सतावर एक औषधीय पौधा है जो सिद्धा और होम्योपैथिक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। भारत में विभिन्न औषधीय उत्पादों को बनाने के लिए हर साल 500 टन सतावर की जड़ों की आवश्यकता होती है।
एक एकड़ में 2 से 3 क्विंटल सतावर उत्पादन होता है। अभी बाजार में इसकी कीमत 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक है। इसलिए प्रति एकड़ कीमत 1.5 लाख से 3 लाख रुपये तक हो सकती है।
सतावर (Shatavari) एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग कई प्रकार की शारीरिक समस्याओं के उपचार में किया जाता है। इसके कुछ प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं:
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सतावर उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से उगता है। इसे गर्म और आर्द्र क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। अधिकतम 35-40 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके लिए उपयुक्त होता है।
भूमि: हल्की दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, सतावर की खेती के लिए आदर्श होती है। मिट्टी का pH स्तर 6-8 के बीच होना चाहिए।
खेत को गहरी जुताई करके तैयार किया जाता है ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद मिट्टी को समतल कर लें और 10-12 टन गोबर की खाद या जैविक खाद प्रति हेक्टेयर में डालें।
सतावर की जड़ें जमीन के नीचे फैलती हैं, इसलिए मिट्टी का अच्छी तरह से तैयार होना आवश्यक है।
सतावर की खेती बीजों या जड़कों (ट्यूबर्स) से की जा सकती है। बीजों से पौधे उगाने के लिए बीजों को पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें।
जड़ों से खेती करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली जड़कों का चयन करें और उन्हें सीधे खेत में लगाएं।
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सतावर की बुवाई का सही समय जून से जुलाई तक का होता है, जब मानसून शुरू होता है।
बीजों को लगभग 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोया जाता है और जड़ों को 10-12 सेंटीमीटर गहराई पर रोपा जाता है।
पौधों के बीच की दूरी लगभग 30-45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। कतारों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि पौधों को फैलने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।
मानसून के मौसम में सतावर को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन शुष्क मौसम में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
प्रति सप्ताह एक बार हल्की सिंचाई पर्याप्त होती है। जड़ों में पानी जमा न होने दें क्योंकि इससे सड़ने का खतरा हो सकता है।
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खरपतवार को समय-समय पर हटाना आवश्यक है ताकि पौधों को पोषक तत्व मिल सकें। हाथ से निराई या यांत्रिक उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है।
जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट या गोबर की खाद का उपयोग करें। 2-3 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का उपयोग फायदेमंद होता है।
रासायनिक उर्वरकों का कम से कम उपयोग करें और जैविक तरीकों से पोषक तत्वों की आपूर्ति करें।
सतावर की जड़ें 18-24 महीने बाद तैयार हो जाती हैं। जब पौधा सूखने लगता है, तब जड़ों को खोदकर निकाल लिया जाता है।
जड़ें निकालने के बाद उन्हें साफ करके धूप में सुखाया जाता है और फिर बाजार में बेचा जाता है।
सतावर की औसत उपज लगभग 3-4 टन प्रति हेक्टेयर होती है, जो जड़ों की गुणवत्ता और खेती की पद्धति पर निर्भर करती है।
सतावर की खेती में शुरुआती निवेश थोड़ा अधिक हो सकता है, लेकिन सही तरीके से खेती करने पर यह काफी लाभकारी फसल हो सकती है।