तिल की खेती बहुत कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देती है। तिल एक नकदी फसल है और अरसे से भारत में इसकी खेती की जाती रही है। आज भी भारत में इसकी खेती होती है।
तिल की खेती को लेकर कई प्रकार की गलत अवधारणाएं भी किसानों के मन में चलती रहती हैं। पहली तो गलत अवधारणा यह है कि अगर ऊपजाऊ भूमि पर तिल की खेती की जाएगी तो जमीन बंजर हो जाएगी। यह निहायत ही गलत अवधारणा है। ऐसा हो ही नहीं सकता। तिल की खेती सिर्फ और सिर्फ बंजर या गैर उपजाऊ भूमि पर ही होती है। जो जमीन आपकी नजरों में उसर है, बंजर है, अनुपयोगी है, वहां तिल की फसल लहलहा सकती है। फिर वह जमीन बंजर कैसे हो सकती है, यह समझना पड़ेगा। आखिर बंजर भूमि दोबारा बंजर कैसे होगी? ये सब भ्रांतियां हैं। इन भ्रांतियों को महाराष्ट्र में बहुत हद तक किसानों को शिक्षित करके दूर किया गया है पर देश भर के किसानों में आज भी यह भ्रांति गहरे तक बैठी है जिस पर काम करना बेहद जरूरी है। ये भी पढ़े: तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय
किसानों को यह समझना होगा कि काले तिल की खेती के लिए उन्हें जो जमीन चाहिए, वह रेतीली होनी चाहिए। यानी ऐसी जमीन, जहां पानी का ज्यादा ठहराव न हो। ध्यान रखें, तिल की पानी से जंग चलती रहती है। तिल की फसल को उतना ही पानी चाहिए, जितने में फसल की जड़ में जल पहुंच जाए। बस। तो, अगर आपके पास बेकार किस्म की, उबड़-खाबड़, रेतीली जमीन है तो आप उसे बेकार न समझें। वहां आप थोड़ा सा श्रम करके, थोड़ा उसे लेबल में लाकर तिल की खेती कर सकते हैं। भ्रांतियों के साये में रहेंगे तो कुछ नहीं होगा।
तिल के तीन प्रकार होते हैं। पहला-उजला तिल, दूसरा-काला तिल और तीसरा-लाल तिल। ये तीनों किस्म के तिल अलग-अलग बीजों से होते हैं पर उनकी खेती का तरीका हरगिज अलग नहीं होता। जो खेती का तरीका लाल तिल का होता है, वही काले तिल का और वही सफेद तिल का। यह तो किसानों को सोचना है कि उन्हें लाल, काला और सफेद में से कौन सा तिल उपजाना है क्योंकि बाजार में तीनों किस्म के तिल के रेट अलग-अलग हैं। तो, यहां पर भी आप किसी भ्रम में न रहें कि इन तीनों किस्म के तिल की खेती के लिए आपको अलग-अलग व्यवस्था बनानी होगी। व्यवस्था एक ही होगी। जमीन से लेकर खेती का तौर-तरीका एक ही रहेगा। इसमें किसी किस्म का कोई कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए।
अगर आप कहीं काले तिल की खेती करना चाहते हैं तो बस एक काम कर लें। मिट्टी को भुरभुरी कर लें। मिट्टी को भुरभुरी करने के दो रास्ते हैं-एक ये कि आप हल या ट्रैक्टर से पूरी जमीन को एक बार जोत लें और फिर उस पर पाड़ा चला लें। पाड़ा चलाने से मिट्टी स्वतः भुरभुरी हो जाती है। अगर उसमें भी कोई कसर रह गई हो तो दोबारा पाड़ा चला लें। अगर आपकी मिट्टी भुरभुरी हो गई हो तो आप फसल बो सकते हैं। ध्यान रहे, काला तिल या किसी किस्म भी किस्म का तिल तब बोएं, जब माहौल शुष्क हो। इसके लिए गर्मी का मौसम सबसे उपयुक्त है। माना जाता है कि मई-जून के माह में तिल की बुआई सबसे बेहतर होती है। ये भी पढ़े: भिंडी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
तिल के बीज कई प्रकार के होते हैं। बाजार में जो तिल उपलब्ध हैं, उनमें पी 12, चौमुखी, छह मुखी और आठ मुखी बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। आप जिस बीज को लेना चाहें, ले सकते हैं। लेकिन अगर आपको बीज की समुचित जानकारी नहीं है तो आप अपने ब्लाक के कृषि अधिकारी या सलाहकार से मिल सकते हैं और उनसे पूछ सकते हैं कि किस बीज से प्रति एकड़ कितनी पैदावार मिलेगी। उस आधार पर भी आप बीज का चयन कर सकते हैं। यह काम बहुत आराम से करना चाहिए।
मोटे तौर पर माना जाता है कि एक एकड़ में डेढ़ किलोग्राम बीज का छिड़काव अथवा रोपण करना चाहिए। एक एकड़ में अगर आप डेढ़ किलो बीज का इस्तेमाल करते हैं, सही तरीके से फसल की देखभाल करते हैं तो मान कर चलें कि आपकी उपज 5 क्विंटल या उससे भी ज्यादा हो सकती है। ये भी पढ़े: Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में
