अभी तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो मानसून की चाल कमजोर ही रही है। बात उत्तर भारत की हो गुजरात, राजस्थान या कई अन्य राज्यों की तो हालात अच्छे नहीं रहे। दक्षिण पश्चिम मानसून की चाल हर जगह काफी कमजोर ही नजर आई है। इसका असर खरीफ की फसलों की बुबाई एवं उत्पादत दोनों पर पड़ना तय है। वर्षा आधारित खेती वाले इलाकों में किसान ख्ररीफ की फसलों की बिजाई की तैयारी में लगे हैं और उन्हें अच्छी बरसात की उम्मीद है। दक्षिण पश्चिमी मानसून ने इस बार किसानों को खासा निराश किया है। मौसम विभाग द्वारा जारी इस आशय की रिपोर्ट साफ करती है कि जून के अंतिम सप्ताह से अगस्त के आरंभ तक मानसून की चाल ने कई इलाकों को सूखा छोड़ दिया। एक से 18 जुलाई के मध्य दक्षिण पश्चिम मानसून सामान्य से करीब 26 प्रतिशत कमजोर रहा। जून के आरंभ में बारिस ठीक हो गई लेकिन इसमें दोबारा होने का अंतराल कई फसलों को बिगाड़ गया। कई इलाकों में कम पानी वाली सायाबीन जैसी फसलें तेज गर्मी के चलते मर गईं। देश के सभी जिलों में बरसात की स्थिति पर नजर डालें तो 35 से 40 प्रतिशत जनपद कम बरसात के शिकार हुए हैं। डीजल की बढ़ती कीमत और मानसून की मार से किसानों की चिंता और बढ़ा दी है। खुशी की बात यह है कि दक्षिण पश्चिम मानसून एकबाद फिर सक्रिय हो गया है। राजस्थान, गुजरात, मध्यभारत सहित कई हिस्सों में बरसाती सीजन में लम्बे समय तक बरसात का टोटा खेती किसानी की कमर तोड़ने वाला रहा है। इससे खरीफ की बुबाई के अलावा उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है।