आज हम आपको खरीफ फसल से जुड़ी कुछ अहम बात बताने जा रहे हैं। इस लेख में जानेंगे कि खरीफ की फसल कौन कौन सी होती हैं और इन फसलों की बुवाई कब की जाती है।
भारत में मौसम के आधार पर फसलों की बुवाई की जाती है। इन मौसमों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है। खरीफ फसल, रबी फसल एवं जायद फसल। लेकिन आज हम खरीफ की फसल के बारे में आपको बताने वाले हैं।
अगर हम खरीफ की फसलों के विषय में बात करें तो प्रमुखतः खरीफ की फसलों की बुवाई का समय जून - जुलाई होता है। जो कि अक्टूबर माह में पककर तैयार हो जाती हैं।
बतादें कि अधिक तापमान व आर्द्रता का होना खरीफ फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। वहीं जब खरीफ फसलों का पकने का समय आता है। तब शुष्क वातावरण का होना आवश्यक होता है।
एक तरह से खरीफ फसलों को मानसूनी फसल भी कहा जाता है। खरीफ शब्द का इतिहास देखें तो यह एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ पतझड़ होता है। वर्षाकाल में इसकी बुवाई की जाती है।
लेकिन कटाई के दौरान पतझड़ का समय आ जाता है। खरीफ फसलों को उच्च आद्रता और तापमान की जरुरत होती है। जानकारी के लिए बतादें कि एशिया के अंदर भारत, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान में खरीफ की फसलों की बुवाई की जाती है।
खरीफ फसलों की बुवाई जून-जुलाई में होती है। लेकिन भिन्न भिन्न स्थानों पर मानसून आने का वक्त और वर्षा में अंतराल होने की वजह से बिजाई के दौरान भी फासला देखा जाता है।
चावल की खेती के आरंभिक दिनों में सिंचाई हेतु 10 से 12 सेंटीमीटर गहरे जल की आवश्यकता पड़ती है। चावल की साली, अमन, अफगानी, बोरो, पलुआ और आस जैसी विभिन्न प्रजतियाँ होती हैं।
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धान की खेती हेतु तकरीबन 24 % फीसद तापमान व 150 सेंटीमीटर की जरुरत पड़ती है। विशेष तौर पर भारत के हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब में चावल का उत्पादन किया जाता है।
शाॅर्ट स्टेपल, लाॅन्ग स्टेपल, मीडियम स्टेपल आदि कपास की कुछ किस्में हैं। कपास की खेती के लिए 21-30°C तापमान की जरूरत पड़ती है। कपास की फसल में 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है।
काली मृदा में कपास की खेती काफी अच्छी होती है, जिससे उत्पादन अच्छा-खासा मिलता है। भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, तमिल नाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा में कपास का उत्पादन किया जाता है।
मूंगफली की बुवाई 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच की जाती है। मूंगफली की बुवाई के लिए भुरभुरी दोमट एवं बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। साथ ही, भूमि में समुचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त लौकी विभिन्न गंभीर रोगों जैसे कि वजन कम करने, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल और पाचन क्रिया में भी इस्तेमाल किया जाता है। लौकी की खेती ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु में होती है।
लौकी का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में किया जाता है। बलुई मृदा एवं चिकनी मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
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जो कि सेहत के लिए काफी लाभकारी साबित होते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार और कर्नाटक आदि राज्यों में टमाटर का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।
टमाटर की किस्मों की बात की जाए तो इसकी अरका विकास, अर्का सौरव, सोनाली, पूसा शीतल, पूसा 120, पूसा रूबी एवं पूसा गौरव आदि विभिन्न देशी उन्नत किस्में उपलब्ध हैं।
इसके अतिरिक्त पूसा हाइब्रिड-3, रश्मि, अविनाश-2, पूसा हाइब्रिड-1 एवं पूसा हाइब्रिड-2 इत्यादि हाइब्रिड किस्में उपलब्ध हैं।
भारत विश्व में लीची उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर आता है। भारत के जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश को देखी-देखा अब बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में भी लीची की खेती होने लगी है।
भिंड़ी का सेवन करने से लोगों के पेट से संबंधित छोटे-छोटे रोग बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं। भिंड़ी की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु की बात की जाए तो इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी एवं अधिक ठंड दोनों ही खतरनाक साबित होती हैं।
यदि हम भिंड़ी की किस्मों की बात करें तो पूसा ए, परभनी क्रांति, अर्का अनामिका, वीआरओ 6 और हिसार उन्नत इत्यादि हैं।