देश में गेहूं का उत्पादन जरूरत से दोगुने से अधिक है। अब कहा जाने लगा है कि किससान इन फसलों का क्षेत्रफल कम करें अन्यथा मांग और आपूर्ति का चक्र बिगडेगा और किसानों को गेहूं—धान जैसी फसलों की उचित कीमत भी नहीं मिल सकेगी। ऐेसे में 60 प्रतिशत आयात वाली खाद्य तेलों की आपूर्ति कारक सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है। इसकी खेती यूंतो रबी, खरीफ, जायद खेती खरीफ, रबी, एवं जायद तीनो ही मौसम में की जा सकती है, लेकिन खरीफ में इस पर अनेक रोगों एवं कीटो का प्रकोप होने के कारण फूल छोटे होते है, तथा दाना कम पड़ता हैI जायद में सूरजमुखी की अच्छी उपज प्राप्त होती हैैै। इस कारण जायद में ही इसकी खेती ज्यादातर की जाती है।
सूरजमुखी की खेती खरीफ रबी जायद तीनो मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की अति आवश्यकता पड़ती है। सूरजमुखी की खेती अम्लीय एवं क्षारीय भूमि को छोड़कर सिंचित दशा वाली सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती हैI
इसमे मख्य रूप से दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है। संकुल प्रजातियों में माडर्न किस्म 75 से 80 दिन लेती है। इसकी अधिकतम उपज 18 कुंतल है। तेल 34 से 38 प्रतिशत होता है। सूर्या किस्म उक्त किस्म से 10 दिन ज्यादा लेती है। यह अधिकतम 85 दिन में तैयार होकर 15 कुंतल तक उत्पादन एवं 37 प्रतिशत तक तेल देती है। संकर प्रजातियों में केबीएसएच-1 किस्म 90 से 95 दिन में तैयार होकर 20 कुंतल एवं तेल 45 प्रतिशत, और एसएच 3322 किस्म 25 कुंतल उपज एवं तेल 42 प्रतिशत तथा ऍफ़एसएच-17 किस्म 20 कुंतल तक उपज के अलावा 40 प्रतिशत तेल मिलता है। सूरजमुखी की एमएसएच किस्म 18 कुंतल उपज देती है। इसमें 44 प्रतिशत तक तेल होता है। एमएसएफएस 8 किस्म भी तेज और उपज में उपरोक्त किस्म के समान है। एसएचएफएच 1 किस्म 20 कुंतल तक उपज देती है। तेल 42 प्रतिशत मिलता है। एमएसएफएच 4 किस्म 30 कुंतल तक उपज देती है। ज्वालामुखी 35 कुंतल प्रति हैक्टेयर तक उपज देती है। उक्त किस्में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित अधिकांश राज्यों में लगाने योग्य हैं।
जायद में सूरजमुखी की बुवाई का सर्वोत्तम समय फरवरी का दूसरा पखवारा है इस समय बुवाई करने पर मई के अंत पर जून के प्रथम सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जाती है, यदि देर से बुवाई की जाती है तो पकने पर बरसात शुरू हो जाती है और दानों का नुकसान हो जाता है। बुवाई लाइनों में हल के पीछे 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर तथा पौध से पौध की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखें।
सामान्यतया 80 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं पोटाश 40 किलो ग्राम तत्व के रूप में प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कुडों में प्रयोग करें। शेष नत्रजन की मात्रा बुवाई के 25 या 30 दिन बाद ट्राईफ़ोसीड के रूप में देना चाहिए यदि आलू के बाद फसल ली जाती है तो 20 से 25% उर्वरक की मात्र कम की जा सकती है।
पहली सिंचाई हल्की एवं बुवाई के 20 से 25 दिन बाद, बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें। कुल 5 या 6 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। फूल निकलते समय दाना भरते समय बहुत हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। फूल बनते समय बेहद हल्की सिंचाई करें अन्यथा पौधा गिर जाएगा।
An Indian farmer sprays pesticide on his mustard crop in Mayong village, outskirts of Gauhati, India, Monday, Dec. 14, 2015. Agriculture is the main livelihood of about 60 percent of India's 1.2 billion people.(AP Photo/ Anupam Nath)[/caption] सूरजमुखी में कई प्रकार के कीट लगते हैं। इनमें दीमक, हरे फुदके, डसकी बग आदि। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनों का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ई सी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करेंं।
जब सूरजमुखी के बीज कड़े हो जाएं तो मुन्डकों की कटाई करके या फूलों के कटाई करके एकत्र कर लेना चाहिए तथा इनको छाया में सुखा लेना चाहिए। इनको ढेर बनाकर नहीं रखना चाहिए।