एक दवा है। उसका नाम है ट्राइकोडर्मा। इस दवा को तिल के बीज के साथ मिलाया जाता है। बढ़िया से मिलाने के बाद उसे छांव में कई दिनों तक रख कर सुखाया जाता है। जब तक बीज पूरी तरह न सूख जाएं, उसका रोपण ठीक नहीं। जब दवा मिश्रित बीज सूख जाएं तो उसे खेत में रोपना ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। कई किसान जानकारी के अभाव में बिना दवा के ही बीज रोप देते हैं। यह एकदम गलत कार्य है। बीजारोपण तभी करें जब उसमें ट्राइकोडर्मा नामक दवा बहुत कायदे से मिला दी गई हो। इसका इंपैक्ट सीधे-सीधे फसल पर पड़ता है। दवा देने से पौधे में कीट नहीं लगते। बिना दवा के कीट लगने की आशंका 100 फीसद होती है। फसल भी कम होती है।
बेहतर यह हो कि जून-जुलाई में जैसे ही थोड़ी सी बारिश हो, आप खेत की जुताई कर डालें। जब जुताई हो जाए, मिट्टी भुरभुरी हो जाए तो उसे एक दिन सूखने दें। जब मिट्टी थोड़ी सूख जाए तब तिल के मेडिकेटेड बीज को आप छिड़क दें।
आपने बीज का छिड़काव कर दिया। चंद दिनों के बाद उसमें से कोंपलें बाहर निकलेंगी। उन कोपलों के साथ ही आपको खर-पतवार पर नियंत्रण करना होगा। तिल के पौधे के चारों तरफ खर-पतवार बहुत तेजी से निकलते हैं। उन्हें उतनी ही तेजी से हटाना भी होगा अन्यथा आपकी फसल का विकास रूक जाएगा। तो, कोंपल निकलते ही आप खर-पतवार को दूर करने में लग जाएं। आप चाहें तो लासों नामक केमिकल का भी छिड़काव कर सकते हैं। ये खर-पतवार को जला डालते हैं। समय रहते आप निराई-गुड़ाई करते रहेंगे तो भी खर-पतवार नहीं उगेंगे। ये भी पढ़े: गेहूं की अच्छी फसल तैयार करने के लिए जरूरी खाद के प्रकार
तिल के पौधों में एक महक होती है जो जंगली पशुओं को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। अब यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप फसल की सुरक्षा जानवरों से कैसे करते हैं। आवार पशु तिल के फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें छुट्टा गाय-बैल तो होते ही हैं, जंगली सूअर, नीलगाय भी होते हैं। ये एक ही रात में पूरी खेत चट कर जाने की हैसियत रखते हैं। तो आपको फसल की सुरक्षा के लिए खुद ही तैयार रहना होगा। पहरेदारी करनी होगी, अलाव जलाना होगा ताकि जानवर केत न चर जाएं।
मोटे तौर पर माना जाता है कि काला तिल 120 दिनों में तैयार हो जाता है। लेकिन, ये 120 दिन किसानों के बड़े सिरदर्दी वाले होते हैं। खास कर आवारा पशुओं से फसल की रक्षा करना बहुत मुश्किल काम होता है।
120 दिनों के बाद जब आपकी फसल तैयार हो गई तो अब बारी आती है उसकी कटाई की। कटाई कैसे करें, यह बड़ा मसला होता है। अब हालांकि स्पेशियली तिल काटने के लिए कटर आ गया है पर हमारी राय है कि आप फसल को अपने हाथों से ही काटें। इसके लिए हंसुली या तेज धार वाले हंसिया-चाकू का इस्तेमाल सबसे बढ़िया होता है। फसल काटने के बाद उसे खेत में कम से कम 8 दिनों के लिए छोड़ देना चाहिए। इन 8 दिनों में फसल सूखती है। जब फस सूख जाए तो उसका तिल झाड़ लें। इस प्रक्रिया को कम से कम 4 बार करें। इससे जो भी फसल होगी, उसका पूरा तिल आप झाड़ लेंगे। मोटे तौर पर अगर फसल को जानवरों ने नहीं चरा, कीट नहीं लगे, तो मान कर चलें कि एक एकड़ में पांच क्विंटल से ज्यादा तिल आपको मिल जाएगा। अब आप देखें कि तिल को रखेंगे, बेचेंगे या कुछ और करेंगे।
काला तिल बेहद फायदेमंद है। आप इसे भून कर खा सकते हैं। पूजा में भी इसका इस्तेमाल होता है। तावीज-गंडे में भी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। नए शोधों में यह पता चला है कि काला तिल उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में बहुत मददगार होता है।
देश में महाराष्ट्र में काला, उजला और लाल, तीनों किस्म के तिल की सबसे ज्यादा पैदावार होती है। कारण है, वहां की शीतोष्ण जलवायु। महाराष्ट्र के कई जिले ऐसे हैं, जहां कभी बारिश होती है या फिर नहीं। ऐसे इलाकों में तिल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में भी तिल की खेती जबरदस्त होती है तो मध्य प्रदेश और गुजरात भी इसमें पीछे नहीं।