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कैसे करें बाजरा की उन्नत खेती

Published on: 06-Jun-2020

बाजरा की बिजाई का समय नजदीक है।किसान भाई अभी तक प्राइवेट कंपनियों की महंगे बीजों का ही प्रयोग ज्यादा करते हैं लेकिन पूसा संस्थान दिल्ली में बाजरा की कई उन्नत किस्में निकाली हैं। इनमें कम्पोजिट और हाइब्रिड दोनों श्रेणी की किस्में बेहद सस्ती दर पर उपलब्ध हैं।इस बार किसान भाई बाजरा की बिजाई में जल्दबाजी कर रहे हैं जो नुकसानदायक हो सकती है। बाली के समय पर अगर बारिश आती रही तो उत्पादन का ज्यादातर प्रभावित होना तय है। लिहाजा मानसून आने के बाद ही बिजाई करें। 

उन्नत किस्में

पूसा संस्थान की पूसा कम्पोजिट 612 किस्मत महाराष्ट्र तमिलनाडु कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश के लिए बारानी एवं सिंचित अवस्थाओं में बुवाई हेतु उपयुक्त है।इस किस्म का उत्पादन 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है। यह दोहरे उपयोग वाली किस्में है जो चारा और दाना दोनों के लिए उपयोगी है। पकने में 80 से 85 दिन लेती है तथा डाउनी मिल्ड्यू बीमारी के प्रति प्राकृतिक परिस्थितियों में प्रतिरोधक है।

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पूसा कंपोजिट्स 443

यह किसने राजस्थान, गुजरात एवं हरियाणा राज्य में वारानी अवस्था में बुवाई के लिए उपयुक्त है। 18 कुंटल प्रति हेक्टेयर मिलती है यह शीघ्र पकने वह बढ़ने वाली किस्म है। जिन इलाकों में 400 मिली मीटर से कम वर्षा होती है वहां के लिए यह उपयुक्त मानी गई है। 

पूसा कम्पोजिट 383

राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं दिल्ली राज्य में सिंचित एवं बारानी अवस्था में इस किस्म से 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन मिलता है। दोहरे उपयोग वाली इस किस्म का ठीक से उत्पादन कर किसान इसे अनाज की वजह बीच में बदल सकते हैं और अपना मुनाफा बढ़ा सकते हैं।

पूसा संकर 415

राजस्थान, गुजरात ,हरियाणा ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश ,पंजाब एवं दिल्ली राज्य में स्थित बारानी एवं संचित दोनों अवस्थाओं के लिए उपयुक्त है ।25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है। अधिकतम 78 दिन में पकने वाली इस किस्म मैं डाउनी मिल्डयू रोग नहीं लगता। इसके अलावा यह किस्म सूखा के प्रति सहनशील है।

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इसके अलावा एचएचबी 67, आर एस बी 121, MH1 69 सरीखी राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र के कृषि विश्वविद्यालय की अनेक क्षेत्रीय किसमें देश में मौजूद हैं। प्राइवेट कंपनियों में फायर, श्री राम ,कावेरी ,पायोनियर , महको, कृष्णा जैसी अनेक कंपनियों के बाजरा बीच बाजार में उपलब्ध ही हैं और किसान इन्हें पसंद भी करते हैं लेकिन दिक्कत यह है की इन किस्मों के पैकेट के ऊपर प्रजाति से जुड़ी हुई पकाव अवधि , अधिकतम उत्पादन क्षमता आदि की जानकारी नहीं होती। एक किसान दूसरे किसान से पूछ कर ही इन किस्मों का प्रयोग करता है। सरकारी संस्थानों के बीजों की बाजार में पहुंच नहीं होती इसलिए किसान प्राइवेट कंपनियों पर ही निर्भर होकर रह जाता है। 

अनुमोदित सस्य क्रियाएं

20 दिन 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40 से 50 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 810 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। मोबाइल का उपयुक्त समय मानसून आने के बाद या जुलाई माह माना जाता है। उर्वरक नाइट्रोजन 60 फास्फोरस 30 एवं पोटाश 30 किलोग्राम की दर से रखा जाता है बारानी अवस्था में इसमें 10% का इजाफा कर दिया जाता है। 

खरपतवार नियंत्रण के लिए एड्रेस इन नामक दवा का पर्याप्त पानी में घोल बनाकर छिड़काव मोबाइल के बाद तथा अंकुरण से पहले किया जाना चाहिए। डाउनी मिलडायू रोग नियंत्रण के लिए रिडोमिल एमजैड 72 की 2.5 ग्राम प्रति लीटर ,अरगट के लिए बावरस्टीन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करके रोकथाम की जा सकती है। रोंयेवाली इल्ली , टिड्डा व भूरे घुनों की रोकथाम के लिए फसल पर कार्बारिल 85% डब्ल्यूपी 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी, क्लोरोपायरीफास 20ईसी 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।

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