अरहर की खेती भारत में एक महत्वपूर्ण खेती है और यह फसल अनेक क्षेत्रों में उगाई जाती है। अरहर खरीफ की प्रमुख फसल है, इसकी खेती ज्यादतर इसी मौसम में की जाती है।
इसकी दाल की कीमत अच्छी खासी होती है। अरहर की खेती (Red gram farming) कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी आसनी से की जा सकती है, इसलिए इसको कम वर्षा वाले क्षेत्रों की दाल के रूप में भी जाना जाता है।
भारत में ये अरहर आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है।
आज के इस लेख में हम आपको अरहर की फसल उत्पादन के बारे में विस्तार में जानकारी देंगे।
अरहर भारत की एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इसे अरहर, TUR, और Red gram के नाम से भी जाना जाता है।
अरहर की खेती और खपत मुख्य रूप से विकासशील देशों में की जाती है। यह फसल भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है। भारत विश्व में अरहर का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
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अरहर एक दलहनी फसल है इसका वानस्पतिक नाम (Botanical name) Cajanus cajan है। इसकी family यानि की इसका परिवार Leguminosae है।
अरहर एक दलहनी फसल है, जो की वातावरण की नाइट्रोजन का जमीन में स्थिरीकरण करती है। अरहर के फूल स्व-परागण self-pollinated होते हैं लेकिन इसमें क्रॉस-निषेचन (cross-fertilization) भी होता है।
अरहर के बीज गोल या लेंस के आकार के होते हैं। अरहर की दो प्रजातियाँ (species) होती है। इनको ऊंचाई, बढ़वार की आदत, परिपक्वता का समय, रंग, आकार, भिन्न फली और बीज के आकार के आधार पर दो species में बांटा गया है। ये दो प्रजातियाँ है -
अरहर की खेती के लिए गर्म तथा आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए मौसम (जून से अक्टूबर) और बरसात के बाद (नवंबर से मार्च) के मौसम में 17 डिग्री C से 22 डिग्री C तापमान की आवश्यकता होती है।
अरहर फली के विकास के समय ख़राब मौसम के प्रति बहुत संवेदनशील होता है, इसलिए फूल आने के दौरान मानसून और बादलों का मौसम खराब फली निर्माण का कारण बनता है।
इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ की फसल के रूप में की जाती है। हर प्रकार की जमीनों में इसकी खेती की जा सकती है।
अरहर (Red gram) की खेती के लिए उपजाऊ और बढ़िया जल निकास वाली दोमट जमीन सब से बढ़िया है। मिट्टी का pH 6.5-7.5 तक होना चाहिए।
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अरहर की अच्छी पैदावार पाने के लिए अच्छी किस्मों की बुवाई करना बहुत आवश्यक है। इसके उन्नत किस्मे इस प्रकार है - ‘Parbhat’, ‘UPAS 120’, ‘T 21’, ‘Pusa Ageti’, ‘Pusa 74’, ‘Pusa 84’, ‘Pant A 1’, ‘Pant A 2’, ‘HPA 1’, ‘TT 5’, ‘AL 15’, ‘Manak’, ‘H 77-216’, ‘Sagar’ (‘H 77-208’), ‘BS 1’, 'Sharda’ (‘S 8’), ‘Mukta’ (‘R 60’) ¾ ‘Sharda’, ‘Mukta’, ‘C 11’, ‘C 36’, ‘BDN 1’, ‘BDN 2’, ‘No.148’, ‘Khargone 2’, ‘T 15-15’, ‘PT 301’, ‘JA 3’, ‘No.84’, ‘No.290-21’, ‘Hyderabad 185’ आदि।
अरहर की खेती करने के लिए सबसे पहले भूमि की अच्छे से जुताई आवश्य कर ले। सबसे पहले खेत की plough की सहयता से भूमि की अच्छे से गहरी जुताई कर ले, इसके बाद में हैरो या कल्टीवेटर से भूमि को जोत कर मिलत्ती को भुरभुरा बना ले इसके बाद पता लगाकर खेत की जमीन को बराबर कर ले।
अरहर की बुवाई का समय किस्म के आधार पर तय किया जाता है। जल्दी पकने वाली किस्मों की बुवाई जून के पहले पखवाड़े में की जाती है। मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों की बुवाई जून के दूसरे पखवाड़े में की जाती है। सीड ड्रिल या देसी हल या रिज पर डिबलिंग द्वारा लाइन बुवाई की जाती है।
जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए 20-25 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज का इस्तेमाल करे। पंक्ति से पंक्ति की दुरी 45-60 से.मी. और पौधे से पौधे की दुरी 10-15 से.मी. रखे।
मध्यम/देर से पकने वाली किस्मों के लिए 15-20 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज का इस्तेमाल करे। पंक्ति से पंक्ति की दुरी 60-75 और पौधे से पौधे-15-20 से.मी. रखे।
बीज की बुवाई से पहले बीज उपचार अवश्य कर ले इसकी बुवाई के लिए कवकनाशी जैसे - थीरम (2 ग्राम) + कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) या थीरम @ 3 ग्राम या ट्राइकोडर्मा विर्डी 5- 7 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से इस्तेमाल करें।
फसल में मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए। अरहर की खेती में बुवाई के समय सभी उर्वरक 5 से.मी. की गहराई पर खांचे में ड्रिल किया जाता है।
बुवाई के समय 25-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम P2O5, 30 किलोग्राम K2O प्रति हेक्टेयर बेसल खुराक के रूप में फसल में डालें।
मध्यम काली मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी में सल्फर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डालें। रेतीली मिट्टी में 3 कि.ग्रा. Zn प्रति हेक्टेयर (15 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट/9 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट) डालें बेसल के रूप में।
खड़ी फसल में जिंक की कमी पाए जाने पर 5 किग्रा जिंक सल्फेट + चूना 2.5 किग्रा 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव कर सकते हैं।
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अरहर एक गहरी जड़ वाली फसल है, इसलिए सूखे को सहन कर सकती है। लेकिन लंबे समय तक सूखे की स्थिति में तीन बार सिंचाई की जरूरत होती है।
पहली शाखन अवस्था में (बुवाई के 30 दिनों के बाद), दूसरी पुष्पन अवस्था में (बुवाई के 70 दिनों के बाद) और तीसरी पोडिंग अवस्था में (बुवाई के 110 दिनों के बाद) अरहर सफल होने के लिए उचित जल निकासी की जरूरत होती है।
मेड़ रोपण खराब उप-सतही जल निकासी वाले क्षेत्रों में काम करता है। यह जड़ों को अधिक वर्षा के दौरान पर्याप्त वातन प्रदान करता है।
अरहर की फसल में खरपतवार के लिए पहले 60 दिन महत्वपूर्ण और घातक हैं। दो यांत्रिक निराई होती है: पहली 20 से 25 दिन पर और दूसरी 45 से 50 दिन बाद लेकिन फूल आने से पहले।
प्रति हेक्टेयर 400 से 600 लीटर पानी में पेंडीमिथालिन 0.75 से 1 कि.ग्रा. a.i. का प्रीइमरजेंस मिलाएं। ये खरपतवारनाशी उगने वाले खरपतवारों को मार डालता है और खेत को पहले 50 दिनों तक खरपतवारों से सुरक्षित रखता है।