भारत में पान बहुतायत से उपयोग किया जाता है, जिसकी मांग को पूरा करने के लिए भारत के कई राज्यों में पान की खेती की जाती है। लेकिन पिछले कुछ समय से देखा गया है कि पान के किसान बाजार में घटती हुई मांग और मौसम की मार के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। जिसके कारण पान किसानों का पान की खेती की तरफ से रुझान कम होता जा रहा है और पान की बहुत सारी किस्में बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।
इसी तरह की पान की एक किस्म है देशावरी। यह किस्म मुख्यतः उत्तर प्रदेश के महोबा में उगाई जाती है। अन्य किस्मों की की तरह यह किस्म भी मौसम के प्रतिकूल प्रभाव और खेती की बढ़ती लागत एक कारण विलुप्त होने की कगार पर है। महोबा के पान की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि पान की खेती के लिए एक निश्चित तपमान और मौसम की जरूरत होती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से भीषण शीतलहर और गर्मी के कारण यह फसल बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।
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महोबा में पिछले 1000 सालों से ज्यादा समय से पान की खेती हो रही है। जिसके कारण इस क्षेत्र को अलग पहचान मिली है। पान की खेती चंदेल राजवंश के दौर में सबसे ज्यादा की जाती थी। अगर अब वर्तमान के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2000 से लेकर साल 2022 तक महोबा में पान की खेती में 95 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। इस दौरान पान की खेती करने वाले लगभग 75 प्रतिशत किशानों ने यह खेती करना छोड़ दी है। इसका कारण किसान पान की खेती में बढ़ती हुई लागत को जिम्मेदार बताते हैं। किसान बाताते हैं कि अब बरेजा (पान की खेती के लिए बनाए गए अस्थायी ढांचे) बनाने की कीमत बहुत बढ़ गई है। पान के बरेजा में इस्तेमाल होने वाला बांस, बल्ली, तार, घास, सनौवा आदि की कीमतें पिछले कुछ सालों में अप्रत्याशित रूप से बढ़ी हैं। इनकी कीमतें चार से पांच गुना तक बढ़ गई हैं। जो किसानों को इस खेती को करने के लिए हतोत्साहित करता है।
देशावरी पान के विशिष्ट गुणों के कारण ही पिछले दिनों भारत सरकार ने पान की इस किस्म को जीआई (ज्योग्राफिकल इंडीकेशन) टैग दिया था। यह पान विलक्षण गुणों वाला है और अपने करारेपन और स्वाद के लिए लोगों के बीच हमेशा लोकप्रिय रहा है। इसकी विशेषता है कि यह पान मुंह में डालते ही पूरी तरह घुल जाता है। यह गुण इस किस्म के पान के अलावा अन्य किस्म के पान में नहीं पाया जाता है। किसान बताते हैं कि जीआई टैग मिलने के बावजूद पान की इस किस्म की खेती में कोई सुधार नहीं हुआ है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने देशावरी पान का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी सहायता की घोषणा की थी, लेकिन उन घोषणाओं का अभी तक धरातल पर उतारा जाना बाकी है।
पान के किसानों ने बताया है कि यह एक जोखिम भरी खेती है। जिसमें किसानों को फायदा के साथ ही बड़ा घाटा लगने की पूरी संभावनाएं बनी रहती हैं। इस साल ज्यादा ठंड पड़ने के कारण कई किसानों की फसल चौपट हो गई जिसके कारण किसानों को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है। महोबा में पान की खेती पर नजर रखने वाले सरकारी अधिकारियों ने बताया है कि इस साल पान की लगभग 80 प्रतिशत खेती चौपट हो गई है। सरकारी अधिकारी बताते हैं कि प्रतिकूल मौसम में पान की खेती करना अब चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। उन्होंने बताया कि पान की खेती कृत्रिम और संतुलित जलवायु में की जाती है जहां खेती के लिए गर्मियों में 45 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा सर्दियों में 6 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। लेकिन इस बार सर्दियों में तापमान माइनस 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, जिसके कारण फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है।
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किसानों का कहना है कि इस घाटे से उबारने के लिए पान का मूल्यवर्धन जरूरी हो गया है। लेकिन सरकार इस ओर अभी ध्यान नहीं दे रही है। चूंकि यह 12 महीने की फसल है, जो जनवरी से लेकर दिसम्बर का उगाई जाती है। इस कारण से सरकार ने अभी तक इस फसल को किसी भी योजना में शामिल नहीं किया है। हालांकि सरकार ने पान का बरेजा लगाने के लिए किसानों को सीधे सरकारी मदद देना शुरू कर दी है। किसानों का कहना है कि पान की मांग गुटखा के चलन के बाद बुरी तरह से प्रभावित हुई है, क्योंकि बड़ी संख्या में पान खाने वाले लोग गुटखा की तरफ शिफ्ट कर गए हैं।
पान के तेल की बाजार में भारी मांग है और यह बेहद महंगा भी बिकता है। अगर आज के भाव की बात करें तो बाजार में पान के तेल की कीमत एक लाख रुपये प्रति किलो है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं, पान कैंडी, पान कंद, पान आइसक्रीम के अलावा कई मिठाइयों में होता है। इस तरह के वैकल्पिक रास्ते खोजकर किसान भाई पान की खेती से भी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।