व्यापारिक लाभ के कारण फायदे का सौदा है शकरकंद की खेती

Published on: 24-Sep-2021

शकरकंद को आम तौर पर मीठी आलू की तरह एक सब्जी माना जाता है। इसे व्रत में लोग फलाहार के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। शकरकंद का सेवन अनेक बीमारियों में भी लाभकारी होता है। इसलिये शकरकंद का महत्व अधिक बढ़ जाता है। शकरकंद के महत्व को देखते हुए इसकी खेती करना फायदे का सौदा होता है। कम खर्चे और कम समय में उत्पादन होने वाली शकरकंद का बाजार में भाव अन्य सब्जियों से अधिक रहता है।

Ad

व्यावसायिक लाभ

अपनी मिठास और स्टार्च के लिए प्रसिद्ध शकरकंद को वनस्पति विज्ञान में इपोमोएआ वतातास कहा जाता है। शकरकंद के सेवन से आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। त्वचा में चमक आती है। ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है। शकरंद का विटामिन बी6 दिल की बीमारी में लाभप्रद होता है। उच्चमात्रा स्टार्च वाला शकरकंद की 100 ग्राम की मात्रा में 90 कैलोरीज होती है। इससे मोटापा नियंत्रित रहता है, मधुमेह और दिल के रोगों के जोखिम कम हो जाते हैं। शकरकंद में फाइबर, एंटी-आॅक्सीडेंटस, विटामिन्स और लवण भरपूर पाये जाने से लाभकारी होता है। किसान भाइयों अब जानते हैं शकरकंद की खेती के बारे में।  शकरकंद सफेद, लाल और बैंंगनी रंग के छिलकों वाला और भूरा भी होता है।

मिट्टी और जलवायु

शकरकंद की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु शकरकंद की खेती के लिए दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। शकरकंद की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.8 से 6.7 के बीच होना चाहिये। शकरकंद की खेती समतल व पहाड़ी क्षेत्रों में की जा सकती है। शकरकंद की खेती के लिए 20 से 28 डिग्री सेल्शियस का तापमान सबसे अच्छा माना जाता है।  शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में शकरकंद की खेती से अच्छी पैदावार ली जा सकती है।  शकरकंद की खेती के लिए 75 से 150 सेंटीमीटर तक की वर्षा पर्याप्त होती है।  लेकिन खेत में पानी का जमाव फसल के लिए नुकसान देह है।  रबी की सीजन में शकरकंद की खेती को सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

शकरकंद की उन्नत किस्में

शकरकंद की उन्नत किस्मों में प्रमुख ये हैं:-
  1. श्री कनका: 110 दिन में तैयार होने वाली फसल की पैदावार 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर होता है। इसका छिलका दूधिया रंग का होता है।
  2. गौरी: 120 दिन में तैयार होने वाली इस किस्म की शकरकंद की फसल की पैदावार लगभग 25 टन प्रति हेक्टेयर होती है। इसके कंद के छिलके का रंग बैगनी होता है। यह खरीफ व रबी दोनों ही मौसम में लगायी जा सकती है।
  3. एसटी 13: इस किस्म की शकरकंद का गूदा बैगनी काला रंग का होता है। काटने पर एकदम चुकंदर जैसा ही दिखता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट अधिक होता है। 110 दिन में तैयार होने वाली फसल में पैदावार 15 टन के आसपास प्रति हेक्टर होता है।
  4. इसके अलावा एसटी 14, सिपस्वा 2, पूसा सफेद, पूसा रेड, पूसा सुहावनी, एच-268, एस-30, वर्षा, कोनकन, अशवनी, राजेन्द्र शकरकंद-35, 43, और 51, करन, जवाहर शकरकंद-145, भुवन शंकर, सीओ-1,2, और तीन आदि उन्नत किस्में हैं।
शकरकंद की उन्नत किस्में

कब-कब की जा सकती है रोपाई

रबी की फसल में शकरकंद को अक्टूबर के महीने में लगाया जाता है।  वैसे उत्तर भारत में शकरकंद की खेती रबी, खरीफ व जायद तीनों मौसम  में की जा सकती है। वर्षा ऋतु में शकरकंद को जून से अगस्त तक लगाया जा सकता है। उस समय सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। बरसात न होने पर ही सिंचाई करनी होती है लेकिन रबी के मौसम में शकरकंद की खेती अक्टूबर  से जनवरी तक की जाती है। इस समय सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

खेत कैसे करें तैयार

सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें । उसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से मिट्टी को भुरभुरा बनायें। इसके बाद खेत में प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल कम से कम छह माह पुरानी सड़ी गोबर की खाद डालें। इसके बाद रोटावेटर से एक जुताई और करें।

