शलजम वैसे तो 1000 वाली सब्जी होती है लेकिन इसे फल के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा सब्जी और सलाद दोनों की तरह इसे खाया जाता है.
सहजन की खेती ज्यादातर मैदानी इलाकों में की जाती है और यह सर्दी के मौसम में उगाई जाने वाली फसल है. शलजम में पोषक तत्व काफी ज्यादा होते हैं और इसकी जानकारी सभी को होती है.
शलजम विटामिन और खनिज का तो अच्छा स्त्रोत है ही साथ ही इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, फाइबर और कैल्शियम भी मिलता है. कैंसर, हृदय रोग, सूजन और ब्लड प्रेशर के मरीजों को डॉक्टर से खाने की सलाह देते हैं.
इसमें पाया जाने वाला विटामिन सी हमारी इम्यून सिस्टम को अच्छा रखने में मदद करता है. शलजम की फसल में इसके जड़ और पत्ते दोनों का ही इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि जोड़ों में विटामिन सी होता है और इसके पत्ते कैल्शियम और विटामिन से भरपूर होते हैं.
लेकिन एक बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि इसके पत्ते स्वाद में कड़वे होते हैं इसलिए एक बार बोलने के बाद ही उन्हें खाना चाहिए.
इस के अलावा इस फसल की एक और खासियत यह है कि इसके पत्तों का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है और यह पशुओं के लिए भी काफी पोस्टिक आहार माना गया है..
इस आर्टिकल के माध्यम से शलजम की खेती करने के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी. शलजम की फसल कैसे उगाएं और इसकी खेती के क्या फायदे हैं आप इस आर्टिकल के माध्यम से जान सकते हैं.
एकदम कड़क और चिकनी मिट्टी में यह फसल कभी भी नहीं उठती हैं क्योंकि फलों की जड़ें भूमि के अंदर होती हैं इसलिए हमेशा ही नरम होने की आवश्यकता रहती हैं. इस फसल का उत्पादन ठंडी जलवायु में किया जाता है इसलिए तापमान 20 डिग्री सेल्सियस होना अनिवार्य है.
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एक बार जुताई करने के बाद खेत को थूक लगाने के लिए छोड़ दिया जाता है और इसके बाद उसमें पुराने सड़ी हुई गोबर की खाद या फिर वर्मी कंपोस्ट डाली जाती हैं.
इसके बाद थोड़े समय के लिए खेत को खुला छोड़ देने की जरूरत है और बाद में आप फिर से एक बार खेत की जुताई कर के खाद और मिट्टी को अच्छी तरह से मिला सकते हैं.
एक बार जब खाद और मिट्टी अच्छी तरह से मिल जाए तो इसमें पानी डाला जाता है और उसके बाद मिट्टी के सूख जाने पर इस की जुताई रोटावेटर से करते हुए मिट्टी को भी भुरभुरा कर दिया जाता है.
इसके बाद आप कांटा लगा कर जमीन को समतल करने के बाद इसमें 50 KG फास्फोरस, 100 KG नाइट्रोजन और 50 KG पोटाश डालकर जमीन की आखरी जुताई कर सकते हैं.
सफेद 4 :- सफेद चार शलजम की एक ऐसी किस्म है जिसे बारिश के मौसम में भी लगाया जा सकता है और यह 50 से 55 दिन के बीच में बनकर तैयार हो जाती है. अगर ऊपर की मात्रा की बात की जाए तो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 200 क्विंटल तक शलजम का उत्पादन इस किस्म से किया जा सकता है.
परपल टोप :- इस किस्म की शलजम में जड़े सामान्य से थोड़े बड़े आकार की होती हैं और ऊपर से बैंगनी और सफेद रंग की दिखाई देती है. इसे बनने में लगभग 2 महीने का समय लगता है और उत्पादन की मात्रा प्रति व्यक्ति के हिसाब से 150 से 180 क्विंटल तक की जा सकती है.
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पूसा-स्वर्णिमा :- आकार में गोल और पीले रंग की जड़ों वाली यह स्वयं पकने में 60 से 65 दिन का समय लेती है. इससे उगने वाला फल एकदम चिकना नजर आता है.
पूसा-चन्द्रिमा :- शलजम की कसम में उत्पादन काफी अच्छा होता है और जमीन में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 से 250 क्विंटल तक शलजम का उत्पादन हो जाता है. इस फसल को बनकर तैयार होने में भी केवल 50 से 55 दिन का समय ही लगता है.
पूसा-कंचन :- इस क़िस्म को रेड एसीयाटिक किस्म तथा गोल्डन-वाल के माध्यम से तैयार किया गया है | इसमें शलजम का ऊपरी भाग लाल और गुदा पीले रंग का होता है |
पूसा-स्वेती :- यह किसने उत्पादन काफी जल्दी दे देती है और साथ ही इसकी बुआई भी अगस्त से सितंबर के महीने में की जा सकती हैं. एकदम चमकदार और सफेद दिखने वाली शलजम की यह फसल 40 से 50 दिन में बनकर तैयार हो जाती है.
स्नोवाल :- इसकी खासियत है कि इससे बनकर तैयार होने वाला शलजम का फल एकदम सफेद और गोल आकार होता है और साथ ही यह स्वाद में मीठा भी होता है. इसकी जड़े 50 से 55 दिन के बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती हैं.
इस फसल के बीजों को लगाने के लिए पंक्ति तैयार की जाती है और इनके बीच में लगभग 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है.
इसके अलावा बीजों के बीच में 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है और इसकी गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर तक रखना सही होता है. अगर प्रति हेक्टेयर की बात की जाए तो एक हेक्टेयर के क्षेत्र में शलजम लगाते समय 3:00 से 4 किलो तक बीज लग जाते हैं.
शलजम के पौधों की पहली सिंचाई बीज बुवाई के 8 से 10 दिन पश्चात् की जाती है, तथा जरूरत पड़ने पर बाद पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए |
बाकी सभी फसल की तरह ही इसमें भी खरपतवार के नियंत्रण के लिए पौधों की निराई – गुड़ाई की जाती है | शलजम की फसल 2 से 3 गुड़ाई में तैयार हो जाती है |
निराई - गुड़ाई के अलावा पेंडीमेथलिन 3 लीटर की मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में मिलाकर बीज रोपाई के दो दिन पश्चात प्रति हेक्टेयर के खेत में छिड़काव करे |
इसके अलावा इसमें खरपतवार के नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर के खेत में M 45 या Z 78 की 0.2 प्रतिशत की मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करे |
कीट से बचाव के लिए:- शलजम की फसल पर कीट रोग मुंगी, माहू, सुंडी, बालदार कीड़ा और मक्खी के रूप में आक्रमण करते है|
इस कीट रोग के आक्रमण को रोकने के लिए 700 से 800 लीटर पानी में 1 लीटर मैलाथियान को डालकर उसका छिड़काव खेत में करे | इसके अलावा 1.5 लीटर एंडोसल्फान की मात्रा को उतने ही पानी मिलाकर उसका छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करे
इसके बाद आप जड़ों के पकने का इंतजार करें जो सामान्यतः 50 से 70 दिन में बनकर तैयार हो जाती हैं. आप सामान्य तौर पर खुरपी की मदद से भी इसकी खुदाई कर सकते हैं.
एक बार फसल तोड़ लेने के बाद उसे अच्छी तरह से धोकर इकट्ठा कर ले और अगर उत्पादन की बात की जाए तो लगभग 1 हेक्टेयर की जमीन में 200 से ढाई क्विंटल तक ही शलजम का उत्पादन किया जा सकता है और किसान इस फसल का उत्पादन करते हुए अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं.