खेती में सबसे अधिक नुकसान का कारण खरपतवार होते हैं। फसलों को कई प्रकार के खरपतवार प्रभावित करते हैं जिससे उपज में कमी आती हैं।
ऐसा ही एक खरपतवार है गाजर घास (कांग्रेस घास) जिसकों कई नामों से जाना जाता है। कांग्रेस घास फसलों को तो नुकसान पहुँचाता है साथ ही ये खरपतवार इंसानो के लिए भी खतरनाक है, गाजर घास के कारण फसल की पैदावार में 40 प्रतिशत तक की कमी आती है।
इस घास के कारण कई प्रकार की बीमार भी होती है। अगर इंसान इसके संपर्क में आता है तो डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि जैसी बीमारियां हो जाती हैं। इस लेख में हम आपको गाजर घास के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिलेगी।
गाजर घास को अंग्रेजी में पार्थेनियम बोला जाता है जो की एक घातक खरपतवार (weed) होता है, जिसे आमतौर पर "गाजर घास" के नाम से भी जाना जाता है।
यह एक बहुत ही हानिकारक पौधा है जो खेतों, बाग-बगीचों, और खाली जमीनों में तेजी से फैलता है। गाजर घास का वैज्ञानिक नाम Parthenium hysterophorus है।
यह घास मूल रूप से अमेरिका से आई थी, लेकिन अब भारत सहित कई देशों में एक बड़ी समस्या बन चुकी है।
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1950 के दशक में अमेरिका से गाजर घास (पार्थेनियम) भारत आया था। माना जाता है कि जब अमेरिका से गेहूं की खेप भेजी गई थी, तब यह घास भारत में आ गई थी।
उस गेहूं के साथ गाजर घास (पार्थेनियम) के बीज भारत पहुंचे, जहां की जलवायु में यह घास तेजी से फैलने लगा। खासकर, यह घास रेलवे ट्रैक्स, सड़कों और खेतों में बहुत जल्दी फैल गया और एक झटके में पूरे देश में फैल गया।
आज गाजर घास भारत के लगभग सभी राज्यों में पाई जाती है और इसे एक बहुत बड़ी समस्या माना जाता है, क्योंकि यह न केवल फसलों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि इंसानों और जानवरों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालती है।
गाजर घास या पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस एक आक्रामक खरपतवार है। गाजर घास का तना सीधा और शाखित होता है, जो 0.5 से 1.5 मीटर तक ऊँचा हो सकता है साथ ही इसके तने का रंग हरे रंग का होता है, और इसमें महीन या छोटे रोएँ होते हैं।
गाजर घास की पत्तियां गहरे हरे रंग की और गहराई से कटावदार होती हैं, पत्तियों की संरचना बारीक दांतेदार और रेशेदार होती है। इस पौधे में नलिका जड़ होती है जिसे अंग्रेजी में taproot कहते हैं।
Parthenium hysterophorus पर फूल छोटे और सफेद रंग के आते है। फूलों के समूह गोलाकार और छोटे आकार के होते हैं, जिनकी चौड़ाई लगभग 4-8 मि.मी. होती है।
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गर्मियों के मौसम में फूलों की वृद्धि अधिक होती है। गाजर घास फल छोटे और सूखे होते हैं, जिनमें एक छोटा सा बीज पाया जाता है।
प्रत्येक पौधा लगभग 5,000 से 25,000 बीज पैदा कर सकता है, बीज छोटे और हल्के होते हैं, जो आसानी से हवा या पानी द्वारा फैल जाते हैं।
गाजर घास एक आक्रामक खरपतवार है जो फसलों, मानव स्वास्थ्य और पशुधन पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालती है। गाजर घास के फसलों, इंसानों और पशुओं पर होने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं:
गाजर घास खेत में उग कर अन्य फसलों के साथ में पोषक तत्वों, पानी और सूर्य के प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करता है साथ ही यह पौधा जड़ और पत्तियों से जहरीले रसायन (एलेलोपैथिक पदार्थ) का उत्सर्जन करता है, जिससे की फसलों की वृद्धि प्रभावित होती है और फसलों का उत्पादन 40-90% तक कम हो सकता है।
गाजर घास के इंसानों पर भी कई बुरे प्रभाव देखने को मिलते है। इस के संपर्क में आने से त्वचा में जलन, खुजली, एलर्जी, और रैशेज (चकत्ते) हो सकते हैं।
इसके पराग (पोलन) एलर्जी पैदा करते है जिस कारण से अस्थमा, श्वास कष्ट (ब्रोन्काइटिस), और अन्य श्वसन समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। पराग से आंखों में जलन, लालिमा, और सूजन (कंजक्टिवाइटिस) हो सकती है।
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अगर कोई भी पशु इस घास को खा लेता है तो उस पर भी प्रभाव देखने को मिल सकते है, क्योंकि इसमें पोषक तत्वों की कमी होती है और यह जहरीली होती है।
गाजर घास खाने से दूध की गुणवत्ता कम हो जाती है और दूध का स्वाद कड़वा हो सकता है, गाजर घास के सेवन से पशुओं में त्वचा की बीमारियाँ, श्वसन संबंधी समस्याएँ, और लीवर और किडनी पर नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।
गाजर घास को ख़त्म करने के लिए आप निम्नलिखित उपाय अपना सकते है: