पशुपालन कारोबार में सूअर पालन बेहद फायदे का सौदा है। इसके कई कारण हैं। सूअरों के लिए भोजन की व्यवस्था भी आसान है।सूअर से एक वर्ष में दो बार और छह से 14 तक बच्चे भी प्राप्त हो जाते हैं। सूूअरों के पालन पोषण के लिए अब कारोबारी सोच के लोग होटलों से बचे भोजन का उपयोग इनके लिए आहार के रूप में करते हैं। अनुुपयुक्त सब्जी,फल,लोग्रेड अनाज सहित अनेक अनुपयोगी होने वाली खाद्य वस्तुएं इनका आहार बनती हैं।
यदि इन्हें हरा चारा आदि भी खूब भाता है। सूअर 7 से 10 महीनों में 60-90 किलोग्राम वजन के हो जाते हैं इसलिए वाणिज्यिक स्तर पर सूअर पालन में निवेश पर प्रतिफल जल्द मिलना शुरू हो जाता है। एक सूअर से भी कारोबार शुरू कर बड़ा फार्म बनाया जा सकता है। अपार संभावनाओं के बाद भी भारत में सूअर पालन कारोबारी तौर पर इतना विकास नहीं कर पाया है। इसके कई कारण हैं।
सूअर के मांस का उपयोग सामाजिक मान्यताओं के चलते हर व्यक्ति नहीं करता।अभी तक सूअर पालन गांव के गरीब तबके के लोग करते हैं। कारोबारी सेाच के साथ भी कुछ इलाकों में सूअर पालन होने लगा है। केरल, पंजाब, गोवा सहित कई राज्यों में कॉमर्सियल फार्मिंग जमने लगी है। इस काम को करने वाले गरीब तबके के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। होटल, रेस्त्रां और घरेलू क्षेत्रों में संसाधित एवं मूल्य वर्धित पोर्क उत्पादों की मांग का एक बड़ा हिस्सा अब तक आयात के जरिये पूरा किया जाता रहा है।
चिकन फीड के तौर पर इस्तेमाल करने तथा वसा, पेंट एवं कॉस्मेटिक उत्पादों को बनाने के लिए सूअर की चर्बी की मांग में आई हालिया तेजी से वाणिज्यिक स्तर पर सूअर पालन को बढ़ावा मिल रहा है। देश में करीब एक दर्जन प्रजनन इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं। इनके माध्यम से क्षेत्र की पर्यावरणी परिस्थितियों के अनुकूल किस्में मौजूद हैं।