खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अध्ययन के मुताबिक, 2050 तक विश्व की जनसंख्या लगभग 9 अरब हो जाएगी। अब ऐसे में खाद्यान्न की आपूर्ति और मांग के मध्य अंतर को कम करने के लिए मौजूदा खाद्यान्न उत्पादन को दोगुना करने की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए भारत जैसे कृषि प्रधान देशों को अभी से नये उपाय खोजने होंगे।
हमारी कृषि व्यवस्था को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के बहुत सारे उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर कुछ हद तक कृषि पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। साथ ही, पर्यावरण मैत्री तरीकों का इस्तेमाल करके कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुरूप किया जा सकता है। कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं।
वातावरण के तापमान में बढ़ोतरी के साथ-साथ फसलों में सिंचाई की ज्यादा जरूरत पड़ती है। अब ऐसी स्थिति में जमीन का संरक्षण व वर्षा जल को इकठ्ठा करके सिंचाई के लिए उपयोग में लाना एक उपयोगी कदम सिद्ध हो सकता है।
वाटर शेड प्रबंधन के जरिए हम वर्षा जल को संचित करके सिंचाई के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे एक ओर हमें सिंचाई में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर भू-जल पुनर्भरण में भी मददगार साबित होगा।
रासायनिक खेती से हरित गैसों में काफी बढ़ोतरी होती है, जो वैश्विक तापमान में सहयोगी होती हैं। इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद व कीटनाशकों के इस्तेमाल से जहाँ एक तरफ मृदा की उत्पादकता कम होती है, वहीं दूसरी ओर मानव स्वास्थ्य को भी भोजन के माध्यम से हानि पहुँचाती है।
ये भी पढ़ें: कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं (Tillage requirement in agro-climatic conditions in Hindi)
अतः इसलिए जैविक कृषि की तकनीकों पर ज्यादा बल देना चाहिए। एकल कृषि के स्थान पर मिश्रित (समग्रित) कृषि काफी लाभदायक होती है। मिश्रित कृषि में विविध फसलों का उत्पादन किया जाता है, जिससे कि उत्पादकता के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को मंदेनजर रखते हुए ऐसे बीज एवं नवीन किस्मों का विकास किया जाए जो नये मौसम के अनुकूल हों। हमें फसलों के प्रारूप और उनके बीज बोने के वक्त में भी परिवर्तन करना होगा।
ऐसी किस्मों को विकसित करना होगा जो अधिक तापमान, सूखे तथा बाढ़ जैसी संकटमय परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता रखती हों। पारंपरिक ज्ञान और नवीन तकनीकों के समन्वयन और समावेशन द्वारा मिश्रित खेती तथा इंटरक्रोपिंग करके जलवायु परिवर्तन के संकटों से जूझा जा सकता है।
भारत में जलवायु स्मार्ट कृषि (Climate smart Agriculture-CSA) विकसित करने की ठोस कवायद की गयी है, जिसके लिए राष्ट्रीय परियोजना भी जारी की गई है। दरअसल, जलवायु स्मार्ट कृषि जलवायु परिवर्तन की तीन परस्पर चुनौतियों से लड़ने का प्रयास करती है।
उत्पादकता और आय बढाना, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होना तथा कम उत्सर्जन करने में योगदान करना। उदाहरण के तौर पर सिंचाई की बात करें तो जल के समुचित उपयोग के लिए सूक्ष्म सिंचाई (माइक्रो इरिगेशन) को लोकप्रिय बनाना है।
भारत में सबसे पहले जलवायु परिवर्तन के प्रति स्वयं को अनुकूल बनाने और सतत विकास मार्ग के द्वारा आर्थिक एवं पर्यावरणीय लक्ष्यों को एक साथ हासिल करने का प्रयास किया गया है।
इसको लेकर प्रधानमन्त्री ने 2008 में जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना जारी की है। जलवायु परिवर्तन पर निर्मित आठ राष्ट्रीय एक्शन प्लान में से एक (राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन) कृषि क्षेत्र पर भी केंद्रित है।
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन वर्ष 2008 में शुरू किया गया। यह मिशन ‘अनुकूलन’ पर आधारित है। इस मिशन द्वारा भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक प्रभावी एवं अनुकूल बनाने के लिए कार्यनीति बनाई गई।
ये भी पढ़ें: भारत में जलवायु अनुकूल कृषि प्रणालियों की आवश्यकता
इस मिशन के उद्देश्यों में कुछ विशेष बातों पर विशेष ध्यान दिया गया है, जैसे, कृषि से अधिक उत्पादन प्राप्त करना, टिकाऊ खेती पर जोर देना, प्राकृतिक जल-स्रोतों व मृदा संरक्षण पर ध्यान देना, फसल व क्षेत्रानुसार पोषक प्रबंधन करना, भूमि-जल गुणवत्ता बरकरार रखना तथा शुष्क कृषि को बढ़ावा देना इत्यादि।
इसके साथ ही वैकल्पिक कृषि पद्धति को भी अपनाया जाएगा और इसके अंतर्गत जोखिम प्रबंधन, कृषि संबंधी ज्ञान सूचना व प्रौद्योगिकी पर विशेष बल दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त, मिशन को परंपरागत ज्ञान और अभ्यास प्रणालियों, सूचना प्रौद्योगिकी, भू-क्षेत्रीय और जैव प्रौद्योगिकियों के सम्मिलन व एकीकरण से सहायता मिलेगी।
यह राष्ट्रीय पहल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ( ICAR) का एक नेटवर्क प्रोजेक्ट है, जोकि फरवरी 2011 में आया था। इस प्रोजेक्ट का मकसद रणनीतिक अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी प्रदर्शन द्वारा जलवायु परिवर्तन एवं जलवायु दुर्बलता के प्रति भारतीय कृषि की सहन क्षमता को बढ़ाना है। इसको ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को उच्च प्राथमिकता पर रखा है।
इसके प्रमुख बिन्दुओं में भारतीय कृषि (फसल, पशु इत्यादि) को जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति सक्षम बनाना, जलवायु सह्य कृषि अनुसंधान में लगे वैज्ञानिकों व दूसरे हितधारको की क्षमता का विकास करना तथा किसानों को वर्तमान जलवायु संकट के अनुकूलन हेतु प्रौद्योगिकी पैकेज का प्रदर्शन कर दिखाने का उद्देश्य रखा गया है।
अतः कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक और भारतीय कृषि व्यवस्था पर वृहद स्तर पर प्रभाव डालता है। ऊपर दिये गए सुझावों व तकनीकों को अपनाकर कृषि व्यवस्था को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है।
ऐसा करना आज के समय की जरूरत है वर्ना आगामी समय में इसके घातक परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। इसी दिशा में अर्थात भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल और सक्षम बनाने में भारत सरकार की तरफ से की गई कोशिशें भी सराहनीय हैं।
इस प्रकार कृषि को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से संरक्षण देने के लिए हमें मिल-जुलकर पर्यावरण मैत्री तरीकों को वरीयता देनी होगी। ताकि हम अपने प्राकृतिक संसाधन को बचा सकें एवं कृषि व्यवस्था को अनुकूल बना सकें।