सरसों की फसल में उर्वरकों का इस तरह इस्तेमाल करें

Published on: 01-Jan-2024

सरसों की खेती मिश्रित रूप एवं बहु फसलीय फसल चक्र के जरिए सुगमता से कर सकते हैं। भारत के अधिकांश राज्यों के कृषकों के द्वारा सरसों की खेती की जाती है। साथ ही, बाकी फसलों की भांति सरसों में भी पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जिससे कृषकों को इसकी शानदार पैदावार हांसिल हो सके। सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान है। सरसों (लाहा) कृषकों के लिए बेहद लोकप्रिय होती जा रही है।  क्योंकि, इससे कम सिंचाई और लागत में दूसरी फसलों के मुकाबले ज्यादा फायदा हांसिल होता है।  किसान इसकी खेती मिश्रित रूप में एवं बहु फसलीय फसल चक्र में सहजता से कर सकते हैं। भारत साल में क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से इसकी खेती विशेषकर यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड़, बिहार, पंजाब, राजस्थान और मध्यप्रदेश में की जाती है। अन्य फसलों की भांति ही सरसों की फसल को बेहद विकास और शानदार उपज देने के लिए 17 पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है। यदि इसमें से किसी एक पोषक तत्व की भी कमी हो जाये तो पौधे अपनी संपूर्ण क्षमता से उत्पादन नहीं दे पाते हैं।  नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और गंधक सल्फर के साथ ही पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म तत्व (कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, लोहा, तांबा और मैंगनीज) भी ग्रहण करते हैं। सरसों वर्ग के पौधे बाकी तिलहनी फसलों के विपरीत ज्यादा मात्रा में सल्फर ग्रहण करते हैं। राई-सरसों की फसल के अंदर शुष्क एवं सिंचित दोनों ही अवस्थाओं में खादों और उर्वरकों के इस्तेमाल के अनुकूल परिणाम हांसिल हुए हैं। 

सरसों की फसल में रासायनिक उर्वरकों की कितनी मात्रा होती है 

राई-सरसों से भरपूर उत्पादन लेने के लिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करने से पैदावार पर काफी अच्छा असर पड़ता है। उर्वरकों का इस्तेमाल मृदा परीक्षण के आधार पर करना ज्यादा उपयोगी साबित होगा। राई-सरसों को नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश जैसे प्राथमिक तत्वों के अतिरिक्त गंधव तत्व की आवश्यकता अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा होती है। सामान्य सरसों में उर्वरकों का इस्तेमाल सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन 120 किग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा.  एवं पोटाश 60 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने से शानदार पैदावार हांसिल होती है।

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फास्फोरस का कितनी मात्रा में उपयोग करें  

फास्फोरस का इस्तेमाल सिंगल सुपर फास्फेट के तोर पर ज्यादा फायदेमंद होता है। क्योंकि, इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है। अगर सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल न किया जाए तो सल्फर की उपलब्धता करने के लिए 40 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही, असिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त उर्वरकों की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के तोर पर इस्तेमाल की जाए।  अगर डी.ए.पी. का इस्तेमाल किया जाता है, तो इसके साथ बिजाई के समय 200 किग्रा. जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिए फायदेमंद होता है। साथ ही, शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए 60 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फेट एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा बिजाई के समय कूड़ों में बीज से 2-3 सेमी. नीचे नाई या चोगों से दिया जाए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई (बुवाई के 25-30 दिन बाद) के बाद टाप ड्रेसिंग द्वारा दी जाए। 

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