खेती की तैयारी से पहले नर्सरी तैयार करें

शकरकंद की खेती के लिए लताओं के टुकड़ों की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसान भाइयों को दो माह पहले नर्सरी लगाना चाहिये।  खेत में लताओं के टुकड़ों को लगाने से दो माह पहले एक हेक्टेयर में बुआई के लिए 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल में प्राथमिक नर्सरी लगानी चाहिये। इस नर्सरी में कीट व रोग मुक्त एवं स्वस्थ कंद को 60 गुणा 60 सेंटीमीटर और मेड से मेड़ की दूरी 20 गुणा 20 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिये। इस नर्सरी के लिए 100 किलोग्राम कंद की आवश्यकता होती है। कन्द की बुआई के समय डेढ़ किलो यूरिया का नाली में छिड़काव करना चाहिये।आवश्यकता पड़ने पर समय-समय पर पानी देना चाहिये।  इस तरह से डेढ़ महीने में पहली नर्सरी तैयार हो जाती है।  तैयार लताओं को 25 सेंटीमीटर के आसपास काटलिया जाता है। इसके बाद दूसरी नर्सरी के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि की आवश्यकता होती है। इसमें मेड़ों से मेड़ों की दूरी 60 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 25 सेमी रखनी चाहिये। नर्सरी लगाने के 15 दिन बाद और 30 दिन बाद 5किलोग्राम यूरिया का छिड़काव जरूर किया जाना चाहिये और नमी का विशेष ध्यान रखना चाहिये। इस तरह से दूसरी नर्सरी जब तैयार हो जाये तो लताओं के मध्य भाग से 25 सेंटीमीटर की कटिंग करके मुख्य खेत में लगाना चाहिये।

लताओं में ये सावधानी बरतें

शकरकंद की लताओं को कभी नीचे भाग से नहीं लेना चाहिये। हमेशा मध्य व शीर्ष भाग ही लेना चाहिये। नर्सरी से लताओं को काटने के बाद दो दिनों तक छाया में रखना चाहिये तथा बोरेक्स या मोनोक्रोटोफास दवा का घोल बनाकर उसमें दस मिनट तक डुबोना चाहिये। फिर खेत में लगायें।

रोपाई की विधियां

शकरकंद की लता की रोपाई चार तरह से की जाती है टीला विधि, नाली विधि, मेड़ विधि और समतल विधि। टीला विधि जल जमाव वाले क्षेत्रों के लिए लाभदायक है, मेड़ व नाली विधि ढलान वाले खेत के लिए उपयुक्त है। बाकी समतल विघि तो समतल खेतों के लिए उपयुक्त है।

खरपतवार नियंत्रण

वैसे शकरकंद के खेत की तैयारी अच्छी हो तो खरपतरवार की समस्या बहुत कम होती है। यदि खरपतवार दिखे तो  जड़ों में मिट्टी चढ़ाने से समय खेत से निकाल देना चाहिये।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

प्रति हेक्टेयर 50-50 किलो नाइट्रोजन और पोटाश तथा 25 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल करना चाहिये। इसमें से नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा लताओं की रोपाई के समय ही डालना चाहिये। शेष नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांट कर एक हिस्सा रोपाई के 15 दिन बाद और दूसरा हिस्सा 45 दिन बाद देना चाहिये। यदि भूमि अम्लीय अधिक है तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर 500 किलोग्राम चूने का प्रयोग किया जाना चाहिये।  इसके अलावा मैगनीशियम सल्फेट, जिंक सल्फेट और बोरान का प्रयोग करने से कंद फटते नहीं।

सिंचाई प्रबंधन

पानी की कमी और पानी की अधिकता दोनों ही शकरकंद की खेती के लिए नुकसान देह हैं। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वे खेत की लगातार निगरानी करते रहें और जब आवश्यकता समझे सिंचाई करें अथवा खेत में भरे पानी को निकालने की व्यवस्था करें।

कीट व रोग नियंत्रण

शकरकंद का घुन सबसे अधिक खतरनाक होता है। इसके लगने से कंद खराब हो जाते हैं,स्वाद कड़वा हो जाता है और उससे दुर्गंध आने लगती है। इसकी रोकथाम के लिए रोपाई के समय सही लताओं का चयन करें। फिर भी यदि इसके संकेत दिख जायें तो नर कीट को गंध पाश की सहायता से मार देना चाहिये। इसके अलावा महुआ की खली, कुकरौंधे की  पत्ती से भी कीट नियंत्रण किया जा सकता है।  रासायनिक विधियों में फेनीट्रोथियान या मिथाइओडेमेटोन का छिड़काव प्रतिमाह करें। तना सड़न व कली सड़न रोग लगने पर नीम कीटनाशक या डाईथेन एम के घोल का छिड़काव करें।

कन्द की खुदाई कैसे करें

किसान भाइयों को देखना चाहिये कि जब कंद तैयार हो जाये तो लताएं काट लेनी चाहिये उसके बाद कंद की सुरक्षित खुदाई करें।  

Ad