कैसा होता है कैसुरीना का पेड़, जानिए सम्पूर्ण जानकारी

Published on: 03-Mar-2024

कैसुरीना के पेड़ को देसी पाइन के नाम से भी जाना जाता है। यह फूलो के पौधों की एक प्रजाति है, जो कैसुरिनासी परिवार से सम्बंधित है। यह भारतीय उपमहाद्वीुप और ऑस्ट्रेलिया का मूल निवासी है।

इस पेड़ की पत्तियां शाखाओ के चारो ओर बिखरी हुई होती है। साथ ही इस पेड़ में नर और मादा फूल अलग अलग स्पाइक्स में व्यवस्थित होते है। 

कैसुरीना का पौधा दरारयुक्त रहता है, साथ ही यह पेड़ भूरे काले रंग और पपड़ीदार छाल वाले होते है। इस पेड़ की शाखाये नरम और नीचे की तरफ झुकी हुई होती है। 

हिंदी में कैसुरीना के पेड़ को जंगली सारू के नाम से भी जाना जाता है। 

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कैसुरीना वृक्ष बहुत तेजी से बढ़ने वाला एक सदाबहार वृक्ष है। इस पेड़ की ऊंचाई 40 मीटर होती है, साथ ही इस पेड़ का व्यास यानी चौड़ाई 60 सेंटीमीटर होता है। 

यह पेड़ ज्यादातर समुन्द्र तट पर पाया जाता है, इसके लिए रेतीली मिट्टी को उपजाऊ बताया जाता है। यह पेड़ काल्पनिक होने के साथ साथ दृण भी है, इस वृक्ष की प्राकर्तिक जीवन अवधी 50 वर्ष से भी अधिक होती है। 

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भारत में कैसुरीना वृक्ष की खेती 

यह पेड़ दक्षिण पश्चिम और उत्तर पूर्वी दोनों मोनसून में अच्छे से बढ़ती है। दक्षिण भारत में इसकी खेती रेतली समुन्द्र तटों को फिर से प्राप्त करने के लिए की जा रही है। 

लेकिन उत्तरी भारत में इसका उत्पादन ज्यादातर ईंधन के लिए किया जाता है। बागवान इस पेड़ का उत्पादन ज्यादातर बागो की सजावट के लिए करते है।साथ ही हॉट हाउस जैसे जगहों की सजावट के लिए इस पेड़ को लगाया जाता है। 

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यह पेड़ बहुत ही ठोस होता है इसीलिए इसे आइरनवुड के नाम से भी जाना जाता है। यह पेड़ ज्यादातर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में रेतीली मिट्टी में उगाया जाता है।  

इस पेड़ की शाखाएँ असमान छाल से ढकी हुई होती है। इस पेड़ की लकड़ी काफी मजबूत होती है, इसीलिए इसका उपयोग बाड़ आदि लगाने के लिए भी किया जाता है। 

कैसुरीना के पेड़ में नाइट्रोजन की मात्रा को स्थिर करने वाली ग्रंथिया भी पायी जाती है। साथ ही यह पेड़ 47 डिग्री से अधिक तापमान को भी सहन कर सकता है। इस वृक्ष पर जो फूल आते है वो आमतौर पर एकलिंगी होते है। 

साल में इस पर दो बार फूल आते है  पहले तो जनवरी से फरवरी की समय अवधी में उसके बाद इसपर 6 महीने बाद ही फूल देखने को मिलते है। 

इसमें नर फूल बेलनाकार के जैसे दिखाई पड़ते है यही मादा फूल शाखा की धुरी में स्तिथ होते है, जिनके घने सिर होते है। यह मादा फूल छोटी कलियों के जैसे दिखते है यह फूल मुड़े हुए होते है और लाल रंग के बालो से ढके हुए होते है।

ज्यादातर इन सिरों को समूह के रूप में देखा जाता है। कुछ समय बाद यह कली शंक के जैसा आकर ग्रहण कर लेती है और इस पर से घने लाल बाल झड़कर निचे गिर जाते है। 

भारत में कैसुरिना पेड़ का उपयोग 

कैसुरीना पेड़ की लकड़ी ठोस होती है, इसीलिए बढ़ई भी इसके साथ काम करने में असमर्थ रहते है। यह पेड़ बीम और पोस्ट के लिए अधिक उपयोगी माना जाता है। 

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ज्यादातर इस पेड़ का उत्पादन ईंधन के लिए किया जाता है, यह दुनिया की सबसे अच्छी जलाऊ लकड़ियों में से एक है। यह पेड़ लम्बे समय तक भूमिगत नहीं रहता है, इस पेड़ को 10 -12 साल पुराना होने पर अपने उपयोग के लिए काट लिया जाता है। आमतौर पर कैसुरिना की छाल का उपयोग मछुआरों के जालों को रंगने के लिए किया जाता है। 

यह पेड़ मिट्टी की उर्वरकता के साथ साथ स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी होता है। यह पेड़ मिट्टी की उत्पादन क्षमता को बनाये रखता है, साथ ही इससे पर्यावरण भी अनुकूल  प्रभाव पड़ते है। 

यह पेड़ फसल चक्र और सिंचाई जैसी गतिविधियों में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है। साथ ही यह पेड़ वन्य जीवो के लिए भी आश्रय प्रदान करता है। 

इस पेड़ की लकड़ी का उपयोग फर्नीचर आदि बनाने के लिए भी किया जाता है। साथ ही यह भूनिर्माण उद्देश्यों के लिए भी उपयोग किया जाता है। यह पेड़ सांस्कृतिक और पारिस्थितिक रूप से हमारे पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण अंग बने हुए है।

यह हमे स्वास्थ्य से लेकर भवन निर्माण और दवा तक के श्रोत प्रदान करता है। इस पेड़ को ऑस्ट्रेलियाई देवदार, आइरनवुड और वीफवूड के नाम से भी जाना जाता है। 

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