रतालू एक प्रकार की भूमिगत सब्जी है, जिसका उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है। इसे पकाकर, उबालकर, भूनकर, तलकर खाया जाता है।
इसके अलावा, रतालू से चिप्स, वेफर और अन्य खाद्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं। यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है और मधुमेह, थायरॉइड, कैंसर, बवासीर, उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों के प्रबंधन में सहायक माना जाता है।
रतालू की खेती मुख्य रूप से अफ्रीका में की जाती थी, लेकिन अब भारत के विभिन्न राज्यों में भी इसे उगाया जाने लगा है। राजस्थान में विशेष रूप से उदयपुर संभाग में इसकी खेती की जाती है।
यहां से गुजरात और मध्य प्रदेश में इसकी अधिक मांग रहती है। इसके साथ ही, किसान बरसीम और रिजका जैसी फसलें उगाकर अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं।
इसके पत्ते पान के पत्तों की तरह दिखाई देते हैं, और इसकी गूदा सफेद या जामुनी रंग का होता है।
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रतालू की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में बेहतर उत्पादन देती है। 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है। यह दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगता है, लेकिन खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे कंद जल्दी सड़ सकते हैं।
रतालू की किस्में
रतालू मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है:
रतालू की खेती के लिए 3 से 4 बार जुताई करनी चाहिए। इसके बाद, 50 सेंटीमीटर चौड़ी बेड्स बनाई जाती हैं। प्रत्येक बेड पर 30 सेंटीमीटर की दूरी पर 40-50 ग्राम के रतालू के टुकड़ों को बीज के रूप में लगाया जाता है। प्रति हेक्टेयर 20-30 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।
बुवाई से पहले, बीजों को 0.2% मैनकोजेब (फफूंदनाशक) के घोल में 4-5 मिनट तक डुबोकर उपचारित करना चाहिए।
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रतालू की खेती के लिए अप्रैल से जून तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। कुछ किसान मार्च में ही बुवाई कर देते हैं, जिससे नवंबर में खुदाई की जा सकती है।
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