Published on: 23-Sep-2020
आज हम गेंहूं की खेती के बारे में बात करेंगें. विश्व के 25 से 30% भाग पर प्राय गेहूँ की खेती की जाती है.आज हमारा देश खाद्यान के मामले में किसी के ऊपर आश्रित नहीं है इसमें हमारे वैज्ञानिक, राजनेताओं ( हरितक्रांति) एवं किसानों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. एक समय ऐसा था की हम अपने खाने के लिए दूसरे देशों पर आश्रित थे उनका गला सड़ा गेंहूं हमको खाने को मिलता था. घर में पूड़ियाँ या गेंहूं की रोटी किसी विशेष रिश्तेदार के आने पर ही बनती थीं ( शायद आज की पीढ़ी को ये बात थोड़ी अटपटी लगे), पर आज ऐसा नहीं है आज हम अन्य देशों को गेंहूं और दूसरे अनाजों का निर्यात करते हैं.
गेहूँ के लिए खेत की तैयारी:
सामान्यतः गेंहू की जड़ ज्यादा गहरी नहीं जाती है और इसकी पेड़ से पेड़ की दूरी ज्यादा नहीं होती है. इसकी जड़ छतराई होती है तो इन्हें खेत के ऊपर की खाद और उर्बरक ज्यादा फायदेमंद रहती है. इसके खेत में ज्यादा जुताई की जरूरत नहीं रहती है लेकिन ऐसा भी नहीं है की इसके खेत में खरपतवार ही ना खड़ा रहे. अगर खाली खेत में गेंहूं बोना हो तो इसकी लास्ट वाली जुताई में खेत में गोबर का बना हुआ खाद मिला दें और अगर आपको धान के खेत में बोना हो तो सुपरसीड़र से भी बुबाई कर सकते है. खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, जिससे की पौधे को 20 से 25 दिन तक का समय मिल जाये.
धान, बाजरा, या अन्य खरीफ की फसल काटने के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल (एमबी प्लोऊ) से करनी चाहिए जिससे कि खरीफ फसल के अवशेष और खरपतवार मिट्टी मे दबकर सड़ जायें. इसके बाद आवश्यकतानुसार 2-3 जुताइयाँ देशी हल-कल्टीवेटर से करनी चाहिए. हरेक जुताई के बाद पाटा/ सुहागा देकर खेत समतल कर लेना चाहिए, इससे खेत में नमी बनी रहती है तथा खेत भी समतल रहता है तथा इससे खेत में पानी भी सामान मात्रा में लगता है.
उन्नत किस्में तथा उनका चयन:
हमें किस्मों का चुनाव करते समय अपने क्षेत्र एवं जलवायु का विशेष ध्यान रखना चाहिए. हमारे वैज्ञानिक निरंतर किसान कि उपज बढ़ने के लिए प्रयासरत हैं तथा एक से बढ़कर एक किस्म किसानों के लिए विकसित कर रहे हैं.हम नीचे पूसा कृषि संस्थान द्वारा तैयार कि गई किस्मों के जानकारी दे रहे हैं, जो निम्न प्रकार है:
गेहूँ की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताएं:
गेहूँ की प्रजाति करीब करीब 300-400 के करीब है लेकिन बहुतायत में प्रयोग की जाने वाली प्रजाति सिर्फ 30-35 ही होती है. हमेशा किसान को नया बीज ही प्रयोग में लाना चाहिए लेकिन कई बार ये संभव नहीं है क्यों की किसान को बीज खरीदने में अच्छा खासा पैसा लगाना होता है. अगर आप नया बीज नहीं ले पते हो तो कोशिश करें की कीड़ा ( घुन और पई) लगा हुआ बीज प्रयोग में ना लाएं. बाकि किस्मों की जानकारी ऊपर दी जा चुकी है.
बुवाई का समय:
गेंहू की बुवाई का सही समय तो प्रजाति पर निर्भर करता है, अगर कोई प्रजाति पकने में ज्यादा समय लेती है तो उसकी बुबाई पहले की जाती है जिससे की ज्यादा गर्मी से पहले गेंहूं की बलि को पकने का समय मिल सके. जब मौसम ज्यादा गर्म हो जाता है तो गेंहूं की बाली को पकने का समय ठीक से नहीं मिल पता है जिससे हमारे उत्पादन पर फर्क पड़ता है. इस तरह से गेंहूं को बोन का सही समय नवंबर का महीना सही होता है जो की अधिकांश प्रजाति के लिए सबसे मुफीद समय होता है.
सामान्यतः बुवाई अक्टूबर से दिसंबर तक की जाती है जिससे की हमारी फसल को पकने का सही समय मिल सके तथा अंतिम पानी होली से पहले दिया जा सके जिससे की जब गर्मी का मौसम शुरू होता है तो हवाएं तेज चलने लगती हैं जिससे पानी से गेंहूं के गिरने का डर रहता है.
फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने हेतु उचित मात्रा में खाद, बीज एवं उर्वरकों का प्रयोग होनाआवश्यक है. खेत में अच्छी बनी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद दो या तीन साल में 8 से 10 टन प्रति हैक्टेयर की दर से अवश्य देनी चाहिये। इसके अतिरिक्त गेहूं की फसल को 100 से 120 किग्रा. नाइट्रोजन एवं 60 से 80 किग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी एवं फास्फोरस की समस्त मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिये ।
खाद की मात्रा:
130.50 कि.ग्रा. डी.ए.पी. व 58 किग्रा. यूरिया के द्वारा दी जा सकती है। इसके पश्चात् नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बराबर भागों में देनी चाहिये। जिसे बुवाई के बाद प्रथम व द्वितीय सिंचाई देने के तुरंत बाद छिड़क देनी चाहिये। गेहूँ की फसल में जिंक की कमी भी महसूस की जा रही है अगर धान के खेत में गेंहूं की बुबाई की जा रही है तो उसमे पहले से ही खाद की अच्छी मात्रा होती है, इसके लिए जिंक सल्फेट की 25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व देनी चाहिये लेकिन इससे पहले मृदा परीक्षण आवश्यक है. जो की हमें साल में एक बार करा ही लेनी चाहिए.
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कटाई की व्यवस्था :
जैसा की हम जानते हैं आजकल सारा काम मशीनों से हो रहा है और उससे किसान को फायदा भी होता है लेकिन इससे गेंहूं में मिटटी और अन्य खरपतवार भी मिल जाता है उससे फसल की गुणवत्ता कम होती है. अगर किसान को अपना बीज बनाना है तो उसको हाथ से कटाई करा के उसको खेत में सूखने का पर्याप्त समय देना चाहिए. उसके बाद थ्रेसर या ट्रैक्टर से कुचलकर निकालना चाहिए जिससे की कोई भी दाना कटे नहीं और बीज को फफूद नाशक एवं कीटनाशक से उपचारित कर लोहे की टंकी या साफ बोरे में भरकर सुरक्षित जगह भण्डारित कर लेना चाहिये. इस प्रकार उत्पन्न किये गये बीज की किसान अगले वर्ष बुवाई कर सकते है.