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टिंडा की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

Published on: 10-Jul-2023

बतादें कि टिंडा सब्जी की बुवाई का समय चल रहा है। किसान टिंडा की उन्नत किस्मों की बुवाई करके अच्छी आमदनी कर सकते हैं। अब ऐसी स्थिति में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों और अधिकारियों के द्वारा बताएं गए तरीके अपनाएं जाए तो इसकी खेती करके अच्छा लाभ उठा सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के जरिए से आपको टिंडा सब्जी की खेती की जानकारी प्रदान कर रहे हैं।

टिंडा सब्जी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व मृदा

टिंडा की खेती के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। बतादें कि शर्द जलवायु इसके लिए बेहतर नहीं मानी जाती है। पाला इसकी फसल के लिए काफी हानिकारक होता है। इस वजह से इसकी खेती गर्मियों के सीजन में ही की जाती है। आप बारिश में भी इसकी खेती कर सकते हैं। परंतु, इस दौरान रोग और कीट लगने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। अगर इसकी खेती के लिए मिट्टी की बात जाए तो इसकी खेती हर तरह की मृदा में की जा सकती है। अच्छी जलधारण क्षमता वाली जीवांशयुक्त हल्की दोमट मृदा इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। ये भी पढ़े: गर्मियों की हरी सब्जियां आसानी से किचन गार्डन मे उगाएं : करेला, भिंडी, घीया, तोरी, टिंडा, लोबिया, ककड़ी

टिंडा की खेती के लिए सही समय क्या है

टिंडा की खेती वर्ष भर में दो बार में की जा सकती है। टिंडा को फरवरी से मार्च और जून से जुलाई तक की समयावधि में बुवाई की जा सकती है।

टिंडा की बेहतरीन किस्में

टिंडा सब्जी की विभिन्न प्रसिद्ध उन्नत किस्में हैं। इनमें टिंडा एस 48, टिंडा लुधियाना, पंजाब टिंडा-1, अर्का टिंडा, अन्नामलाई टिंडा, मायको टिंडा, स्वाती, बीकानेरी ग्रीन, हिसार चयन 1, एस 22 इत्यादि बेहतरीन किस्में मानी जाती हैं। टिंडे की फसल सामान्य तोर पर दो महीने में पककर तैयार हो जाती है।

टिंडा की खेती के लिए खेत की तैयारी

टिंडा सब्जी की बुवाई के लिए सर्वप्रथम खेत की ट्रैक्टर एवं कल्टीवेटर से बेहतरीन ढ़ंग से जुताई करके मृदा को भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की पहली जुताई मृदा पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके पश्चात 2-3 बार हैरो अथवा कल्टीवेटर से खेत की जुताई करें। इसके उपरांत सड़े हुए 8-10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ प्रतिकिलो खाद के मुताबिक डालें। अब खेती के लिए बैड तैयार करें। बीजों को गड्ढों एवं डोलियों में बोया जाता है।

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

टिंडा सब्जी के बीजों की बुवाई के लिए एक बीघा में डेढ़ किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है। बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए बिजाई से पूर्व बीजों को 12-24 घंटे के लिए बीजों को पानी में भिगा देना चाहिए। इससे उनकी अंकुरण क्षमता में वृद्धि होती है। बीजों को मृदा से होने वाली फंगस से संरक्षण के लिए, कार्बेनडाजिम 2 ग्राम अथवा थीरम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों की दर से उपचारित करना उचित होता है। रासायनिक उपचार के बाद, बीजों को ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम अथवा स्यूडोमोनास फलूरोसैंस 10 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। इसके पश्चात छाया में सुखाकर फिर बीजों की बुवाई करनी चाहिए। ये भी पढ़े: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

टिंडा की खेती हेतु खाद और उर्वरक

टिंडे की पूरी फसल में नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 125 किलो) और पोटाश 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ के अनुरूप डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा, फासफोरस एवं पोटाश की संपूर्ण मात्रा बिजाई के समय डालें। शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा पौधे की आरंभिक उन्नति के दौरान डालें। साथ ही, टिंडे का ज्यादा उत्पादन उठाने के लिए टिंडे के खेत में मैलिक हाइड्रजाइड के 50 पीपीएम का 2 से 4 प्रतिशत मात्रा का पत्तियों पर छिड़काव के प्रभाव से उत्पादन में 50-60 फीसद तक वृद्धि हो सकती है।

टिंडा की खेती की बुवाई की विधि

सामान्य तौर पर टिंडे की बुवाई एकसार क्यारियों में की जाती है। परंतु, डौलियों पर बुवाई करना बेहद फायदेमंद होता है। टिंडा की फसल के लिए 1.5-2 मी. चौड़ी, 15 से.मी. उठी क्यारियां तैयार करनी चाहिए। क्यारियों के बीच एक मीटर चौड़ी नाली छोड़ें। बीज दोनों क्यारियों के किनारों पर 60 से.मी. के फासले पर बुवाई करें। बीजों की गहराई 1.5-2 से.मी. से ज्यादा गहरी ना रखें।

टिंडा की खेती हेतु सिंचाई व्यवस्था

वर्तमान में ग्रीष्मकाल चल रहा है, इसमें टिंडा की फसल की बुवाई की जा सकती है। इसके पश्चात दूसरी बुवाई वर्षाकाल में की जाएगी। ग्रीष्मकालीन टिंडा की खेती के लिए प्रत्येक हफ्ता सिंचाई करनी चाहिए। बारिश में सिंचाई वर्षाजल पर आश्रित होती है। ये भी पढ़े: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

टिंडा की फसल में खरपतवार की रोकथाम

टिंडा की फसल के साथ अनेक खरपतवार भी उग आते हैं, जो पौधों के विकास और बढ़वार को प्रभावित करने के साथ ही पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इस वजह से इसकी रोकथाम करना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को समाप्त कर देना चाहिए।

टिंडा की कटाई, पैदावार और कीमत

सामान्य तौर पर बुवाई के 40-50 दिनों के पश्चात फलों की तुड़ाई चालू हो जाती है। तुड़ाई में इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, कि जब फल पक जाएं और मध्यम आकार के हो जाएं तब इसकी तुड़ाई की जानी चाहिए। इसके उपरांत तकरीबन 4-5 दिनों के अंतराल में तुड़ाई की जा सकती है। अगर वैज्ञानिक ढ़ंग से इसकी खेती की जाए, तो टिंडा की खेती से एक हैक्टेयर में लगभग 100-125 क्विंटल तक पैदावार अर्जित की जा सकती है। टिंडा की बाजार में कीमत सामान्य तौर पर 20 रुपए से लेकर 40 रुपए किलो तक होती है।

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