लौंग का इस्तेमाल मसाले के रूप में किया जाता हैं। लौंग एक सुगंधित मसाला होने के कारण रसोई में खाना पकाने, आयुर्वेदिक औषधि और खुशबूदार पदार्थ तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।
लौंग को अंग्रेजी में Clove के नाम से जाना जाता हैं और इसका वैज्ञानिक नाम Syzygium aromaticum हैं। भारत में इसकी खेती कई स्थानों पर की जाती हैं।
इसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं। आज के इस लेख में हम आपको इसके उत्पादन से संबंधी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
लौंग की खेती के लिए सामान्य जलवायु की आवश्यकता होती हैं, ये न तो अधिक गर्मी को सहन कर सकता हैं और ना ही अधिक ठण्ड को इसलिए इसकी खेती के लिए उत्तम तापमान 20°C से 30°C तक माना जाता हैं।
इसकी खेती के लिए 150 - 250 से.मी. की वार्षिक वर्षा और 1000 मीटर समंद्र तल तक की ऊंचाई के साथ आर्द्र उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त है।
किसान साथियों उच्च ह्यूमस सामग्री वाली गहरी समृद्ध दोमट और लेटराइट मिट्टी लौंग की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी बहुत आवश्यक होती हैं।
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एक वर्ष पुराने पौधों को जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर के दौरान दो भागों में गोबर की खाद 15 कि.ग्रा., नाइट्रोजन 20 ग्राम, फॉस्फोरस 20 ग्राम, पोटाश 60 ग्राम डाला जा सकता है।
हर साल खुराक को तदनुसार बढ़ाया जाता है और 7 साल पुराने फल वाले पेड़ पर गोबर की खाद 50 किलोग्राम, नाइट्रोजन 300 ग्राम, फॉस्फोरस 300 ग्राम और पोटाश 960 ग्राम का उपयोग किया जाता है।
इसके अतिरिक्त एज़ोस्पाइरिलम एवं फॉस्फोबैक्टीरियम की 50-50 ग्राम मात्रा खाद के एक माह बाद डालनी चाहिए।
वर्षा के अभाव में प्रारंभिक अवस्था में बार-बार पानी देना आवश्यक है। गर्मी के महीनों में सिंचाई करनी चाहिए।
लौंग के पोधो में जनवरी-मई माह के दौरान में 8 लीटर पानी ड्रिप से या बेसिन से लगाना लाभकारी होता है।
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लौंग की खेती में पौधों की रोपाई के छठे वर्ष से फल लगना शुरू हो जाता है। फूलों की कलियों की कटाई तब की जानी चाहिए जब वे पूरी तरह परिपक्व हो जाएं, लेकिन खिलने से पहले।
कलियों को गुच्छों के रूप में काटा जाता है और अलग करके पांच से सात दिनों तक धूप में सुखाया जाता है। प्रत्येक पेड़ से 2 - 3 किलो सूखी कलियाँ उपज के रूप में प्राप्त होती हैं।