कुसुम की खेती: जानें उन्नत तरीके, उपज और लाभकारी फसल प्रबंधन

Published on: 04-Nov-2024
Updated on: 19-Nov-2024
Close-up of kusum (safflower) flowers, known for their vibrant color and use in traditional medicine and cooking
फसल बागवानी फसल

कुसुम की खेती पुराने समय से तेल की फसल के रूप में की जाती है। कुसुम की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती हैं।

कुसुम के उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान हैं, भारत में कुसुम की खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, उड़ीशा और बिहार में की जाती हैं।

अगर कुसुम की फसल की अच्छे से देखभाल नहीं की जाती हैं तो इसका उत्पादन बहुत कम होता हैं।

इसलिए आज के इस लेख में हम आपके लिए कुसुम की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी लेकर आये हैं जिससे आपको फसल प्रबंधन में आसानी होगी।

कुसुम की खेती

कुसुम का वैज्ञानिक नाम Carthamus tinctorius हैं और ये Asteraceae परिवार से तालुकात रखता हैं।

कुसुम को मराठी में करड़ी, कन्नड़ में कुसुबे, हिंदी में कुसुम तेलुगु में कुसुमा और अंग्रेजी में Safflower के नाम से जाना जाता हैं।

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इसके फूल का इस्तेमाल तेल के उत्पादन के लिए ही किया जाता हैं। कुसुम में 30 से 40 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

कुसुम के तेल का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए किया जाता है। तेल के निकलने के बाद प्राप्त होने वाली खल का इस्तेमाल पशुओं के आहार के रूप में किया जाता है।

कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

कुसुम की फसल ठंडे मौसम यानी की रबी की फसल हैं। कुसुम की खेती समुद्र तल से 950 से 1000 मीटर तक की ऊंचाई तक की जाती हैं।

इसकी खेती के लिए 22 डिग्री से 35 डिग्री तक का तापमान उत्तम माना जाता हैं। फसल की अच्छी उपज पाने के लिए तापमान का अहम् योगदान होता हैं।

कुसुम की खेती के लिए मिट्टी

कुसुम की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती हैं, परन्तु इसकी खेती के लिए बलुई दोमट, चिकनी दोमट और जलोढ़ मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती हैं।

मिट्टी में उचित पानी निकासी की व्यवस्था होनी बहुत आवश्यक होती हैं मिट्टी में पानी खड़े रहने से फसल को नुकसान हो सकता हैं।

बुवाई के लिए खेत की तैयारी

रबी की खेती के दौरान काली मिट्टी के खेत में जहाँ एक ही फसल रबी के मौसम में उगाई जाती हैं वहाँ 3 से 4 जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और आसानी से बीज की बुवाई हो सकें।

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कुसुम की उन्नत किस्में

कुसुम की अधिक उपज पाने के लिए उन्नत किस्मों का अहम् योगदान होता हैं, इसलिए बुवाई के लिए निम्नलिखित किस्मों का ही चुनाव करे:

  • एनएआरआई-एनएच 1
  • एनएआरआई- एच 15
  • भीमा
  • पीकेवी पिंक
  • परभणी कुसुम
  • फुले कुसुम

कुसुम बुवाई के लिए बीज की मात्रा और बीज उपचार

कुसुम की बुवाई के लिए 7.5 से 10 kg प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं। बुवाई करते समय फसल में 45 x 20 cm का गैप होना चाहिए।

बीज को एक पॉलिथीन बैग में 4 ग्राम/किलो बीज की दर से कार्बेन्डाजिम या थीरम से उपचारित करें और बीज पर कवकनाशी की एक समान कोटिंग सुनिश्चित करें। बुआई से 24 घंटे पहले बीज का उपचार करें।

फसल में खाद प्रबंधन

फसल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फसल में बुवाई करने से 2 से 3 सप्ताह पहले खेत में 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालें।

बुवाई के समय खेत में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, और 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें।

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कुसुम की कटाई

फसल की औसत अवधि को ध्यान में रखते हुए फसल का निरीक्षण करें। फसल के पकने पर पत्तियाँ और पूरा पौधा अपना रंग खो देता है और परिपक्व होने पर भूरे रंग का हो जाता है।

कटाई के बाद फसल को सूखने के लिए खेत में ही रखे और थ्रेशर की मदद से बीज को अलग करें। बीजों को एकत्रित करके बोरियों में भण्डारित करें।