलोग्राम नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में बांटना चाहिए।  
  •   पहला भाग बुवाई के बाद दूसरे महीने और दूसरा भाग तीसरे महीने पौधों के चारों ओर डालकर सिंचाई करनी चाहिए।  

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रतालू की फसल में अंतर-सस्य क्रियाएँ  

1. खरपतवार नियंत्रण  

  •    पहली निराई-गुड़ाई 50% अंकुरण होने के बाद करनी चाहिए।  
  •    दूसरी निराई पहली निराई के एक महीने बाद करनी चाहिए।  

2. सिंचाई प्रबंधन  

  •    बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई आवश्यक होती है।  
  •    इसके बाद 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।  
  •    बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से पानी की बचत होती है और खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है।  

3. मिट्टी चढ़ाना  

  •    बारिश के कारण कंद कभी-कभी बाहर आ जाते हैं, इसलिए उन्हें मिट्टी से ढकना चाहिए।  
  •    इससे उपजाऊ मिट्टी का संरक्षण होता है और कंद बेहतर बढ़ते हैं।  

फसल की खुदाई और उत्पादन  

  • रतालू की फसल 8-9 महीनों में तैयार हो जाती है।  
  • जब पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं, तो कंद की खुदाई सावधानीपूर्वक करनी चाहिए।  
  • एक हेक्टेयर क्षेत्र से 350-400 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त हो सकता है।